Ajay Patel आपके अंतिम बात से बिल्कुल सहमत हूं। पूर्वाग्रहों से मुक्ति निरंतर प्रतिक्रिया है। हम कई बाते प्रतिक्रिया में तैस में कह जाते है फिर अफशोस होता है। हमारे बचपन में हमारे गांव में जातिवाद (जाति आधारित भेदभाव) कायम था। लेकिन उसकी विद्रूपताओं और उसकी पीड़ा की मेरी समझ भोगे हुए यथार्थ पर नहीं देखे हुए यथार्थ पर आधारित है तो शायद उतना प्रामाणिक न हो। प्रतिक्रिया में जातिवाद की दलित प्रज्ञा और दावेदारी के अभियान में एक प्रगतिशील भूमिका रही है। लेकिन मुझे लगता है कि अस्मितावादी राजनीति अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभा चुकी है, अब उसके जनवादीकरण की जरूरत है, वर्ग चेतना के प्रसार के अभियान को नेतृत्व प्रदान करने की। दलित प्रज्ञा और दावेदारी के अभियान के फलस्वरूप, आज कोई खुलकर जातिआधारित भेदभाव का समर्थन नहीं कर सकता, इसे मैं ऐंटी-कास्टिज्म की सैद्धांतिक विजय मानता हूं । मैं गलत हो सकता हूं, फिलहाल मुझे ऐसा ही लगता है। इस सैद्धांतिक विजय को जमीन पर उतारने के लिए अब अस्मितावादी चेतना को आगे बढ़ना चाहिए।
मैं आपके-अपने जन्म की बात नहीं कर रहा, एक प्रवृत्ति की बात कर रहा था, शायद ढंग से नहीं कह पाया, आपको ऐसा लगा तो कहने के तरीके के लिए माफी। उपरोक्त कमेंट लिखने के पहले एक और पोस्ट पर कुछ लोग मेरी बात पर नहीं, मेरे नाम के पुछल्ले पर ही बात कर रहे थे और वह कमेंट संचित पीड़ा की प्रतिक्रिया थी। माफी चाहता हूं। साथी कोई अंतिम सत्य नहीं होता, सार्थक संवाद से ही सापेक्ष सत्य की समझ बन सकती है।
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