RADICAL
Thursday, July 7, 2016
हर्फ़-ए-सदाकत
जब भी उठता कलम लिकने को हर्फ़-ए-सदाकत
हो जाती मुल्क के सारे ज़रदारों से अदावत
चारणों के इस मुखर श्मसान में
एक ही रास्ता है कलम के पास
कि लिखता रहे वो नारा-ए-बगावत
(ईमि:07.07.2016)
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