पहले तो उपरोक्त लेख पढ़ें। बुद्ध का काल 6वी शदी ईशापूर्व है तथा रामायण-महाभारत-मनुस्मृति (दूसरी सदी ईशापूर्व-से पहली सदी) के बहुत पहले। गीता उसके भी बाद की है, जिसे बहुत बाद में महाभारत में प्रक्षेपित कर दिया। फॉर्वर्ड प्रेस में इस पर काफी छपा है। ऊपर मैंने संदर्भ दिए हैं। पूरा लेख पढ़ लें बहुत बड़ा नहीं है।गीता कनिष्ककाल के बहुत बाद की रचना है। बाणभट्ट के पहले कहीं इस पर कोई भाष्य नहीं है। पहला भाष्य इस पर शंकर (शंकराचार्य, 8वीं सदी) में मिलता है, तिलक ने लगभग वही टीप दिया है। 'गीता पर अंबेडकर' नेट से खोजकर पढ़िए, जिसमें बहुत से ग्रंथों का संदर्भ है। फॉर्वर्ड प्रेस में मेरे 3 लेख पढ़े या मेरे ब्लॉग, RADICAL, www.ishmishra.blogspot.com में 'इतिहास का पुनर्मिथकीकरण' -1;2; 3 पढ़ें। तिलक ने ब्राह्मणवादी प्रतिक्रांति के हिंसक अभियानी शंकर के विचारों को ही टीप दिया है। मैंने पूरी गीता बचपन में भक्तिभाव से बाद में शोधभाव से हिंदी-अंग्रेजी टीका के साथ पढ़ा है। इसमें अनेकानेक अंतर्विरोध हैं, इसलिए अलग अलग समय पर यह कई लेखकों के लेखन का संग्रह है। कृष्ण कहीं कुछ कहते हैं कहीं उसका उलट। आपने गीता पढ़ा नहीं है तथा इसके पाठ की कमाई करने वालों को छोड़कर, इसे पवित्र ग्रंथ मानने वाले किसी ने नहीं पढ़ा है। गीता प्रेस की ही गीता पढ़ लीजिए। अंबेडकर ने सही कहा है कि यह ब्राह्मणवादी प्रतिक्रांति की दार्निक पुष्टि का ग्रंथ है।
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