Thursday, July 24, 2025

बेतरतीब 173 (जौनपुर)

 मित्र Raghvendra Dubey ने मनोज कुमार को याद करते हुए जौनपुर में देखी पिक्चर उपकार के बहाने टीडी इंटर कॉलेज, जौनपुर की कुछ यादें शेयर किया नास्टेल्जियाकर मैंने यह कमेंट लिखा:


मैंने भी टीडी कॉलेज से 1969 में ही इंटर किया था, मैं विज्ञान का विद्यार्थी था तथा याद में याद रह गयी, पहली फिल्म मैंने भी अशोक टाकीज में उपकार ही देखी थी, गांव में फिल्मों के बारे में सुना था और कुछ फिल्मी गाने सुने थे। 1967 में 12 साल की उम्र में गांव से शहर आने पर एकाध फिल्में इसके पहले भी देखी थी, राजा हरिश्चंद्र और भूल चुकीं कुछ और फिल्में। इस फिल्म के बाद लोगों ने कहना शुरू किया था कि प्राण ने पहली बार खलनायक से अलग भूमिका निभाया था। मैंने प्राण को पहली बार उपकार में ही देखा, उसके बाद कई फिल्मों में। उस समय जौनपुर में उत्तम और अशोक दो ही टाकीज होते थे। 1970 या 1971 में रुहट्टा में राजकमल बना, वहां हम टीडी कॉलेज से नाला पार कर बेर के बगीचे के टीले की चढ़ाई से उतरकर, कालीकुत्ती होते हुए पहुंचते थे। कभी कभी ओलनगंज होकर भी चले जाते थे। राजकमल में पहली फिल्म हमने आनंद देखी थी। कभी कभी राजकमल में फिल्म देखकर मछलीशहर के पड़ाव होते हुए गोमती के लगभग किनारे बने प्राइवेट हॉस्टल , कामता लॉज चले जाते थे, जहां हमारे इलाके के ट्रेन के कुछ सहयात्री मित्र रहते थे, उनके साथ शाहीपुल पारकर चौक चाट खाने जाते थे। कभी कभी वहां से किराए पर साइकिल लेकर चौकिया चले जाते थे। 2 पैसे या एक आने घंटे की दर से साइकिल मिलती थी। कभी मेस बंद होता तो पुल के इस पार बलई शाह की दुकान पर (बेनीराम की मशहूर इमरती की दुकान के सामने) पूड़ी-कचौड़ी खाने चले जाते। अपनी पत्तल और कुल्हड़ खुद कूड़ेदान मे डालना पड़ता था।

Saturday, July 19, 2025

सरकारी पाठशाला

 बंद होगी जब सरकारी पाठशाला

 बंद होगी जब सरकारी पाठशाला
तभी तो चलेगी धनपशुओं की मधुशाला

दुकानें खुलेंगी ज्ञान-विज्ञान की
चारण गाएंगे गीत धनपशुों के शान की
सरकारी पाठशाला में पढ़ लेगा यदि गरीब
अंधभक्त बन ढोएगा नहीं अपना ही सलीब
नहीं रहेगा स्कूल और खेल का मैदान
उस जमीन पर बनाएगा अट्टालिका शैतान

शिक्षा और ज्ञान 179 (सरकारी स्कूल)

 सरकारी स्कूलों को बंद करने के समर्थन में एक पोस्ट पर किसी ने लिखा कि निजी स्कूल स्कूल अभिभावकों को लूटते तो हैं लेकिन अच्छी शिक्षा देते हैं। वैसे अच्छी शिक्षा क्या होती है, बहस का विषय है। मैं तो टाट-पट्टी स्कूल से पढ़ा हूं तथा डीपीएस जैसे संभ्रात निजी स्कूल में कुछ साल पढ़ा चुका हूं। उस पोस्ट पर एक कमेंट:


शिक्षा का धंधा करने वाले धनपशु अभिभावकों को अंग्रेजी शिक्षा के नाम पर लूटते हैं और बेरोजगारी की मार से मजबूरन इनकी चाकरी करने वाले मास्टरों को 5-10 हजार की मजदूरी देकर उनका खून चूसते हैं। दयनीय मजदूरी और काम की दयनीय परिस्थितियों में ये शिक्षक कितनी गुणवत्ता की शिक्षा देंगे, समझा जा सकता है। हम तो सरकारी स्कूलों के मास्टरों के चलते इतना पढ़-लिख लिए, धनपशुओं की दुकानों में दाम चुकाकर पढ़ने की स्थिति ही नहीं थी। उस समय तो कलेक्टर-कप्तान के बच्चे भी सरकारी स्कूलों में ही पढ़ते थे तथा उनका स्तर बनाए रखने का दबाव भी होता था, अब तो अधिकारी अपने बच्चों को इंपोरियम्स में भेजते हैं और छोटे अधिकारी दुकानों में, सरकारी स्कूलों में गरीब, मजदूरों के बच्चे ही जाते हैं और सरकार द्वारा स्तर बनाए रखने का कोई दबाव नहीं है तथा उसे सरकारी स्कूल बंद कर धनपशुओं की दुकानें चलने का इंतजाम करने का बहाना मिल जाता है। बाकी धनपशुओं के चारण तो सरकारी स्कूल बंद कराने का गीत गाते ही रहेंगे।

Thursday, July 17, 2025

शिक्षा और ज्ञान 179 (दिलीप मंडल)

 आरएसएस एक बार जिनका इस्तेमाल कर लेती है, उन्हें दो कौड़ी का बनाकर छोड़ देती है, एक जमाने में दिलीप मंडल को मित्र मानता था, कई बार घर पर खाना भी खाया है, लोग सोचते हैं वह अब बिका है, लेकिन वह 2016 (जेएनयू आंदेलन के समय) से ही बिकने की जुगाड़ में वामपंथ विरोधी मुहिम से जुड़ गया था, एक डेढ़ लाख माहवारी के अलावा उसे अडानी-अंबानी के चाकरों से कुछ नहीं मिल रहा, वह भी जैसे ही आरएसएस को लग जीाएगा कि वह दो कौड़ी का हो चुका है, दूध की मक्खी की तरह किसी गंदे नाले में फेंक देगी। जल्दी ही अंबेडकरी रामों की भी वही हाल होने वाली है। रामराज से उदित राज बना अंबेडकरी राम किनारे लग चुका है, जल्दी ही वही हाल राम अठावले और रामविलास के चिराग की भी होगी।


वैसे मंडल को यह नहीं मालुम क्या कि मुगलों के दरबारी राजपूत और मराठे थे, अकबर के जमाने में तो एक राणा प्रताप बच गए थे, औरंग जेब के समय तो सारा राजपुताना दरबारी थे, उसकी क्रूरता में दरबारियों का हाथ भी रहा होगा?

वैसे मंडल की तुलना मायावती से सटीक है।

Wednesday, July 16, 2025

शिक्षा और ज्ञान 378 (गाली और घूस)

 राही मासूम रजा का एक उपन्यास है आधा गांव उसमें संवादों में कुछ शब्द प्रचलित गालियों के रूप हैं, उनका दूसरा उपन्यास है, टोपी शुक्ला, जिसकी भूमिका में उन्होंने लिखा कि आधा गांव के बारे में लोगों को गालियों की शिकायत है, कहानी के पात्र यदि वेद के मंत्र या कुरान की आयतें बोल रहे होते तो मैं वही लिखता लेकिन सामाजिक वर्जनाओं के लिए कहानी के पात्रों की जुबान नहीं काटी जा सकती। टोपी शुक्ला में एक भी गाली नहीं है, लेकिन पूरा उपन्यास एक भद्दी सी गाली है, समाज के नाम। उद्धरण चिन्हों का इस्तेमाल इसलिए नहीं किया कि 46-47 साल पहले पढ़े उपन्यास की पंक्तियां शब्दशः याद नहीं हैं। लेकिन भक्ति भाव विवेक को कुंद कर देता है, आपको इनकी पूरी पोस्ट में गाली का एक शब्द खल गया लेकिन तेरह हजार घूस लेते बाबू की गिरफ्तारी और आठ करोड़ घूस लेते अधिकारी के विरुद्ध केवल चार्जशीट में विरोधाभास नहीं दिखाई नहीं देता।

Monday, July 14, 2025

शिक्षा और ज्ञान 377 (गोल्वल्कर)

 शमशुल इस्लाम एक प्रतिबद्ध इंकलाबी रंगकर्मी और बुद्धिजीवी हैं, उनकी बाकी बातें सही हो सकती हैं लेकिन उनका यह कथन कि1939 में छपी गोलवल्कर की किताब "We or our nation defined" को उनके द्वारा 1990 दशक में विवेचना के साथ प्रस्तुत करने के पहले, इसे कोई जानता नहीं था, उनका बड़बोलापन है। अरुण माहेश्वरी ने अपने फेसबुक लेख में यही बात कही है। 1987 में मैंने CWDS (Centre for Women's Development Studies) द्वारा sponsored एक शोधपत्र Woman's Question in Communal Ideologies: A Study into the Ideologies of RSS and Jamat-e-Islami में इस पुस्तक से विस्तृत उद्धरण दिए हैं। तभी लगा कि इतनी मूर्खतापूर्ण बातें लिखने वाला व्यक्ति आरएसएस का परमपूज्य गुरुजी है? मैं भी स्कूल में बाल स्वयंसेवक रहते हुए गोल्वल्कर को बहुत बड़ा ऋषि मानता था, बाल-दाढ़ी भी उनकी प्राचीन ऋषियों सी लगती थी। इसी पुस्तक में आरएसएस के पपू (परम पूज्य) गुरुजी ने हिटलर द्वारा यहूदी नस्ल के नरसंहार को भारत के हिंदुओं के लिए अनुकरणीय बताया है। इसी किताब में पपू गुरु जी ने नया भूगर्भशा्त्रीय सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए उत्तरी ध्रुव को प्राचीनकाल में उड़ीसा-बिहार ( शायदआज का झारखंड) स्थापित किया है। वे वैदिक आर्यों को भारत का मूल निवासी मानते थे, उनसे जब तिलक की आर्यों के उत्तरी ध्रुव क्षेत्र से भारत आने की मान्यता पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि दुनिया की हर चीज की ही तरह उत्तरी ध्रुव भी चलायमान हौ और लोकमान्य तिलक को नहीं मालुम था कि उत्तरी ध्रुव अति प्राचीन काल में उस जगह था, जिसे आज हम उड़ीसा और बिहार कहते हैं। (लगभग 40 साल पहले पढ़ा था तो होसकता है उद्धरण शब्दशः न हो।)

Sunday, July 13, 2025

शिक्षा और ज्ञान 376 (धर्मांधता)

 एक पोस्ट पर कमेंट:


अराजनैतिक राजनीति बहुत ही खराब है। 1947 में निरक्षरता दर लगभग 100 फीसदी थी, जो 1951 में 18.3% और 1961 में 23.89% हो गयी। 1949 में चीन में निरक्षरता दर लगभग भारत के बराबर थी . 1961 चीन 100% साक्षर हो गया। पिछले 10 सालों में हजारों विद्यालय बंद हो गए और विश्वविद्यालयीय शिक्षा नष्ट कर लदी गयी। कॉलेज-विश्व विद्यालयों में गधा बनाने की पढ़ाई कराई जा रही है, इन बच्चों के इंसान बनने में हमसे कई गुना अधिक मेहनत करनी पड़ेगी, वैज्ञानिक सोच की शिक्षा को हतोत्साहित कर शिक्षा से धर्मांधता और अंधविश्वास प्रोत्साहित किया जा रहा है जिससे आपकी तरह रटा भजन गाने वाले अंधभक्तों की फौज तैयार की जा सके। अंग्रेज अपने सांप्रदायिक हिंदू-मुसलमान दलालों की सक्रिय मदद से देश बांटकर आर्थिक रूप से रेंगता छोड़कर गए थे और 10 सालों में देश अपने पैरों पर खड़ा हो गया लेकिन अराजनैकता की खतरनाक राजनीति करने वाले अंधभक्त तो रटाया भजन की गाते रहेंगे।

Saturday, July 12, 2025

गोरख की याद के बहाने

 बधाई। 'इसमें स्त्री रचनाकार भी शामिल हैं', प्रकांतर से पितृसत्तामक वक्तव्य है। 'स्त्रियां भी' अवाछनीय लगता है। यह सब हम लोगों से अनजाने में हो जाता है, जैसे लड़ी को बेटा कहकर साबाशी देना। हमें अपने शब्दों के चयन में सर्वदा सतर्क रहना चाहिए। सम्मेलन की सफलता की असीम शुभकामनाएं। अजय जी का ऐसे अचानक चले जाना जनसंस्कृति की बड़ी क्षति है। मैं तो चंद मुलाकातों में ही उनका मुरीद हो गया था। अजय भाई को क्रांतिकारी श्रद्धांजलि। मैं भी जसम के संस्थापना सम्मेलन का हिस्सा था। संस्थापना महासचिव गोरख बहुत जल्द चले गए, वे जानते थे कि 'अपने को किसी से कम नहीं' समझने वाले बुद्धिजीवी 'क्यों नहीं कुछ कर सकते' थे, फिर भी जल्दी ही चले गए। जसम के राष्ट्रीय सम्मेलन के अवसर पर संस्थापना महासचिव गोऱख पांडे की यादों को लाल सलाम। सम्मेसन की सफलता की पुनः ढेरों शुभकामनाएं।


https://ishmishra.blogspot.com/2020/04/blog-post_13.html

गिरने की राजनैतिक परंपरा

 सच कह रहे हो मित्र


 सच कह रहे हो मित्र
इस देश में गिरना राजनैतिक परंपरा बन गयी है

जो गिरने में जितने अधिक कीर्तिमान बनाता है
उतना ही बड़ा जनगणमन अधिनायक बन जा है
पुलों का गिरना तो उसका महज उपपरिणाम है
इंजीनियर और ठेकेदार नेता के पदचिन्हों पर चलते हैं
और भजन में प्रशिक्षित भक्त तो फिर भक्त होता है
राजनैतिक पतनशीलता का धार्मिक भजन गाता है
पुल के गिरने से सौ-पचास लोग मर जाते हैं
राजनेताओं के गिरने से हजारों लोग मरते हैं
और लाखों अपने ही घर में शरणार्थी बन जाते हैं
उससे भी बहुत बड़ी बात यह होती है
गिरने की गौरवशाली परंपरा बन जाती है
दावारों पर इस नारे केै इश्तहार दिखते हैं
गिरो गिरो और गिरो और गर्व से कहो
हम गिर के रहेंगे और गिरते ही रहेंगे
पतनशीलता जिंदाबाद जिंदाबाद जिंदाबाद
(ईमि: 11.07.2025)

Monday, July 7, 2025

क्रांति

 5 दशक पहले दीवारों पर लिखते हुए नारे

70 के दशक को मुक्ति का दशक होने के

पिछले चौराहे तक पहुंची क्रांति का करते हुए इंतजार
जो रूस में 10 दिनों की उथल-पुथल से
हिला-चुकी थी दुनिया
जिसकी कंपन से घबराए
यूरोप के धनपशुओं ने एडम स्मिथ को कह दिया था अलविदा
और लगाया था कीन्स को गले
अपनाया था कल्याणकारी राज्य
पहुंची जब चीन गांवों से शहरों को घेरते हुए
रुकी नहीं बड़ती ही गयी
चीन से चलकर क्यूबा और फ्रांस होते हुए
वियतनाम पहुंच कर दिगदिगंत को गुंजायमान कर
हो हो हो ची मिन्ह वी शैल फाइट वी शैल विन के नारों से
आगे बढ़ पहुंची हिदस्तान के दूर दराज के गांव नक्सबाड़ी
देश भर में निकल पड़े थे लोग लगाते हुे नारे
आमार बाड़ी तोमार बाड़ी सबेर बाड़ी नक्सबाड़ी
लेकिन क्रांति चौराहे से आगे नहीं बढ़ी
ढक लिया उसे प्रति क्रांति के गुबार ने
भक्तिभाव के अहंकार ने
पूछा था मार्क्स से तब मैंने अब क्या?
उन्होंने कहा संघर्ष संघर्ष और संघर्ष
(ईमि: 08.07.2025)

शिक्षा और ज्ञान 375 (राजपूत से इंसान)

 राजपूत से इंसान बनना जरूरी है

सारे राजपूत पहले मुगलों के दरबारी थे
फिर अंग्रेजों के दरबारी हो गए
दरबारी संस्कृति ही राजपुताने की शान है।

यादवेंद्र सिंह परिहार उम्र का लिहाज न करता हूं, न अपेक्षा रखता हूं, एक राणा प्रताप विद्रोह की ज्वाला जलाए रखे, बाकी उनके भाइयों समेत राजपुताने के सारे रजवाड़े अकबर के दरबारी थे और मेवाड़ के रजवाड़ों समेत राजपुताने के सारे जरवाड़े औरंगजेब के दरबारी थे। राणा प्रताप से युद्ध में अकबर का सेनापति आमेर का राजा मान सिंह था और शिवाजी के साथ युद्ध में औरंगजेब का सेनापति उनका वंशज जय सिंह। 1857 के विद्रोह में में रानी लक्ष्मी बाई से कुछ रजवाड़ों के छोड़कर सभी मराठे और सारे राजपूत रजवाड़े अंग्रेजों की दलाली कर रहे थे उनके वंशज अब मोदी के भक्त हैं। औरंगजेब मानलिंह की बहन का परपौत्र था और इस तरह राजस्थान की उपमुख्यमंत्री का पूर्वज था। आप यदि राजपूत से इंसान बन गए हों तो अलग बात है, मैं तो 13 साल में ही जनेऊ तोड़कर बाभन से इंसान बनना शुरू तकर दिया था।

Thursday, July 3, 2025

शिक्षा और ज्ञान 374 (प्रचीन फारस-यूनान)

 एक पोस्ट पर कमेंट


490 ईशापूर्व डेरियस के नेतृत्व में फारस की सेना ने कई यूनानी नगर राज्यों पर कब्जा कर लिया था, लेकिन 480 ईशापूर्व मैराथन की लड़ाई में फारस एथेंस से हार गया था। 431 ईशापूर्व फारस फिर यूनानी राज्यों पर काबिज होना चाहता था लेकिन एथेंस और स्पार्टा के सैनिक गठजोड़ से हार गया था। उसके बाद स्पार्टा और एथेंस में लंबी लड़ाई छिड़ गयी जिसका अंत स्पार्टा की जीत में हुआ। स्पार्टा की मदद से धनिकतंत्र के नेताओं ने जनतांत्रिक सरकार को उखाड़ फेंका और निरंकुश धनिकतंत्र स्थापित किया जिसे 30 निरंकुशों का शासन कहा जाता है। इनमें प्लैटो का चाचा भी था, उसे भी सरकार में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन उसने मना कर दिया। 4 सालों में दूसरे राज्यों में निर्वासित जनतांत्रिक नेताओं ने शक्ति अर्जित किया और धनिकतंत्र को उखाड़ फेंका तथा फिर से जनतांत्रिक सरकार की स्थापना किया। धनिकतंत्र की सरकार में सुकरात के भी कई चेले थे, इसीलिए सुकरात पर जनतांत्रिक नेता एनीटस ने नास्तिकता फैलाने तथा ईशनिंदा का फर्जी मुकदमा दायर किया और न्यायिक सभा में बहुमत ने सुकरात को मृत्युदंड दिया।

मार्क्सवाद 354 (रूसो)

 एक पोस्ट पर कमेंट


1750 में फ्रांस की प्रतिष्ठित दिजों अकेडमी ने इसी विषय पर एक निबंध प्रतियोगिता विज्ञापित की । "क्या विज्ञान और कला की बहाली नैतिकताओं के शुद्धिकरण में सहायक रही है?" हवा को पीठ न देने वाले भावी दार्शनिक रूसो अखबार में यह विज्ञापन पढ़कर रो पड़े थे। जैसा कि वे अपनी आत्मकथा, 'इकबालनामा (Confessions)' में लिखते हैं कि यह विज्ञापन पढ़ते ही उन्होंने एक अलग दुनिया दिखने लगी, वे एक अलग इंसान बन गए। इस निबंध ने रूसो का कायापलट कर दिया, उन्हें दुनिया के जाने-माने विद्रोही दार्शनिक के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया और वे आजीवन मनुष्यता को सभ्यता की विध्वंशक प्रवृत्तियों के बारे में आगाह करते रहे। रूसो ने लिखा कि कला और विज्ञान के साथ नैतिकताओं में विकृति आना शुरू हुई। यह रूसो का 'पहला विमर्श' कहलाता है। इस निबंध को पहला पुरस्कार मिला और पुरस्कार राशि से उन्हें काफी राहत मिली। वे निबंध से उतने नहीं मशहूर हुए जितने उसकी आलोचनाओं और उनके जवाब से। कुछ साल बाद उन्होंने फिर एकेडमी की निबंध प्रतियोगिता में शिरकत की इस बार उनका निबंध पुरस्कृत नहीं हुआ लेकिन इसने उनके भविष्य के दार्शनिक जीवन की बुनियाद डाली। यह निबंध असमानता पर था। यह दूरा विमर्श या असमानता पर विमर्श नाम से जाना जाता है। समानता के बिना स्वतंत्रता का कोई मतलब नहीं। इसी लिए वे अपनी कालजयी कृति, 'सामाजिक अनुबंध (सोसल कॉन्ट्रैक्ट)' इस वाक्य से शुरू करते हैं, "मनुष्य पैदा स्वतंत्र होता है लेकिन जंजीरों में जकड़ा हुआ पाता है"। दुर्भाग्य से वह इन जंजीरों को माला समझ सहेजता है। बाभन से इंसान बनना इन्हीं जंजीरों से मुक्ति का मुहावरा है।

मार्क्सवाद 353 ( इतिहास)

 एक पोस्ट पर एक कमेंट:


इतिहास में क्या होता तो क्या होता, की बहस निरर्थक है, इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज जगमोहन ने जिस बात पर इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त किया वह आज के संदर्भ में कोई मुद्दा ही नहीं होता जब चुनाव आयोग ही सरकार का पट्टाधारी बना हुआ है। लोया ने तो मोदी को नहीं अमित शाह को भी सजा नहीं दिया था, बस क्लीन चिट देने से इंकार किया था। वैसे कोर्ट ने इंदिरा गांधी को सुप्रीम कोर्ट जाने का समय दिया था, फैसले के स्टे होने की पूरी संभावना थी। लेकिन न्यायिक संकट को साथ राजनैतिक संकट भी जुड़ गया था। बिहार छात्र आंदोलन ने राजनैतिक रूप से अप्रासंगिक होकर राजनैतिक वनवास झेल रहे जेपी को नायक बना दिया तथा महानायक बनने के लिए उन्होंने सेना से बगावत की गुहार लगा दी। आज कोई नेता किसी नुक्कड़ सभा में ऐसी बात कह देता तो संवैधानिक प्रावधानों का सहारा लेकर उसकी गिरफ्तारी की नौबत ही नहीं आती, देशद्रोही घोषित कर भक्त उसे वहीं लिंच कर देते। आपकी बात में भी दम है कि फैसले के बाद इस्तीफा देकर इंदिरा जी को संजय गांधी को प्रधानमंत्री बना देना चाहिए था, कांग्रेस के 350 सांसद वफादार सिपाहियों की तरह संजय का जयकारा करते। तुर्कमानगेट जैसे कांडों के डलते आरएसएस भी समर्थन देता और न इमर्जेंसी लगती न जनता पार्टी बनती, हो सकता है संजय गांघी मोदी सा ही तानाशाह होता, लेकिन आरएसएस सा फासिस्ट सामाजिक आधार न होने से फासिस्ट न बन पाता। वैसे मैं भी उस समय इंदिरा-संजय का कट्टर विरोधी था। न जेपी भ्रमित संपूर्ण क्रांति का नारा उछालकर महानायक बनते न आरएसएस की सांप्रदायिकता को सामाजिक स्वीकृति मिलती। लेकिन क्या होता तो क्या होता बेकार की बात है, जो हुआ वही होता।

शिक्षा और ज्ञान 373 ( विज्ञान)

 विज्ञान के विद्यार्थियों के धार्मिक होने की एक पोस्ट पर 3 कमेंट के साथ नई शिक्षा नीति पर 5 साल पहले लिखाया लेख


मुझे जब कोई अवैज्ञानिक तेवर में कुतर्क करता मिलता है तो पूछ लेता हूं, विज्ञान के विद्यार्थी रहे हो? ज्यादातर मामलों में जवाब सकारात्मक मिलता है। दरअसल, विज्ञान विज्ञान की तरह नहीं, कारीगरी (स्किल) की तरह पढ़ाया जाता है।

हम लोगों को तोता बनाने की पढ़ाई कराई जाती थी, नई शिक्षा नीति में गधा बनाने की, इन बच्चों को इंसान बनने के लिए हमलोगों से ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी।

हम हॉस्टल के वार्डन थे तो परीक्षा के दिन यदि 10 बच्चे बगल के कॉलेज के पास मंदिर में हनुमानजी का आशिर्वाद लेने जाते दिखते थे तो उनमें 7 विज्ञान के होते थे और 7 विज्ञान वालों में 5 भौतिकशास्त्र के। भौतिकशास्त्र करण-कारण (कॉज-इफेक्ट) फ्रेमवर्क के बाहर किसी भी बात का संज्ञान नहीं लेता; किसी भी चीज का संज्ञान तभी लेता है जब उसमें भौतिकता हो, किसी बात को तभी मानता है जब वह प्रमाणित हो। हमारे भौतिकशास्त्र के गुरुजी 3 फुट लंबा त्रिपुंड लगाकर घूमते हैं, प्रधानमंत्री बनने के लिए किसी ज्योतिषी के कहने पर किसी बालटी बाबा को 6 पैर के बकरे की तलाश का ठेका दिए थे।

बेतरतीब 172 (जन्मदिन)

 परसों रात से आज तक, फोन, व्हाट्सअप और फेसबुक पर इतनी बधाइयां और शुभकामनाएं मिलीं कि दिल गदगद हो गया। सब मित्रों का दिल से आभारी हूं। ल मैंने जीवन के 70 वर्ष पूरे कर लिए, और पलटकर देखता हूं कि अपनी शर्तों पर जीने के अलावा कुछ भी उल्लेखनीय नहीं किया। वैसे तो जीवन का कोई जीवनेतर उद्देश्य नहीं होता, एक अच्छी जिंदगी जीना अपने आप में संपूर्ण उद्देश्य है। अब बाकी बची जिंदगी में कोशिश करूंगा कि पिछले कामों को संकलित करूं और जो भी हो सके नया करूं। मेरे लिए अच्छी जिंदगी का मतलब करनी-कथनी में एकता स्थापित करना या यों कहें कि सिद्धांतो को जीना। रूसो अपनी कालजयी कृति सोसल कांट्रैक्ट की बहुत छोटी सी भूमिका में लिखते हैं कि वह अपनी शक्ति की सीमाओं के जाने बिना इसे राजनीति पर एक बृहद काम के हिस्से के रूप में शुरू किया गया था, लेकिन वही हो सका। मैंने सोचा था जीवन में क्रांति करना है, लेकिन क्रांति तो एक अनवरत प्रक्रिया है और इतिहास क्रांति-प्रतिक्रांति का चक्र है। युवावस्था की शुरुआत में क्रांति की संभावनाएं सामने थीं और आगे बढ़ते बढ़ते प्रतिक्रांति शुरू हो गयी, इतिहास ने खतरनाक यू टर्न ले लिया। कुछ मित्र आत्मकथा लिखने का आग्रह करते हैं, मैं कहता/सोचता हूं कुछ उल्लेखनीय तो किया नहीं फिर सोचता हूं उल्लेखनीय करने वालों की जीवनी तो और लोग भी लिख देंगे साधारण लोगों को खुद लिखना पड़ता है। इस लिए आत्म कथा तो नहीं सोसल मीडिया पर बेतरतीब संस्मरण लिखता रहता हूं, जिनकी बेतरतीब शीर्षक से श्रृंखला अपने ब्लॉग RADICAL (ishmishra.blogspot.com) में सेव करता रहता हूं जिन्हें तरतीबवार करना बहुत मुश्किल है, हां यदि तरतीबवार आत्मकथा लिखना हो तो उनमें से कुछ कॉपी-पेस्ट किया जा सकता है।


आखिर में एक बार फिर से सभी मित्रों का हार्दिक आभार