मानवीय चेतना का विकास निरंतर, सतत, द्वंद्वात्मक प्रक्रिया है जिसके केंद्र में सदा से ही उहलोक (ईश्वर) तथा इहलोक (विवेक) का द्वंद्व रहा है। नवजागरण के तमाम ऐतिहासिक चरण रहे हैं। वैदिक तथा उत्तर वैदिक काल में लोकायत (चारवाक) बौद्धिक आंदोलन भी नवजारण ही था तथा बौद्ध बौद्धिक क्रांति भी। मध्ययुग में सामाजिक-आध्यात्मिक समानता के संदेश का कबीर का आंदोलन भी नवजागरण का एक चरण था जो अपनी तार्किक परिणति तक नहीं पहुंच सका। दिल्ली विश्वविद्यालय में स्त्री-प्रज्ञा और दावेदारी के अभियान के रूप में लड़कियों के पिंजड़ातोड़ आंदोलन से शुरू होकर 20016 के छात्रआंदोलन में गति प्राप्त करते कोविड से बाधित, शाहीनबाग सी परिघटनाओं में परिलक्षित सीएए विरोधी आज के आंदोलन एक नए नवजागरण की भावी प्रक्रिया के अंग हैं। यह नवजागरण नया इसलिए है कि इसका नेतृत्व स्त्रीचेतना से लैश युवतियां कर रही हैं। नताशाएं और देवागनाएं इस नए नवजागरण की नायिकाएं हैं।
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