Faiz Rafat Tara मैं अतिधार्मिक संस्कारों में पला-बढ़ा. मेरी मां-दादी ने मुझे कई बार किसा-न-किसी बहाने विमध्याचल देवी दर्शन करवाया. मेरी पत्नी बहुत बेहतरीन इंसान हैं.अाप से बिल्कुल सहमत हूं कि सांप्रदायिकता का धर्म से लेना-देना नहीं है. सांप्रदायिक विचारधारायें पूंजीवाद की जुडवा राजनैतिक संतानें हैं जो लोगों की धार्मिक जज़्बातों का फायदा उठाकर, धर्मोंमादी लामबंदी से समाज को बांट कर अपना उल्लू सीधा करते हैं. सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की पांत में केवल दंगाई ही नहीं होते, दंगे समाज को "हम" और "वे" में ऐसा बांटते हैं धर्म पहचान का अाधार हो जाता है, यह ईश्वर की अवधारणा पर हल्का सा व्यंग है, धार्मिक भावनायें इतनी नाजुक अौर असहिष्णु क्यों होती हैं कि हल्के-फुल्के मज़ाक से आहत हो जाती है, भक्त गण कितना कुतर्क करते हैं हमारी भावनायें तो नहीं अाहत होतीं. भगवान के भक्त क्यों इतने परेशान हैं, क्या उसे अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये मनुष्यों की जरूरत है?
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