जब ईश्वर है नहीं तो वह कुछ करेगा कैसे? जिनके पास पर्याप्त आत्मबल नहीं होता वे अदृश्य शक्ति के सहारे जीते हैं, जिनके पास विचारों का बल (आत्मबल) होता है उन्हे किसी खुदा का संबल या धर्म की बैशाखी की जरूरत नहीं होती। जिन्हें सचमुच की खुशी मिलती है उन्हें खुशफहमी की जरूरत नहीं होती। मैंने गीता कई बार पढ़ा है मुझे उसमें कोई तर्क नहीं मिलता। रजनीश की तरह एक आदमी आकर कहता है वह भगवान है, उसके बाद प्रश्न और तर्क की गुंजाइश ही खत्म हो जाती है।
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