हर युग में शासक वर्ग के विचार ही शासक विचार होते हैं जो युग चेतना का निर्माण करते हैं और खास ढंग की सामाजिक चेतना तथा यथास्थितिवादी सामाजीकरण सामाजिक चेतना के जनवादीकरण का प्रतिरोध करता है। पितृसत्तात्मक वर्णाश्रमी सामाजिक चेतना श्रेणाबद्ध सामाजिक और लैंगिक भेदभाव का पोषण करता है। मनुष्य का चैतन्य प्रयास से भौतिक परिस्थियां और तदनुरूप सामाजिक चेतना बदलती है तथा न्यूटन के गति दूसरे नियम के अनुसार य़थास्थिति की ताकतें इस बदलाव का प्रतिरोध करती हैं, रीति-रिवाज इस प्रतिरोध के माध्यम हैं। चरण स्पर्श अभिवादन का पुरुषवादी वर्णाश्रमी सामाजिक चेतना का पोषक, अभिवादन का सामंती तरीका है। मेरे छात्र बिना चरणस्पर्श किए मेरा बहुत सम्मान करते हैं। छात्रों की जगह पैर में नहीं दिल में होती है।पत्नी पति का चरणस्पर्श करती है, पति पत्नी का नहीं, अब्राह्मण ब्राह्मण का चरणस्पर्श करता है ब्रह्मण अब्राह्मण का नहीं।
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