RADICAL
Thursday, December 5, 2013
प्रकृति की देन पर क्या गुरूर
है कुछ खास बात आप में जरूर
हैं प्रतिभा-ओ-हुस्न देन प्रकृति की
आप सिर्फ रखवाले हैं मेरे हुज़ूर
न हो कोइ योगदान जिसमें
उसका क्या गुरूर .
[ईमि/०५.१२.२०१२]
2 comments:
सुशील कुमार जोशी
December 5, 2013 at 6:22 AM
सही फरमाया जनाब :)
पर क्या करें गलतफहमी हो जाती है !
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Ish Mishra
December 5, 2013 at 6:30 AM
खुशफहमी मायूशी से बेहतर है
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सही फरमाया जनाब :)
ReplyDeleteपर क्या करें गलतफहमी हो जाती है !
खुशफहमी मायूशी से बेहतर है
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