मेरी कहानी विद्याधर से मिलती जुलती है, उनके दादा जी वैद्य थे, मेरे परदादा वैद्य के साथ संस्कृत और फारसी के भी नज्ञाता माने जाते थे। मेरे दादा जी पंचांग के ज्ञाता माने जाते थे। मुधे प्रीप्राइमरी से कक्षा एक में तो पंडितजी(हमारे शिक्षक) ने प्रोमोट किया था, 4 से 5 में डिप्टी साहब ने। जो कहानी कल फोन पर बताया था, उसे कल लिखूंगा, जब कक्षा 9 में पढ़ने शहर (जौनपुर) गया तो एक लड़का दाढ़ी-मूछ वाला था। उसे मैंने सोचा अपने छोटे भाई को छोड़ने आया होगा और उसने सोचा मैं अपने बड़े भाई के साथ आया होगा। जब क्लास शुरू होने वाली थी तो उसने मुझे कक्षा से बाहर जाने को कहा, मैंने कहा मैं उसी क्लास में था। उसने और स्पष्ट किया कि वह कक्षा 9 का क्लासरूम था। मैंने जब बताया कि मैं भी उसी क्लास में पढ़ता हूं, तो उसने पूछा कैसे? पहली क्लास गणित की थी, शिक्षक बहुत अच्छे थे लेकिन पहले अनुभव के चलते उनकी इज्जत करने में मुझे काफी समय लग गया। उन्होंने पूछा उस क्लास में कैसे बैठा हूं मैंने बताया कि मिडिसल स्कूल पास कर उसी क्लास में एडमिसन लिया हूं। उसने डिवीजन पूछा तो मैं विनम्रता मैं यह नहीं बोला कि आजमगढ़ जिले में पहला स्थान है केवल फर्स्ट डिवीजन बताया। गुरूजी बहुत क्रूर संवेदना का परिचय देते हुे पूछा नकल करके? मैं अपमान से तिलमिला कर चुप रह गया। शिक्षक इतने अच्छे थे कि जल्दी ही यह अपमान भूल गया। मिडिल स्कूल वाली घटना कल लिखूंगा।
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