सत्योत्तर युग में बोलना राजद्रोह माना जाता है
सत्योत्तर युग में बोलना राजद्रोह माना जाता है
क्योंकि राजा को लगता है
कि जो भी बोलता है जो भी बोलेगा वह उसके विरुद्ध होगा
हर निरकुंश राजा कायर होता है और लोगों से डरता है
जब भी सुदृढ़ सुरक्षा घेरे में उसका कारवां सड़क पर निकलता है
सड़कें खाली करवा लेता है
क्योंकि कि उसको लगता है
कि लोग सड़क पर निकलेंगे तो उसके विरुद्ध जुलूस बन जाएंगे
और जुलूस से उसे डर लगता है
वह गोरख पांडेय के शब्दों में
तमाम धनदौलत गोला बारूद के बावजूद वह इस बात से डरता है
कि निहत्थे लोग उससे डरना न बंद कर दें
वह निहत्थे लोगों से इतना डरता है
कि वह सेना-पुलिस की बदौलक उन्हे डराकर रखना चाहता है
कि लोग डरें और चुप रहें
क्योंकि उसे लोगों का बोलना अपने विरुद्ध बगावत लगता है
और उन्हें राजद्रोह के मुकदमों से डराना चाहता है
लेकिन डर डर नहीं जी जाती जिंदगी
डर डर मरता है मनुष्य टुकड़ों में
इसलिए बंद करिए डरना और बोलिए, बोलते रहिए
और नहीं तो खुद को यह एहसास दिलाने के लिए बोलते रहिए
कि आप अभी भी जिंदा हैं
जो भी मन में आए बोलिए और बोलते रहिए
एक दिन आपके बोलने से इतना डर जाएगा राजा
कि भाग जाएगा
और बोलना राद्रोह नहीं, मुक्ति का गीत बन जाएगा
मानव मुक्ति का गीत।
(ईमि: 02.06.2023)
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