सामाजिक न्याय का मुद्दा मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य में है. यूरोप में सामंतवाद के खिलाफ लड़ना पूंजीवाद के अस्तित्व के लिए आवश्यक था यहां देशी पूंजीवाद साम्राज्यवादी पूंजीवाद के पुछल्ले के रूप में विकसित हुआ जिसने सामंतवाद(वर्णाश्रम) से लड़ने की बजाय उसे सहयोगी बना लिया, इस लिए यह भी हमारे ही जिम्मे था और है. जैसा मैंने ऊपर कहा जातीय उत्पीड़न के विरुद्ध हमीं लड़े लेकिन इसे अलग मुद्दा नहीं बनाया. जैसे पूंजीवाद और ब्राह्मणवाद मिल गए हैं वैसे ही हमें जयभीम-लालसलाम को इस नापाक गठजोड़ के विरुद्ध नए गठजोड़ का रूप देना है.
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