आवारगी की ज़िंदगी भी अजीब है
जरूरत नहीं होती संभलकर चलने की
बेपरवाही-ए-अंजाम भी कमाल है
खुद-ब-खुद आ जाता है
जज़्बा-ए-जुर्रत बगागावत का
सपने देखतेै रहे हसीन दुनिया की
कदम पड़ते रहे राह बनती गयी
ठोकर खाते रहे हिम्मत बढ़ती गयी
लड़खड़ाते रहे और गिरते रहे
मगर लड़ते रहे और बढ़ते रहे
लड़ते रहे पढ़ने के लिए
और पढ़ते रहे ज़ुल्म से लड़ने के लिए
चलते रहे और गिरते रहे
उठते रहे फिर चलते रहे
कटते रहे और मुस्कराते रहे
मरते रहे और जीते रहे
उठते रहे और लड़ते रहे
बढ़ते रहे और कटते रहे
मुड़कर मगर पीछे देखा नहीं.
(ईमिः25.07.2016)
No comments:
Post a Comment