आज के ही दिन (२५ मार्च) १९३१ के साम्प्रदायिक दंगों में, अपनी साम्प्रदायिकता-विरोधी प्रतिबद्धतता को व्यवहार रूप देने में प्रताप के संपादक, अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी एवं विचारक, गणेश शंकर विद्यार्थी धर्मोन्मादी आतताइयों के हाथों मारे गए थे. २१ अक्टूबर १९२४ को “धर्म की आड़” शीर्षक से सम्पादकीय में उन्होंने लिखा था:
“धर्म के नाम पर कुछ इने-गिने आदमी अपने हीन स्वार्थों की सिद्धि के लिए करोणों आदमियों की शक्ति का दुरुपयोग करते हैं. .... बुद्धि पर परदा डालकर पहले इश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए लेना और फिर धर्म इमान और ईश्वर के नाम पर एक दूसरे को लड़ाना-भिड़ाना. मूर्ख बेचारे धर्म की दुहाइयां देते और दीन-दीन चिल्लाते हैं, अपने प्राणों की बाजियां लगाते और थोड़े से अनियंत्रित और धूर्त आदमियों का आसान ऊंचा करते और उनका बल बढाते हैं. ................. धर्म और ईमान के नाम पर होने वाले इस जीवन-व्यापार को रोकने के लिए साहस और दृढता के साथ उद्योग होना चाहिए.”
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