हमारे बचपन में गांवों में बाजार की पैठ बहुत कम थी। घरों में माचिस रखने का चलन नहीं था, चूल्हे में जल चुके कंडे के नीचे कंडा रख कर आग जिआई (जिलाई) जाती थी। किसी दिन, किसी कारण आग जिंदा न रह पाई तो हम बच्चे लोहे के झन्ने में पड़ोसी के घर आग मांगने जाते थे।
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