शहीद-ए- आज़म के जन्म-दिन पर
ईश मिश्र
शहीदे-आज़म भगत सिंह को लाल सलाम
लाल सलाम, लाल सलाम, लाल-लाल सलाम
है आज एक ऐसे इन्किलाबी का जन्मदिन
बनाने निकला था जो समाज एक शोषण-विहीन
कांपते थे जिसके नाम से सभी तरह के गाँधी-इरविन
नाम है उसका शहीदे-आज़म भगत सिंह
थे जब किशोरावस्था में
देखा लूट और जुल्म साम्राज्यवादी व्यवस्था में
निकल पड़े नवजवानों में बिप्लव का बिगुल बजाने
छात्रों-नवजवानों में इन्सानियत का अलख जगाने
करना है इन्किलाब तो जरूरी है संगठन
किया उसने नवजवान भारत सभा का गठन
फैलाया सन्देश मानवता की एकता है अखंड
जाति-धर्म-क्षेत्र के भेद हैं मनुष्य-निर्मित पाखण्ड
देख दुर्दशा किसानों की
कीर्ति-किसान सभा की स्थापना की
लिखा क्रांतिकारी आन्दोलन का इतिहास
कराया आशा की एक नयी दुनिया का आभास
होती है जब भी मुश्किलों से मुलाक़ात
प्रेरणा देती है भगत सिंह की यह बात
"लड़ते हैं क्रांतिकारी ज़ुल्म के खिलाफ
क्योंकि मजलूम को मिलेगा तभी इन्साफ
बांधते हैं सर पर कफ़न मजदूरों-मजलूमों के लिए
क्योंकि सिर्फ यही एक रास्ता है इंकिलाबी उसूलों के लिए"
"फरियादी बनी थी जब राष्ट्रवाद की मुख्यधारा
शुरू के क्रांतिकारियों ने दिया वन्देमातरम का नारा
नहीं था प्रचलित तब तक समाजवाद का वैज्ञानिक मर्म
वैचारिक हथियार बना था उनका इसीलिये धर्म"
"होँ हथियार विचारों के अगर मजबूत
होती नहीं धर्म की वैशाखी की जरूरत"
हो रहा था जब धार्मिक प्रतीकों का महिमा-मंडन
युवा भगत ने तब किया धर्म-कर्म के पाखंडों का खंडन
ढूंढ रहे थे वे जब इन्किलाब की कारगर डगर
पड़ गयी थी उनपर हुक्मरानों की भी नज़र
हो गयी थीं उनकी नीद काफूर
पहुँच गए भगत शहर कानपुर
निकालते थे गणेश शंकर विद्यार्थी अख़बार प्रताप
था जिनका क्रांतिकारियों का पुराना साथ
किया वहां से नयी शुरुआत
मिल गया जो भगवती और शिव वर्मा का साथ
बेचैन थे क्रांतिकारी काकोरी के बाद
छुपकर घूम रहे थे चंद्रशेखर आज़ाद
मिले देश भर के क्रांतिकारी दिल्ली में एक साथ
दिया नया नारा, इंक़िलाब जिंदाबाद
हिंदुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिकन असोसिएसन का गठन किया
काकोरी के वांछित आज़ाद बने जिसके मुखिया
मकसद नहीं था सिर्फ खत्म करना अंग्रेजी राज
बनाना था एक शोषण-दमन से मुक्त समाज
फेंका जब संसद में में साथ साथियों के बम
मच गया हुक्मरानों में भारी हडकंप
मकसद था बहरों को बम का दर्शन सिखाना
प्रवृत्ति नहीं क्रांतिकारी की अकारण जान लेना
था इंतज़ाम बचने का गिरफ्तारी से
फिर भाग-निकलने का जेल और कचहरी से
कर दिया भगत ने इन सबसे इन्कार
लगता था वह युवक सुकरात साकार
अकाट्य थे तर्क उसके सुकरात की तरह
हैरान था जज सुन भगत सिंह की जिरह
डरता है अत्याचारी निर्भीक विचारों से
इतिहास भरा पड़ा है ऐसे समाचारों से
समकालीन थे उनके एन्टोनियो ग्राम्सी
आतंकित थे विचारों से जिनके सारे फासीवादी
फासीवादी जज ने था दिया फैसला
बंद कर दो बीस साल तक इस दिमाग का सिल्सिला
वह तो वे कर न सके
ग्राम्सी जेल में लिखते रहे
काश! हत्यारे थोड़ी और देर करते
भगत सिंह हमें कितना कुछ और दे जाते
था सारा अवाम युवा भगत की फांसी के खिलाफ
साथ इरविन के गोल-मेज में उठाना भी लगा गांधी को नाइंसाफ
गांधीवादी अहिंसा अजूबी है
"वैदिक हिंसा हिंसा न भवति", उसकी खूबी है
गांधी ने कभी न सोचा था ऐसी आवभगत
कराची कांग्रेस के रास्ते में काले झंडे से स्वागत
कर रहे थे भगत सिंह लेनिन से वैचारिक मुलाक़ात
थे थोड़े ही दिन जीने के उनके पास
आया पुजारी लेकर गुरु-ग्रन्थ साथ
बोला अब तो नवा लो रब को माथ
भगत सिंह नास्तिक थे मार्क्स की तरह
भाग गया पुजारी न कर सका जिरह
डरते नहीं थे वे भूत और भगवान से
डरा सकेगा उनको कौन मौत के विधान से
निकले थे जो परवाने सर पर इंकिलाबी कफ़न बाँध कर
हंसते हुए लटके फांसी पर इन्किलाब जिंदाबाद बोलकर
इन्किलाब ज़िदाबाद, जिंदाबाद इन्किलाब
भगत सिंह को लाल सलाम, राजगुरु,सुखदेव को लाल सलाम
२९.०९.२०११