कृष्णमोहन की पुस्तक 'गुलाम बौद्धिकता'के संदर्भ में Gyan Prakash Yadav की पोस्ट पर कमेंट:
क्या संयोग है कि मैंने भी यह पुस्तक, 'गुलाम बौद्धिकता' पिछले साल मेले में ही खरीदी थी। ज्यादातर शैक्षणिक नौकरियां शिक्षणेतर कारणो (extra academic consideraions) से मिलती हैं, साथ में शैक्षणिक सक्षमता भी होना, अतिरिक्त योग्यता है। ऐसे में तमाम लुच्चे-लफंगे प्रवृत्ति के लोगों का प्रोफेसर होना आश्चर्यजनक नहीं लगना चाहिए। नाम में मिश्र के पुछल्ले के बावजूद मैंने दिल्ली एवं अन्य विश्वविद्यालयों में 14 साल इंटरविव दिए। 1984 में इलाहाबाद विवि में मेरा इंटरविव एक घंटे से अधिक चला, 6 पद थे, मैं सोचने लगा था कि गंगापार नया नया धूसी बन रहा था वहां घर देखूं या गंगा इस पार तेलियर गंज में, हा हा। उसके कुछ साल बाद तत्कालीन कुलपति कहीं टकरा गए और बताए कि मेरे इंटरविव से वे इतने प्रभावित हुए थे कि तमाम तर के बावजूद वे मेरा नाम पैनल में सातवें लंर पर रखवा पाए थे। 6 पद थे तो 7वें पर रखें या सत्तरवें पर? जब कोई कहता था कि मुझे नौकरी देर से मिली तो मैं कहता था कि सवाल उल्टा है, मिल कैसे गयी?
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