Tuesday, September 13, 2011

प्रोफ़ेसर की चिंता

प्रोफ़ेसर की चिंता
प्रोफ़ेसर साहब कुछ चिंता में थे
मैंने कहा
इसे ब्लेसिंग इन डिस्गाइज़ समझिये
सुन मेरी बात लगा उन्हें अघात
कर दिया हो जैसे उनपर मैंने बज्रपात
गुस्से से गिरने लगा मुह से उनके झाग
बोले
दो मत ऐसे आशीर्वाद अनिष्ट
जानता हूँ
हो तुम पक्के कम्युनिस्ट
देश-द्रोही, दुष्ट, कृतघ्न, फासिस्ट
लाल झंडे टेल था जब रूस
तुम सब थे उसके जासूस
रूस-ओ-चीन में था जब तुम्हारा राज
बंद कर देते थे वहां हर आवाज
पैदा होकर रूस में
मार्क्स ने दिया क्रान्ति का मंत्र
मजदूरों के हाथ में होगा शासन-तंत्र
आया जब कम्युनिस्टों का शासन
मार्क्स को दे दिया निर्वासन
माँगा सारे कम्युनिस्टों की तरफ से जब क्षमा
तब जाकर उनका क्रोध थमा.

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