Wednesday, April 18, 2012

कहाँ से कहाँ

झूठ वाले कहाँ से कहाँ से कहाँ बढ़ने में गिरते चले गए
 अनंत पाने के भ्रम में खुद को खोते चले गए
 हम अज्म जुनूं पर क़ायम रहे सच कहते हुए आगे बढ़ते रहे
 खोने को कुछ भी नहीं है पाने को सारा जहां है
लुटाया सिर्फ खुदी का एकाकीपन,
 यार पाया बदले में हर मेहनतकश का प्यार.

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