जिस समाज का मिथिकल रचयिता (ब्रह्मा) ही अन्यायी हो जो पैदाइशी असमानता का जनक हो उस समाज की जड़ता समझी जा सकती है. जिस समाज में शस्त्र और शास्त्र पर एक छोटे से अल्पमत का एकाधिकार रहा हो उसे नादिरशाह जैसा कोई भी चरवाहा कुछ हजार घुड़सवारों के साथ पेशावर से बंगाल तक रौंद सकता था.और मुट्ठी भर अंग्रेज तक भाड़े के हिंदुस्तानी हत्यारों की बदौलत 200 साल तक हिंदुस्तान को लूटता और उस पर राज करता रहा, इसी कमनिगाही और दास मानसिकता के संस्कारों का असर है हमारे शासक चाहे वे नेहरू-गांधी वंसजों के खड़ाऊं हों, या देवेगौड़ा-लालू-नीतिश मार्का सामाजिक न्याय के नंबरदार हों, या नगपुरिया विरासत के दावेदार सभी विश्वबैंक-ओबामा के चाकर हैं. इनमें उतना ही फर्क़ है जितना मोंटेक आलूवालिया, मोंटेक आलूवालिया, मोंटेक आलूवालिया, मोंटेक आलूवालिया और मोंटेक आलूवालिया में है, या चिदांबरम् , चिदांबरम् , चिदांबरम् , चिदांबरम् और चिदांबरम् में है.
सुंदर !
ReplyDeleteईश जी
बहुत लोग लिख रहे हैं पता होगा आपको ? जाया करो देखा करो कुछ कह लिख भी आया करो । कर सको तो । राय है । करना ना करना केजरीवाल जाने :)
करता हूं लेकिन वक़्त नहीं मिलता सब पर जाने का.
ReplyDeleteअरे आप बहुत अच्छा लिखते हैं पर जब आप जायेंगे तभी लोग भी आयेंगे ।
ReplyDeleteok
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