बाभन से इंसान बनना जन्म के जीववैज्ञानिक संयोग की अस्मिता की प्रवत्तियों से ऊपर उठकर एक विवेकसम्मत इंसान बनने का मुहावरा है। इस मुहावरे का ब्राह्मण व्यक्ति से कोई सीधा संबंध नहीं है। चूंकि वर्णाश्रमवाद या जातिवाद व्यवस्था का बौद्धिक औचित्य का दायित्व ब्राह्णण का रहा है या यों कहें कि ब्राह्मण इस व्यवस्था का बुद्धिजीवी रहा है इसलिए वर्णवाद या जातिवाद को ब्राह्मणवाद कहा जाता है। ब्राह्मण व्यक्ति बाहुबली तो अपवाद स्वरूप ही होता है। बाहुबली या दबंद तो पारंपरिक रूप से ठाकुर रहे हैं तथा यादव उनके लठैत। अब यादव ठाकुरों की लठैती करने की बजाय उनके प्रतिद्वंदी हैं। हाल के मामलों में तो गोंडा और राजस्थान में ब्राह्मण पुजारी ही भुक्तभोगी हैं। हाथरस और गोंडा में क्रमशः दलित और ब्राह्मण उत्पीड़न में ठाकुरों का नाम आया है।
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