मार्क्स ने 'राजनैतिक अर्थशास्त्र की समीक्षा में एक योगदान' की भूमिका में लिखा है कि सामाजिक उत्पादन के विकास के हर चरण के अनुरूप सामाजिक चेतना का स्तर व स्वरूप होता है। सामाजिक चेतना के स्वरूप के लिहाज से भगत सिंह समय से आगे थे और गांधी समय के साथ। पिछले 30-35 वर्षों में सामाजिक चेतना अधोगामी गति से चल रही है। हमारा काम शासकवर्ग के विचारों की आभा से प्रभावित सामाजिक चेतना का जनवादीकरण है, जिसके लिए जाति (जातिवाद) और धर्म (सांप्रदायिकता) की मिथ्या चेतनाओं से मोहभंग (मुक्ति) आवश्यक शर्त है।
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