Thursday, August 7, 2025

बेतरतीब 175 (जेएनयू)

 Vishnu Nagar जी के जोरदार व्यंग्य, 'चाकू' पर कमेंटः


1983 में हमलगों ने जेएनयू में एक नाटक तैयार किया था, 'आतंकवादी' , इसमें पकड़े गए 'आतंकवादी' के पास एक माचिस बरामद हुई थी, लेकिन उसके थैले में सिगरेट-बीड़ी कुछ नहीं मिला तो सारी पूछताछ माचिस पर ही केंद्रित थी, पूछताछ अधिकारी ने साबित कर दिया कि माचिस से वह संसद भवन जलाने जा रहा था और उसे जेल में डाल दिया गया।

Tuesday, July 29, 2025

बेतरतीब174 (नागपंचमी)

Prabhakar Mishra

तब गांव की नदी (मझुई) में भी बारहों महीने बहता पानी रहता था और गांव के बाहर कई तालाब (ताल) होते थे। निघसिया ताल में कमलिनी/कूंई होती थी और सकी जड़ में बेर्रा। निघसिया ताल में नागपंचमी के दिन गुंड़ुई (गुड़िया) सेरवाई जाती थी। बहनें गुड़ियां बनाकर तालाब में डालती थीं और भाई डंडे से उन्हें(गुड़ियों के पीटते थे। पीटने के लिए ढाख के खास डंडे होते थे जिनके बीच में काट कर निशान बनाया जाता था दिससे वह आसानी से टूट जाए। उसके बाद लड़के-लड़कियां घंटों ताल में नहाते थे। गुड़ुई सेरवाने का कार्यक्रम नदी की बजाय ताल में कअयों होता था, इस पर हमने कभी नहीं सोचा। गुड़ुई पीटकर डंडे को तोड़कर ताल में फेंका जाता था। सुबह अखाड़े में लड़कों की कुश्ती की प्रतियोगिता होती थी । नाग को दूध पिलाया जाता और दोपहर को दालपूरी का पकवान बनता था। लडकियां पेड़ पर डाले गए झूले पर कजरी गातीं और लड़के झूले को पेंग मारकर खूब ऊपर तक ले जाते।

Thursday, July 24, 2025

बेतरतीब 173 (जौनपुर)

 मित्र Raghvendra Dubey ने मनोज कुमार को याद करते हुए जौनपुर में देखी पिक्चर उपकार के बहाने टीडी इंटर कॉलेज, जौनपुर की कुछ यादें शेयर किया नास्टेल्जियाकर मैंने यह कमेंट लिखा:


मैंने भी टीडी कॉलेज से 1969 में ही इंटर किया था, मैं विज्ञान का विद्यार्थी था तथा याद में याद रह गयी, पहली फिल्म मैंने भी अशोक टाकीज में उपकार ही देखी थी, गांव में फिल्मों के बारे में सुना था और कुछ फिल्मी गाने सुने थे। 1967 में 12 साल की उम्र में गांव से शहर आने पर एकाध फिल्में इसके पहले भी देखी थी, राजा हरिश्चंद्र और भूल चुकीं कुछ और फिल्में। इस फिल्म के बाद लोगों ने कहना शुरू किया था कि प्राण ने पहली बार खलनायक से अलग भूमिका निभाया था। मैंने प्राण को पहली बार उपकार में ही देखा, उसके बाद कई फिल्मों में। उस समय जौनपुर में उत्तम और अशोक दो ही टाकीज होते थे। 1970 या 1971 में रुहट्टा में राजकमल बना, वहां हम टीडी कॉलेज से नाला पार कर बेर के बगीचे के टीले की चढ़ाई से उतरकर, कालीकुत्ती होते हुए पहुंचते थे। कभी कभी ओलनगंज होकर भी चले जाते थे। राजकमल में पहली फिल्म हमने आनंद देखी थी। कभी कभी राजकमल में फिल्म देखकर मछलीशहर के पड़ाव होते हुए गोमती के लगभग किनारे बने प्राइवेट हॉस्टल , कामता लॉज चले जाते थे, जहां हमारे इलाके के ट्रेन के कुछ सहयात्री मित्र रहते थे, उनके साथ शाहीपुल पारकर चौक चाट खाने जाते थे। कभी कभी वहां से किराए पर साइकिल लेकर चौकिया चले जाते थे। 2 पैसे या एक आने घंटे की दर से साइकिल मिलती थी। कभी मेस बंद होता तो पुल के इस पार बलई शाह की दुकान पर (बेनीराम की मशहूर इमरती की दुकान के सामने) पूड़ी-कचौड़ी खाने चले जाते। अपनी पत्तल और कुल्हड़ खुद कूड़ेदान मे डालना पड़ता था।

Saturday, July 19, 2025

सरकारी पाठशाला

 बंद होगी जब सरकारी पाठशाला

 बंद होगी जब सरकारी पाठशाला
तभी तो चलेगी धनपशुओं की मधुशाला

दुकानें खुलेंगी ज्ञान-विज्ञान की
चारण गाएंगे गीत धनपशुों के शान की
सरकारी पाठशाला में पढ़ लेगा यदि गरीब
अंधभक्त बन ढोएगा नहीं अपना ही सलीब
नहीं रहेगा स्कूल और खेल का मैदान
उस जमीन पर बनाएगा अट्टालिका शैतान

शिक्षा और ज्ञान 179 (सरकारी स्कूल)

 सरकारी स्कूलों को बंद करने के समर्थन में एक पोस्ट पर किसी ने लिखा कि निजी स्कूल स्कूल अभिभावकों को लूटते तो हैं लेकिन अच्छी शिक्षा देते हैं। वैसे अच्छी शिक्षा क्या होती है, बहस का विषय है। मैं तो टाट-पट्टी स्कूल से पढ़ा हूं तथा डीपीएस जैसे संभ्रात निजी स्कूल में कुछ साल पढ़ा चुका हूं। उस पोस्ट पर एक कमेंट:


शिक्षा का धंधा करने वाले धनपशु अभिभावकों को अंग्रेजी शिक्षा के नाम पर लूटते हैं और बेरोजगारी की मार से मजबूरन इनकी चाकरी करने वाले मास्टरों को 5-10 हजार की मजदूरी देकर उनका खून चूसते हैं। दयनीय मजदूरी और काम की दयनीय परिस्थितियों में ये शिक्षक कितनी गुणवत्ता की शिक्षा देंगे, समझा जा सकता है। हम तो सरकारी स्कूलों के मास्टरों के चलते इतना पढ़-लिख लिए, धनपशुओं की दुकानों में दाम चुकाकर पढ़ने की स्थिति ही नहीं थी। उस समय तो कलेक्टर-कप्तान के बच्चे भी सरकारी स्कूलों में ही पढ़ते थे तथा उनका स्तर बनाए रखने का दबाव भी होता था, अब तो अधिकारी अपने बच्चों को इंपोरियम्स में भेजते हैं और छोटे अधिकारी दुकानों में, सरकारी स्कूलों में गरीब, मजदूरों के बच्चे ही जाते हैं और सरकार द्वारा स्तर बनाए रखने का कोई दबाव नहीं है तथा उसे सरकारी स्कूल बंद कर धनपशुओं की दुकानें चलने का इंतजाम करने का बहाना मिल जाता है। बाकी धनपशुओं के चारण तो सरकारी स्कूल बंद कराने का गीत गाते ही रहेंगे।

Thursday, July 17, 2025

शिक्षा और ज्ञान 179 (दिलीप मंडल)

 आरएसएस एक बार जिनका इस्तेमाल कर लेती है, उन्हें दो कौड़ी का बनाकर छोड़ देती है, एक जमाने में दिलीप मंडल को मित्र मानता था, कई बार घर पर खाना भी खाया है, लोग सोचते हैं वह अब बिका है, लेकिन वह 2016 (जेएनयू आंदेलन के समय) से ही बिकने की जुगाड़ में वामपंथ विरोधी मुहिम से जुड़ गया था, एक डेढ़ लाख माहवारी के अलावा उसे अडानी-अंबानी के चाकरों से कुछ नहीं मिल रहा, वह भी जैसे ही आरएसएस को लग जीाएगा कि वह दो कौड़ी का हो चुका है, दूध की मक्खी की तरह किसी गंदे नाले में फेंक देगी। जल्दी ही अंबेडकरी रामों की भी वही हाल होने वाली है। रामराज से उदित राज बना अंबेडकरी राम किनारे लग चुका है, जल्दी ही वही हाल राम अठावले और रामविलास के चिराग की भी होगी।


वैसे मंडल को यह नहीं मालुम क्या कि मुगलों के दरबारी राजपूत और मराठे थे, अकबर के जमाने में तो एक राणा प्रताप बच गए थे, औरंग जेब के समय तो सारा राजपुताना दरबारी थे, उसकी क्रूरता में दरबारियों का हाथ भी रहा होगा?

वैसे मंडल की तुलना मायावती से सटीक है।

Wednesday, July 16, 2025

शिक्षा और ज्ञान 378 (गाली और घूस)

 राही मासूम रजा का एक उपन्यास है आधा गांव उसमें संवादों में कुछ शब्द प्रचलित गालियों के रूप हैं, उनका दूसरा उपन्यास है, टोपी शुक्ला, जिसकी भूमिका में उन्होंने लिखा कि आधा गांव के बारे में लोगों को गालियों की शिकायत है, कहानी के पात्र यदि वेद के मंत्र या कुरान की आयतें बोल रहे होते तो मैं वही लिखता लेकिन सामाजिक वर्जनाओं के लिए कहानी के पात्रों की जुबान नहीं काटी जा सकती। टोपी शुक्ला में एक भी गाली नहीं है, लेकिन पूरा उपन्यास एक भद्दी सी गाली है, समाज के नाम। उद्धरण चिन्हों का इस्तेमाल इसलिए नहीं किया कि 46-47 साल पहले पढ़े उपन्यास की पंक्तियां शब्दशः याद नहीं हैं। लेकिन भक्ति भाव विवेक को कुंद कर देता है, आपको इनकी पूरी पोस्ट में गाली का एक शब्द खल गया लेकिन तेरह हजार घूस लेते बाबू की गिरफ्तारी और आठ करोड़ घूस लेते अधिकारी के विरुद्ध केवल चार्जशीट में विरोधाभास नहीं दिखाई नहीं देता।