Thursday, July 17, 2025

शिक्षा और ज्ञान 179 (दिलीप मंडल)

 आरएसएस एक बार जिनका इस्तेमाल कर लेती है, उन्हें दो कौड़ी का बनाकर छोड़ देती है, एक जमाने में दिलीप मंडल को मित्र मानता था, कई बार घर पर खाना भी खाया है, लोग सोचते हैं वह अब बिका है, लेकिन वह 2016 (जेएनयू आंदेलन के समय) से ही बिकने की जुगाड़ में वामपंथ विरोधी मुहिम से जुड़ गया था, एक डेढ़ लाख माहवारी के अलावा उसे अडानी-अंबानी के चाकरों से कुछ नहीं मिल रहा, वह भी जैसे ही आरएसएस को लग जीाएगा कि वह दो कौड़ी का हो चुका है, दूध की मक्खी की तरह किसी गंदे नाले में फेंक देगी। जल्दी ही अंबेडकरी रामों की भी वही हाल होने वाली है। रामराज से उदित राज बना अंबेडकरी राम किनारे लग चुका है, जल्दी ही वही हाल राम अठावले और रामविलास के चिराग की भी होगी।


वैसे मंडल को यह नहीं मालुम क्या कि मुगलों के दरबारी राजपूत और मराठे थे, अकबर के जमाने में तो एक राणा प्रताप बच गए थे, औरंग जेब के समय तो सारा राजपुताना दरबारी थे, उसकी क्रूरता में दरबारियों का हाथ भी रहा होगा?

वैसे मंडल की तुलना मायावती से सटीक है।

Wednesday, July 16, 2025

शिक्षा और ज्ञान 378 (गाली और घूस)

 राही मासूम रजा का एक उपन्यास है आधा गांव उसमें संवादों में कुछ शब्द प्रचलित गालियों के रूप हैं, उनका दूसरा उपन्यास है, टोपी शुक्ला, जिसकी भूमिका में उन्होंने लिखा कि आधा गांव के बारे में लोगों को गालियों की शिकायत है, कहानी के पात्र यदि वेद के मंत्र या कुरान की आयतें बोल रहे होते तो मैं वही लिखता लेकिन सामाजिक वर्जनाओं के लिए कहानी के पात्रों की जुबान नहीं काटी जा सकती। टोपी शुक्ला में एक भी गाली नहीं है, लेकिन पूरा उपन्यास एक भद्दी सी गाली है, समाज के नाम। उद्धरण चिन्हों का इस्तेमाल इसलिए नहीं किया कि 46-47 साल पहले पढ़े उपन्यास की पंक्तियां शब्दशः याद नहीं हैं। लेकिन भक्ति भाव विवेक को कुंद कर देता है, आपको इनकी पूरी पोस्ट में गाली का एक शब्द खल गया लेकिन तेरह हजार घूस लेते बाबू की गिरफ्तारी और आठ करोड़ घूस लेते अधिकारी के विरुद्ध केवल चार्जशीट में विरोधाभास नहीं दिखाई नहीं देता।

Monday, July 14, 2025

शिक्षा और ज्ञान 377 (गोल्वल्कर)

 शमशुल इस्लाम एक प्रतिबद्ध इंकलाबी रंगकर्मी और बुद्धिजीवी हैं, उनकी बाकी बातें सही हो सकती हैं लेकिन उनका यह कथन कि1939 में छपी गोलवल्कर की किताब "We or our nation defined" को उनके द्वारा 1990 दशक में विवेचना के साथ प्रस्तुत करने के पहले, इसे कोई जानता नहीं था, उनका बड़बोलापन है। अरुण माहेश्वरी ने अपने फेसबुक लेख में यही बात कही है। 1987 में मैंने CWDS (Centre for Women's Development Studies) द्वारा sponsored एक शोधपत्र Woman's Question in Communal Ideologies: A Study into the Ideologies of RSS and Jamat-e-Islami में इस पुस्तक से विस्तृत उद्धरण दिए हैं। तभी लगा कि इतनी मूर्खतापूर्ण बातें लिखने वाला व्यक्ति आरएसएस का परमपूज्य गुरुजी है? मैं भी स्कूल में बाल स्वयंसेवक रहते हुए गोल्वल्कर को बहुत बड़ा ऋषि मानता था, बाल-दाढ़ी भी उनकी प्राचीन ऋषियों सी लगती थी। इसी पुस्तक में आरएसएस के पपू (परम पूज्य) गुरुजी ने हिटलर द्वारा यहूदी नस्ल के नरसंहार को भारत के हिंदुओं के लिए अनुकरणीय बताया है। इसी किताब में पपू गुरु जी ने नया भूगर्भशा्त्रीय सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए उत्तरी ध्रुव को प्राचीनकाल में उड़ीसा-बिहार ( शायदआज का झारखंड) स्थापित किया है। वे वैदिक आर्यों को भारत का मूल निवासी मानते थे, उनसे जब तिलक की आर्यों के उत्तरी ध्रुव क्षेत्र से भारत आने की मान्यता पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि दुनिया की हर चीज की ही तरह उत्तरी ध्रुव भी चलायमान हौ और लोकमान्य तिलक को नहीं मालुम था कि उत्तरी ध्रुव अति प्राचीन काल में उस जगह था, जिसे आज हम उड़ीसा और बिहार कहते हैं। (लगभग 40 साल पहले पढ़ा था तो होसकता है उद्धरण शब्दशः न हो।)

Sunday, July 13, 2025

शिक्षा और ज्ञान 376 (धर्मांधता)

 एक पोस्ट पर कमेंट:


अराजनैतिक राजनीति बहुत ही खराब है। 1947 में निरक्षरता दर लगभग 100 फीसदी थी, जो 1951 में 18.3% और 1961 में 23.89% हो गयी। 1949 में चीन में निरक्षरता दर लगभग भारत के बराबर थी . 1961 चीन 100% साक्षर हो गया। पिछले 10 सालों में हजारों विद्यालय बंद हो गए और विश्वविद्यालयीय शिक्षा नष्ट कर लदी गयी। कॉलेज-विश्व विद्यालयों में गधा बनाने की पढ़ाई कराई जा रही है, इन बच्चों के इंसान बनने में हमसे कई गुना अधिक मेहनत करनी पड़ेगी, वैज्ञानिक सोच की शिक्षा को हतोत्साहित कर शिक्षा से धर्मांधता और अंधविश्वास प्रोत्साहित किया जा रहा है जिससे आपकी तरह रटा भजन गाने वाले अंधभक्तों की फौज तैयार की जा सके। अंग्रेज अपने सांप्रदायिक हिंदू-मुसलमान दलालों की सक्रिय मदद से देश बांटकर आर्थिक रूप से रेंगता छोड़कर गए थे और 10 सालों में देश अपने पैरों पर खड़ा हो गया लेकिन अराजनैकता की खतरनाक राजनीति करने वाले अंधभक्त तो रटाया भजन की गाते रहेंगे।

Saturday, July 12, 2025

गोरख की याद के बहाने

 बधाई। 'इसमें स्त्री रचनाकार भी शामिल हैं', प्रकांतर से पितृसत्तामक वक्तव्य है। 'स्त्रियां भी' अवाछनीय लगता है। यह सब हम लोगों से अनजाने में हो जाता है, जैसे लड़ी को बेटा कहकर साबाशी देना। हमें अपने शब्दों के चयन में सर्वदा सतर्क रहना चाहिए। सम्मेलन की सफलता की असीम शुभकामनाएं। अजय जी का ऐसे अचानक चले जाना जनसंस्कृति की बड़ी क्षति है। मैं तो चंद मुलाकातों में ही उनका मुरीद हो गया था। अजय भाई को क्रांतिकारी श्रद्धांजलि। मैं भी जसम के संस्थापना सम्मेलन का हिस्सा था। संस्थापना महासचिव गोरख बहुत जल्द चले गए, वे जानते थे कि 'अपने को किसी से कम नहीं' समझने वाले बुद्धिजीवी 'क्यों नहीं कुछ कर सकते' थे, फिर भी जल्दी ही चले गए। जसम के राष्ट्रीय सम्मेलन के अवसर पर संस्थापना महासचिव गोऱख पांडे की यादों को लाल सलाम। सम्मेसन की सफलता की पुनः ढेरों शुभकामनाएं।


https://ishmishra.blogspot.com/2020/04/blog-post_13.html

गिरने की राजनैतिक परंपरा

 सच कह रहे हो मित्र


 सच कह रहे हो मित्र
इस देश में गिरना राजनैतिक परंपरा बन गयी है

जो गिरने में जितने अधिक कीर्तिमान बनाता है
उतना ही बड़ा जनगणमन अधिनायक बन जा है
पुलों का गिरना तो उसका महज उपपरिणाम है
इंजीनियर और ठेकेदार नेता के पदचिन्हों पर चलते हैं
और भजन में प्रशिक्षित भक्त तो फिर भक्त होता है
राजनैतिक पतनशीलता का धार्मिक भजन गाता है
पुल के गिरने से सौ-पचास लोग मर जाते हैं
राजनेताओं के गिरने से हजारों लोग मरते हैं
और लाखों अपने ही घर में शरणार्थी बन जाते हैं
उससे भी बहुत बड़ी बात यह होती है
गिरने की गौरवशाली परंपरा बन जाती है
दावारों पर इस नारे केै इश्तहार दिखते हैं
गिरो गिरो और गिरो और गर्व से कहो
हम गिर के रहेंगे और गिरते ही रहेंगे
पतनशीलता जिंदाबाद जिंदाबाद जिंदाबाद
(ईमि: 11.07.2025)

Monday, July 7, 2025

क्रांति

 5 दशक पहले दीवारों पर लिखते हुए नारे

70 के दशक को मुक्ति का दशक होने के

पिछले चौराहे तक पहुंची क्रांति का करते हुए इंतजार
जो रूस में 10 दिनों की उथल-पुथल से
हिला-चुकी थी दुनिया
जिसकी कंपन से घबराए
यूरोप के धनपशुओं ने एडम स्मिथ को कह दिया था अलविदा
और लगाया था कीन्स को गले
अपनाया था कल्याणकारी राज्य
पहुंची जब चीन गांवों से शहरों को घेरते हुए
रुकी नहीं बड़ती ही गयी
चीन से चलकर क्यूबा और फ्रांस होते हुए
वियतनाम पहुंच कर दिगदिगंत को गुंजायमान कर
हो हो हो ची मिन्ह वी शैल फाइट वी शैल विन के नारों से
आगे बढ़ पहुंची हिदस्तान के दूर दराज के गांव नक्सबाड़ी
देश भर में निकल पड़े थे लोग लगाते हुे नारे
आमार बाड़ी तोमार बाड़ी सबेर बाड़ी नक्सबाड़ी
लेकिन क्रांति चौराहे से आगे नहीं बढ़ी
ढक लिया उसे प्रति क्रांति के गुबार ने
भक्तिभाव के अहंकार ने
पूछा था मार्क्स से तब मैंने अब क्या?
उन्होंने कहा संघर्ष संघर्ष और संघर्ष
(ईमि: 08.07.2025)