Tuesday, December 20, 2011

adam ko lal salam

आप मजरूह का शेर सुनया करते थे, " सुतून-ए-दार पर रखते चलो सरों के चिराग़ ,के जहां तक यह सितम की सियाह रात चले." और एक सच्चे मार्क्सवादी की तरह करनी और कथनी में एका स्थापित करते हुए सितम की सियाह रात तक सरौं के चराग रखते चलते रहे. दूर तक जायेगी लौ इन चरागो की. विदा होने के बाद आप और खतरनाक हो गये हैं "कमीसन लेकर 'हिंदुस्तान को नीलाम' करने वाले लोगों के लिये. लाल सलाम मान्यवर. मुझे फक्र है कि आप मुझे मित्र और अनुज मानते थे. आप कभी नही मरेंगे मान्यवर! थोड़े दिन और रुक्ते तो कितना कुछ और दे जाते! आपके साथ बीता कुछ समय और कुछ शामें मेरी जीवनी के अहम हिस्से होंगे. आपकी सुंदर लिखावट में दस्त्खत के सथ अपने इस "प्रिय अनुज" को भेंट की गयी "समय' से मुठभेड़" मैं अपने grandchildren के लिये सुरक्षित रखूँगा. लाल सलाम मान्यवर.

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