Monday, December 19, 2011

अदम

अदम जी से पिछले एक साल से लगातार संपर्क में था. अंतिम बार बीमार पड़ने और PGI में भारती होने के एक सप्ताह पहले फोन पर बात हुई थी और उन्होंने बताया था की कुछ दिन अस्पताल में रह कर वे स्वस्थ महसूस कर रहे थे और "प्रभाती" भी छोड़ दिए थे. एक महीने के अन्दर दिल्ली एम्स में इलाज़ करने आने वाले थे और Gastrontology के प्रोफेस्सर और अदम के प्रशंसक डॉ अनूप सराय से बात भी हो गयी थी लेकिन......
अदम २८ मार्च को दिल्ली हिंदी भवन में कविता पढ़ने आये थे और २९ मार्च को "समय से मुठभेड़" की प्रति देने मेरे घर आये उसी रात उन्हें वापस जाना था. १४ अप्रैल को हिन्दू कॉलेज में आंबेडकर दिवस पर उनका काव्यपाठ का कार्यक्रम था. आयोजन हिन्दू कालेज के ही रतनलाल ने किया था. उनके बेटे आलोक भी साथ थे. इतिहासकार डी.एन. झा की सदारत में भव्य कार्यक्रम हुआ. कुछ कवितायें उन्होंने पढ़ा और कुछ मेरे समेत उनके प्रशंसकों -- काली प्रसाद मौर्या, रविकांत और कृपाल--ने. जो भी मानदेय मिला उसका इस्तेमाल उन्होंने ने गेंहू की मड़ाई पर खर्च किया. शराब पीते थे अदम लेकिन शराबी (अल्कोहलिक) नहीं थे. १६ दिसंबर को अन्य मित्रों के साथ मैंने भी फेसबुक पर योगदान के लिए पोस्ट लिया था और १७ की रात उनके फोन पर उनके भतीजे दिलीप से बात हुई तो पता चला होश में आ गए हैं लोगों को पहचान रहे हैं लेकिन बात नहीं कर पा रहे हैं. १८ की सुबह बात करने की आशा में के फोन करने पर दिलीप से ही दुखद खबर मिली. इतना बड़ा आदमी और इतनी सहजता-- कोटिक नमन मान्यवर. अदम मित्रों और प्रशंसकों को आदरणीय कहते थे.
मित्रों! कैसी विडम्बना है,अदम जैसा क्रांतिकारी कवि जीवन के अंतिम साल पैसों के अभाव में बिताए ज़िंदगी से किसी समझौते के बगैर ......... नेहरु जी ने निराला को वजीफा देने का आग्रह हिंदी साहियासभा तत्कालीन अध्यक्ष को ख़त लिखा था लेकिन आज के हुक्मरानों में घोटालों की चिंता रहती है कवियों की नहीं वह भी ऐसा कवि जो संसद को नखास कहे और बगावत की वकालत करे!
अदम की क्रांतिकारी विरासत को आगे बढाने की जरूरत है. लाल सलाम

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