मैं अपने उन विद्यार्थियों को ज्यादा प्यार से याद करता हूं जिन्होंने कभी कुछ असहज सवाल पूछे। असहमति से ही स्वस्थ विमर्श होता है। असहमति व्यक्त विचारों से होती है, गाली-गलौच से नहीं। कुछ लोग जो लिखा है, उसपर वात करने की बजाय यह आदेश देने लगते हैं आप इस पर क्यों नहीं लिखते? जैसे लिखना इतना आसान है। खुद बकलोली के अलावा एक वाक्य नहीं लिखेंगे। मैं महीने में औसतन 40-50 हजार शब्द तो लिखता ही हूं। पढ़कर जानकारी हासिल कीजिए, जो बात असंगत लगे उस पर सवाल करिए। विषय की प्राथमिकता तय करने का अधिकार लेखक का है, आप उससे अन्य विषय पर लिखने का तकाजा करने की बजाय उस पर खुद लिखें। मैं 33 सालों से लिख रहा हूं, फिर भी लिखना जीवन का सबसे कठिन काम लगता है। लिखना शुरू कीजिए, लिखना आ जाएगा बस आपके पास तथ्य हों और पूर्वाग्रह से मुक्त सोचने का साहस। कुछ अन्य लोग लिखा पढ़ने की बजाय, अलिखे पर गाली देने लगते हैं या कौमनष्ट के भूत से पीड़ित हो जाते हैं, ओझा के पास जाने की बजाय मेरी पोस्ट पर अभुआते हैं। विचारों की असहमति और उसपर पूर्वाग्रहमुक्त विमर्श ज्ञानार्जन की प्रक्रिया का अनिवार्य अंग है। लेकिन ये तो लगता है विचारों से ही मुक्त हैं। बाकी शिक्षक हूं, हर मंच का इस्तेमाल शिक्षा के लिए करता हूं, फेसबुक का भी। जब नौकरी नहीं थी तब तेवर से शिक्षक था।
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