Sunday, September 4, 2011

बातें बहुत बाकी हैं

बातें बहुत बाकी हैं
ईश मिश्र
रातें बहुत बाकी हैं
बातें बहुत बाकी हैं
सफ़र लम्बा है हमसफ़र!
दूरी बहुत बाकी है
चलते हैं हम साथ जिंदगी की राह में कुछ दूर तक
ज़िंदगी का सफ़र अभी आगे बाकी है बहुत-बहुत दूर तक
निगाह होती है सदा सुदूर अगली फिर उससे और उससे अगली मंजिल पर
कटता है ऐसे ही ज़िंदगी का अलमस्त सफ़र
छोटी सी सुखद सह-यात्रा आती है याद हर पहर
मिल जाएँ गर फिर कभी संयोगों के संयोग से
ऐसी हो छोटी सी सहयात्र कि याद आये पूरे मनोयोग से.

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