Wednesday, June 25, 2025

मार्क्सवाद 352 (नक्सल)

 नक्सलवाद पुलिस तथा सरकार द्बवारा विकसित-प्रचारित बहुत भ्रामक शब्द है। इसकी उत्पत्ति उत्तरी बंगाल के दार्जलिंग जिले के सिलीगुड़ी ताल्लुके के एक दूर-दराज नक्सबाड़ी के नाम से हुई। 1967 में जमीन के पुनर्निवितरण और समुचित खेत मजदूरी के लिए स्थानीय किसानों ने शांतिपूर्ण आंदोलन शुरू किय जिस पर पुलिस की गोलीबारी के विरुद्ध आस-पास के गांवो के किसान और चायबगानों के मजदूर आंदोलित हो गए। उस समय बंगाल में बांगला कांग्रेस के अजय मुखर्जी के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चा की सरकार थी जिसमें ज्योतिबसु उपमुख्यमंत्री और वित्तमंत्री थे। सीपीएम की कुछ चायबगान यूनियनों तथा स्थानीय कमेटियों के कुछ नेताओं चारु मजूमदार, जंगल संथाल, कणु सन्याल आदि ने सीपीएम से विद्रोह कर नक्सलबाड़ी विद्रोह का समर्थन किया जिसके समर्थन की आवाजें कैंपसों में भी सुनाई दीं। संयुक्त मोर्चा सरकार ने आंदोलन का निर्मम दमन किया। संयुक्त मोर्चा सरकारल की बर्खास्गी के बाद कुख्यात सिद्धार्थ शंकर रॉय की कांग्रेस सरकार ने दमन की निर्ममता तेज कर दी। हजारों युवा कत्ल कर दिए गए। जिसका जीवंत चित्रण महाश्वेता देवी का उपन्या हजार चौरासीवें की मां है। 1969 में देश भर के क्रांतिकारी समूहों ने मिल कर सीपीआई (एमएल बनाया) जिसके नेताओं की धरपकड़ शुरू हुई। चारु मजूमदार जेल में ही 1972 में दम तोड़ दिए। उसके बाद सीपीआईएमएल के असंख्य टुकड़े हुए, ज्यादातर जनांदोलनों के पक्षधर है। सशस्त्र संघर्ष की पक्षधर केवल सापीआई (माओइस्ट) है।

Sunday, June 8, 2025

शिक्षा और ज्ञान 372 (तेलंगाना)

 सही कह रहे हैं,तेलंगाना में आत्म समर्पण के लिए राजी माओवादियों को बेरहमी से मार डाला जाना असंवैधानिक है। उन पर भारतीय दंडसंहिता के प्रावधानो के तहत मुकदमा चलाना चाहिए। आदिवासियों और कॉरपोरेट के मामले में भाजपा और कांग्रेस के नजरिए में कोई फर्क नहीं है। जहां माओवादियों के खात्में की खबर छपती है, वहीं बगल में उससे बड़ी खबर आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन का टेंडर किसी बड़े धनपशु (कॉरपोरेट) के नाम खुलने की खबर होती है। धर्मांध सांप्रदायिकता इनका छिपा एजेंडा नहीं है, वह तो खुला एजेंडा है, उसके पीछे का छिपा एजेंडा देश के संसाधन देशी-विदेशी धनपशुओं के हवाले करके आम जनता को भाग्य के हवाले करने का है।

Tuesday, June 3, 2025

बेतरतीब 171 (इमा)

 इमा के नाम की कहानी ज्यादा दिलचस्प है। यह जब पैदा हुई तो नाम सोचने लगा। किसी पत्रिका में यदि दो लेख छपते तो दो बाईलाइन अच्छी नहीं लगती और लिखे का मोह भी नहीं छूटता था, तो छोटे लेख के नीचे, ईश मिश्र का संक्षिप्त रूप ईमि, लिख देता। ईमि की ई को इ कर दिया और मि को मा। इमा हो गया। बाद में पता चला कि कई भाषाओं में इसके अर्थ भी हैं। जब माटी अपनी मां के पेट में थी तो इमा ने कहा कि "दीदी" के बेटी का उन्ही लोगों सा कोई अच्छा सा नाम सोचकर बताऊं। मैंने कहा तुम लोगों का नाम तो बिना सोचे रख दिया था, इसका नाम माटी रख देते हैं। उसने कहा लड़का हुआ तो ढेला? मैंने कहा था तब सोचूंगा। सोचना नहीं पड़ा, माटी ही आ गयी।