वर्ण विभाजन भी उत्पादन संबंधों के ही आधार पर शुरू हुआ, उत्पादन के संसाधनों पर आधिपत्य वाला वर्ण ही शासक वर्ग बना तथा कालातंर में शासक वर्गों (वर्णों) ने इसे रूढ़िगत-परंपरागत कर दिया। जाति का विनाश शेखचिल्ली समाजवाद की अवधारणा नहीं है बल्कि वैज्ञानिक समाजवाद का पूर्वकथ्य है। यूरोप में नवजागरण और प्रबोधन क्रांतियों के दौरान जन्म आधारित सामाजिक विभाजन समाप्त हो गया और मार्क्स-एंगेल्स ने लिखा कि पूंजीवाद ने सामाजिक विभाजन को सरल बना दिया तथा समाज पूंजीवाद वर्ग और सर्वहारा वर्ग के खेमों में बंट गया। भारत में ऐसी कोई सफल सामाजिक क्रांति हुई नहीं और अब सामाजिक न्याय और आर्थिक न्याय के संघर्षों की द्वंद्वात्मक एकता की आवश्यकता है। इसीलिए जय भीम-लाल सलाम का नारा प्रासंगिक है।
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