मानवता को यदि मुकम्मल देखना है
मानवता को यदि मुकम्मल देखना है
अपनी नातिनों के तानों से अगर बचना है
तो उठाने ही पड़ेगें अभिव्यक्ति के खतरे
तोड़ने ही पड़ेंगे फासीवाद के सारे मठ
आइए सस्वर सामूहिक पाठ करें
कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो और जाति के विनाश का
और जन-जन तक पहुंचाएं सोच
भगत सिंह के इंकिलाब की
आइए मिलते हैं जय भीम-लाल सलाम अभिवादन के साथ
और लगाते हैं गगनचुंबी बुलंद आवाज में
नारे इंकलाब जिंदाबाद के।
इंकलाब-ओ-इंकलाब
इंकलाब जिंदाबाद।
(ईमि: 09.11.2023)
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