RADICAL
Sunday, July 8, 2018
हर्फ-ए-सदाकत
नतमस्तक समाज में
जीता हूं सिर उठाकर
उत्तर-सत्य काल में
लिखता हूं हर्फ-ए-सदाकत
पूरी कीमत चुकाकर
भक्तिभाव-प्रधान समाज में
लिखता हूं हर्फ-ए-बगावत
शक्तिमानों से अदावत लेकर
(अधूरी कविता, कभी शायद पूरा करूं)
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