काफी हद तक नेहरू की आलोचना सही है। मैंने इस पर कई लेख लिखा है, निष्कासन के पहले कुछ यहां शेयर किया था, फुर्सत मिलने पर एकाध फिर शेयर करूंगा। यहां की कम्युनिस्ट पार्टी ने मार्क्सवाद को विज्ञान की तरह न लेकर मॉडल की तरह अपनाया। मार्क्सवाद के सिद्धांतों को भारतीय संदर्भ में अनूदित करने के गंभीर प्रयास नहीं हुए। अब हो रहे हैं। दुनिया भर में मार्क्सवाद की विभिन्न धाराओं के युवा बुद्धिजीवी कुछ-कुछ कर रहे हैं। जिनका संचित प्रभाव रंग लाएगा। यह दौर दुनिया भर में प्रतिक्रिवादी दक्षिणपंथ की आक्रामक मुखरता का दौर है। हर दौर खत्म हुए हैं, खत्म होगा यह दौर भी, इतिहास आगे बढ़ेगा। इतिहास का भावी नायक सर्वहारा, यानि आमजन ही है। हर शोषण-दमन का एक जवाब -- इंकलाब जिंदाबाद। बाकी फिर कभी।
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ReplyDeletemotive, and that is also happening with this piece of writing which I am reading
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