स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जब साम्राज्यवाद-विरोधी विचारधारा के रूप में भारतीय राष्ट्रवाद आकार ग्रहण कर रहा था तो औपनिवेशिक शासकों की शह पर उनकी बांटो-राज करो की नीति को कार्यरूप देने के लिए उनके दलालों ने हिंदू और मुस्लिम राष्ट्रवाद के नाम पर उसे विकृत और विखंडित करना शुरू कर दिया, जिसकी परिणति देश के विखंडन में हुई।
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