Sunday, July 24, 2016

अफवाह फैला दो

अफवाह फैला दो कि अच्छे दिन आ गये हैं देश में
उसी तरह जैसे
उन्नीस सौ चौरासी में फैलाया था
पंजाब से दिल्ली आने वाली गाड़ियों में
आई हिंदुओं की क्षत-विक्षत लोशों की
या बंगला साहब में एके 47 से लैस आतंकवादियों की मौजूदगी की
उसी तरह जैसे फैलाया था दो दजार दो में
गुजरात के कल्लोल में कटे स्तनों वाली हिंदू महिलाओं की लाशों की
नहीं होना चाहिए अफवाहों में कोई विरोधाभास
ताकीद कर दो हर अफवाहबाज को
रटने को यह अफवाह शब्दशः
नमस्ते सदा मातृ भूमि वाली प्रार्थना की तरह
भले न समझें अपवाह का मतलब
लेकिन एक भी शब्द इधर-से-उधर न हो
कि मान लें लोग आ गये हैं अच्छे दिन
उसी तरह जैसे मान लिया था बसेहरा गांव के गोरक्षकों ने
अख़लाक़ के गोभक्षी होने की बात
भीड़ की कायराना बहादुरी ने कर दिया था उसका काम तमाम
इतना प्रामाणिक बना दो अफवाह को
कि मान लें दुनिया के सारे देशभक्त
अच्छे दिन की नई परिभाषा
न मानने वाले देशद्रोहियों के लिए यूएपीए है ही
चाहे वह बुजुर्ग विद्वान कोबाड गांधी हों
या फिर पहिए की कुर्सी वाला प्रोफेसर सांईबाबा
नीचे सूक्ष्म अक्षरों में लिख दो एक पुनश्च
खबर लिखने तक घटना की पुष्टि नहीं हो पाई है
उसी तरह जैसे किया था कई गुजराती अखबारों ने दो हजार दो में.
(बहुत दिनों से कलम ने आवारागर्दी छोड़ दी थी, लेकिन पुरानी आदतें यूं ही नहीं छूटती, और अतीत भी कोई गर्द नहीं कि उड़ा दिया जाए एक उड़ती कविता में.)
(ईमि: 24.07.2016)

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