यह बुतपरस्त-मुरदापरस्तों का मुल्क है जो भक्तिभाव पैदा करता है तथा चमत्कार पर भरोसा जिसके परिणाम स्वरूप मानसिक गुलामी की प्रवृत्ति पैदा होती है. सामाजिक चेतना के जनवादीकरण का काम विकट है, लेकिन प्रयास जारी रहना चाहिए -- पीढ़ी-दर-पीढ़ी. कभी तो वह सुबह आएगी, जब गुलनार तराने गायेगा. जातीय वर्चस्व के विरुद्ध चेतना को वर्गचेतना की तरफ अग्रसरित करना पड़ेगा. जातिवाद विरोधी संघर्ष ब्राह्मणवादी पैराडाइम में फंसा है. जन्म के आधार पर अपना तथा दूसरों का मूल्यांकन ब्राह्मणवाद का मूल सूत्र है. भारत में शासक जातियां ही शासक वर्ग रहे है तथा दलित जातियां दलित वर्ग.
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