RADICAL
Friday, October 4, 2013
किताब-ए-दिल 2
कोरी रहती है दिल की जिल्द जब तक
किताब नहीं कहलाती वह तब तक
चलता है जब जज़बात का कलम
होती है तब दिल की किताब मुकम्मल
[ईमि/04.10.2013]
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