इलाहाबाद छोड़ने के बाद कई साल तक दिल्ली से घर (शाहगंज रेलवे स्टेसन से उतरकर आजमगढ़ जिले में पवई के पास अपने गांव) जाते हुए इलाबाद होते हुए जाता था। 1984 में पोलिटिकल डिपार्टमेंट में लेक्चरर का इंटरविव देने गया। बहुत अच्छा हुआ, बाहर निकलकर अपनी बारी का इंतजार करते लोगों में से किसी को आश्चर्य के लहजे में कहते सुना "बाप रे! 1 घंटा 28 मिनट? मैं भी काफी आशान्वित हो गया और सोचने लगा कि गंगा के उस पार नये बस रहे झूसी में घर लिया जाए या इस पार तेलियरगंज में? उसके 2 साल बाद तत्कालीन वीसी (आरपी मिश्र) से दिवि के दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स (डी स्कूल) में मुलाकात हुई तो उन्होंने बताया कि वे मेरे इंटरविव से इतने प्रभावित हुए थे कि मेरा नाम पैनल में सातवें स्थान पर रखवाने में सफल रहे। मैंने कहा था कि 6 पद थे तो मेरा नाम सातवें पर रखते या सत्तरवें पर क्या फर्क पड़ता?
Monday, November 14, 2022
तलाशेमाश
Monday, November 7, 2022
पहली नजर में इश्क
पहली
नजर में इश्क
राणा
शफवी
यह एक अलग किस्म की प्रेम कहानी है, एक ऐसे राजकुमार की, जिसकी छवि एक निर्मम, हठी, और धार्मिक कट्टरवादी की है, जिसका प्यार-मुहब्बत से 36 का आंकड़ा है। यह मुगल सम्राट औरंगजेब की पहली नजर के इश्क की कहानी है।
1836 में औरंगजेब दकन का सूबेदार था। दिल्ली से औरंगाबाद जाते हुए वह रास्ते में अपनी खाला (मौसी) से मिलने के लिए बुड़हानपुर रुका। उसके मामा, सैफ खां वहां के सूबेदार थे। उसके बाद की कहानी के बारे में कई कहावतें हैं लेकिन सबका लब्बोलुबाब यही है कि उसे अपनी मौसी के हरम की एक औरत से पहली ही नजर में इश्क हो गया। उसका नाम था हीराबाई।
नवाब शम्सुद्दौला और उनके बेटे अब्दुल हई खान द्वारा 18वीं शताब्दी में लिखे ग्रंथ, ‘मा असिर अल-उमरा’ में इस प्रकरण का विस्तृत विवरण मिलता है।
एक दिन शाहजादा हरम की स्त्रियों के साथ ज़ैनाबाद बुड़हानपुर के अहू-खाना (हिरण उद्यान) नामक बगीचे में सैर के दौरान अपने चुनंदा साथियों के साथ चहलकदमी कर रहा था। हीरा बाई, खूबसूरती में बेजोड़ तथा अपनी संगीत के कौशल से होश उड़ा देने वाली, जैनाबादी खान-ए-ज़मां की पत्नी (शहजादे की ग़जल खाला) के साथ आई थी। फलों से लदे आम के पेड़ को देखकर, शाहजादे की उपस्थिति से बेपरवाह हर्षोल्लास में, वह उछल-उछल कर आम तोड़ने लगी। उसकी इस अदा पर शाहजादा दीवाना हो गया।
अपनी अडिग (कट्टर) धार्मिकता के बावजूद औरंगजेब संगीत का पारखी तथा कुशल वीणावादक था। हीराबाई की खूबसूरती और संगीत कौशल ने शाहजादे को दीवाना बना दिया। कहा जाता है कि वह उस पर इस कदर मोहित हो गया कि उसने उसकी शराब पीने की बात मान ली। लेकिन जैसे वह शराब का प्याला होठों से लगाने को हुआ, हीराबाई ने उसे यह कह कर रोक दिया कि वह तो उनके प्यार की परीक्षा ले रही थी।
एक कट्टर धार्मिक शहजादे का शराब पीने के लिए राजी हो जाना उसके लिए उसकी बेइम्तहां चाहत बयान करता है।
अकबर ने हरम के सुचारु संचालन के लिए हरम की औरतों के नाम उस जगह के नाम
पर रखने का आदेश दिया था जहां से वे आई थीं, जो आगे चलकर मुगल हरम का रिवाज बन
गया। इसलिए औरंगजेब के हरम में आने के बाद हीराबाई का नाम ज़ैनाबादी पड़ गया।
एकांत में मातम
1640 में लिखे गए अहकाम-ए-औरंगजेब में औरंगजेब के जीवनीकार हमीदुद्दीन निमचाह, बुडहानपुर प्रकरण का अलग किस्सा बताते हैं। उनके अनुसार,यह मुलाकात तब हुई थी जब शाहजादे बिना बताए हरम में चले गए। हीराबाई को देखते ही उनके होश उड़ गए। मौसी के पूछने पर उसने अपने दर्द-ए-दिल का बयान किया और इलाज पूछा। उसके हरम की एक औरत के बदले उसे हीराबाई भेंट की गयी। उसके बाद के जज्बात और सम्मोहन का वर्णन इसमें भी वैसा ही दिया हुआ है। मा’असिर उमरा में बताया गया है कि औरंगजेब की प्रेम कहानी इतना आगे बढ़ गयी कि इसकी भनक शाहजहां के कानों तक पहुंच गयी। कहा जाता है कि उसके प्रतिद्वंद्वी, भाई, दारा शिकोह ने अपने पिता शाहजहां से शिकायती लहजे में कहा था, “पवित्रता और संयम का पाखंड करने वाले इस धूर्त की करतूत देखिए, मौसी की हवेली की एक लड़की के लिए इसका यह काला कारनामा देखिए।”
लेकिन हीराई ज्यादा दिन साथ नहीं रही, जल्दी ही उसकी मौत हो गयी। उसकी मौत से शाहजादा गम के समंदर में डूब गया। उसे औरंगाबाद में दफनाया गया। मा’असिर अल-उमरा में बताया गया है कि अपनी प्रेमिका की मौत के गम से वह इतना बेचैन हो गया कि महल छोड़ कर शिकार पर निकल गया। जब कवि मीर अक्सरी (अकील खां) ने गम में अपनी जान जोखिम डालने का उलाहना दिया तो शाहजादे ने कहा, “घर में बैठकर रोने से दिल का बोझ नहीं हल्का हो सकता, दिल का दर्द कम करने के लिए एकांत में ही जी भर कर रोया जा सकता है। अकील खां ने अपना एक शेर सुनाया,
“कितनी आसान लगती थी मुहब्बत, लेकिन अफशोस, है ये बहुत मुश्किल,
बहुत घना है जुदाई का गम, मगर इससे महबूबा को तो कुछ न मिला!
शाहजादे के आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। कवि का नाम याद करने की नाकाम कोशिसों के बाद उसने इस कविता की पंक्तियां कंठस्थ कर ली।
अधूरा वर्णन
“अपने हरम की एक नर्तकी पर औरंगजेब इतना मुग्ध हो गया कि कुछ समय तक वह नमाज और अन्य धार्मिक अनुष्ठान भूल कर संगीत और नृत्य में खोया रहा। इतना ही नहीं, उस नर्तकी के कहने पर वह शराब में खुशी तलाशने लगा। नर्तकी की मौत के बाद औरंगजेब ने शराब और संगीत से दूर रहने की कसम खा ली। बाद के दिनों में वह कहता रहता था कि ईश्वर ने उस नर्तकी को अपने पास बुलाकर उस पर बहुत मेहरबानी की थी। उसी के कारण वह भोग-विलास में लिप्त होकर अधर्म के रास्ते पर चल पड़ा था और दुराचार पर कभी नियंत्रण न कर पाने के खतरे में फंस गया था।”
आइए इस वेलेंटाइन दिवस पर कुरान पढ़ने वाले तथा सादगी से रहने वाले कट्टर धार्मिक, औरंगजेब की छवि में एक अपवाद जोड़ दें कि एक बार जवानी की भावुकता में बहकर उसने अपने प्रेम पर सारी दुनिया निछावर कर दिया था।
अंग्रेजी से अनुवाद
: ईश मिश्र
Tuesday, November 1, 2022
मार्क्सवाद 276 (अस्मितावाद)
Ajay Patel आपके अंतिम बात से बिल्कुल सहमत हूं। पूर्वाग्रहों से मुक्ति निरंतर प्रतिक्रिया है। हम कई बाते प्रतिक्रिया में तैस में कह जाते है फिर अफशोस होता है। हमारे बचपन में हमारे गांव में जातिवाद (जाति आधारित भेदभाव) कायम था। लेकिन उसकी विद्रूपताओं और उसकी पीड़ा की मेरी समझ भोगे हुए यथार्थ पर नहीं देखे हुए यथार्थ पर आधारित है तो शायद उतना प्रामाणिक न हो। प्रतिक्रिया में जातिवाद की दलित प्रज्ञा और दावेदारी के अभियान में एक प्रगतिशील भूमिका रही है। लेकिन मुझे लगता है कि अस्मितावादी राजनीति अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभा चुकी है, अब उसके जनवादीकरण की जरूरत है, वर्ग चेतना के प्रसार के अभियान को नेतृत्व प्रदान करने की। दलित प्रज्ञा और दावेदारी के अभियान के फलस्वरूप, आज कोई खुलकर जातिआधारित भेदभाव का समर्थन नहीं कर सकता, इसे मैं ऐंटी-कास्टिज्म की सैद्धांतिक विजय मानता हूं । मैं गलत हो सकता हूं, फिलहाल मुझे ऐसा ही लगता है। इस सैद्धांतिक विजय को जमीन पर उतारने के लिए अब अस्मितावादी चेतना को आगे बढ़ना चाहिए।
मैं आपके-अपने जन्म की बात नहीं कर रहा, एक प्रवृत्ति की बात कर रहा था, शायद ढंग से नहीं कह पाया, आपको ऐसा लगा तो कहने के तरीके के लिए माफी। उपरोक्त कमेंट लिखने के पहले एक और पोस्ट पर कुछ लोग मेरी बात पर नहीं, मेरे नाम के पुछल्ले पर ही बात कर रहे थे और वह कमेंट संचित पीड़ा की प्रतिक्रिया थी। माफी चाहता हूं। साथी कोई अंतिम सत्य नहीं होता, सार्थक संवाद से ही सापेक्ष सत्य की समझ बन सकती है।
अगले जन्म में मुलाकात
दशकों पहले
परीक्षा के बाद जब हम आखिरी बार मिले थे
हीरा हलवाई की दुकान पर
उसने कहा था चाय की चुस्कियों के साथ
कि अब हम शायद अगले जन्म में ही मिलें
लेकिन किसी का भी अगला जन्म तो होता ही नहीं
सही कह रही हो इस जन्म में कभी टकरा भी गए
तो शायद ही पहचान पाएं एक दूसरे को
इतनी लंबी अपरिचित मुद्दत के बाद
और अब तो 50 साल हो गए
कभी टकराए नहीं।
01,11,2022
मार्क्सवाद 275 (वर्ग-वर्ण)
वर्ण विभाजन भी उत्पादन संबंधों के ही आधार पर शुरू हुआ, उत्पादन के संसाधनों पर आधिपत्य वाला वर्ण ही शासक वर्ग बना तथा कालातंर में शासक वर्गों (वर्णों) ने इसे रूढ़िगत-परंपरागत कर दिया। जाति का विनाश शेखचिल्ली समाजवाद की अवधारणा नहीं है बल्कि वैज्ञानिक समाजवाद का पूर्वकथ्य है। यूरोप में नवजागरण और प्रबोधन क्रांतियों के दौरान जन्म आधारित सामाजिक विभाजन समाप्त हो गया और मार्क्स-एंगेल्स ने लिखा कि पूंजीवाद ने सामाजिक विभाजन को सरल बना दिया तथा समाज पूंजीवाद वर्ग और सर्वहारा वर्ग के खेमों में बंट गया। भारत में ऐसी कोई सफल सामाजिक क्रांति हुई नहीं और अब सामाजिक न्याय और आर्थिक न्याय के संघर्षों की द्वंद्वात्मक एकता की आवश्यकता है। इसीलिए जय भीम-लाल सलाम का नारा प्रासंगिक है।