RADICAL
Thursday, September 12, 2013
कमतर तो हम न थे
कमतर तो हम कत्तई न थे किसी से भी
वो समझते रहे कमतर अपनी नासमझी में
जिसे करार दिया उन्होंने गुनाह
वो जो भी था गुनाह तो कोई न था
क्यों भुगतें हम सज़ा किसी की नासमझी की
हमारी अपनी मर्जी भी तो है.
[ईमि/१२.०९.२०१३]
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