इलाहाबाद छोड़ने के बाद कई साल तक दिल्ली से घर (शाहगंज रेलवे स्टेसन से उतरकर आजमगढ़ जिले में पवई के पास अपने गांव) जाते हुए इलाबाद होते हुए जाता था। 1984 में पोलिटिकल डिपार्टमेंट में लेक्चरर का इंटरविव देने गया। बहुत अच्छा हुआ, बाहर निकलकर अपनी बारी का इंतजार करते लोगों में से किसी को आश्चर्य के लहजे में कहते सुना "बाप रे! 1 घंटा 28 मिनट? मैं भी काफी आशान्वित हो गया और सोचने लगा कि गंगा के उस पार नये बस रहे झूसी में घर लिया जाए या इस पार तेलियरगंज में? उसके 2 साल बाद तत्कालीन वीसी (आरपी मिश्र) से दिवि के दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स (डी स्कूल) में मुलाकात हुई तो उन्होंने बताया कि वे मेरे इंटरविव से इतने प्रभावित हुए थे कि मेरा नाम पैनल में सातवें स्थान पर रखवाने में सफल रहे। मैंने कहा था कि 6 पद थे तो मेरा नाम सातवें पर रखते या सत्तरवें पर क्या फर्क पड़ता?
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