कभी किसी ने यदि कोई दुख (अवसाद) शेयर किया तो उसके दुख में सहजवृत्ति सेसहभागी हो जाता हूं, बिना दक्षता के रस्सी फेंकता हूं, डूबते को बचने में कुछ मदद मिलना संयोग की बात है, लेकिन ऐसा करने में मुझे सुख मिलता है। वैसे ही जैसे जब भी मेरे कुछ करने से किसी की कोई भौतिक मदद हो जाने से मिलता हैा। मैं दिल के आंतरिक दुख अवसाद के मामले में रहिमन की सलाह मानता हूं क्योंकि मुझे सहेज कर रखने वाला कोई खजाना कभी मिला नहीं और यदि मिला होगा तो पहचान नहीं पाया। जब भी हुआ (बहुत कम) तो दिल के भौतिक ( क्लिनिकल) दुख (दौरा-ए-दिल) का सार्वजनिक प्रचार किया लेकिन चंद पुराने छात्रों, पड़ोसियों तथा परिजनों के अलावा एकाध मित्र ही कुशलक्षेम पूछने आए या फोन किए, जिससे दिल को काफी आंतरिक कष्ट (अवसाद) हुआ। इस अवसाद को पुराने मित्रों के एक फेसबुक ग्रुप (फर्स्ट डेकेड ऑफ जेएनयूआइट्स) में सार्वजनिक रूप से शेयर किया तो एकाध ने फोनकर अपराधबोध व्यक्त किया। वामपंथियों में एक-दूसरे के सुख-दुख में शरीक होने की संघी प्रवृत्ति वैसे भी कम होती है।
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