RADICAL
Sunday, May 5, 2013
बाज़ार-ए-इश्क
इश्क का कोइ बाज़ार नहीं होता
दिल का होता नहीं कोई कारोबार
दिवालिया होता है
वह दिल-ओ-दिमाग से
बाज़ार में ढूँढता है जो इश्क
और करता है कारोबार-ए-दिल
इश्क है पारस्परिक मिलन
दो दिलों का
समानता और पारदर्शिता है
जिसका मूल-मन्त्र
[ईमि/०६.०५.२०१३]
2 comments:
कालीपद "प्रसाद"
May 6, 2013 at 10:42 AM
सही कहा आपने !
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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Ish Mishra
May 17, 2013 at 11:36 PM
ji
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ReplyDeleteसही कहा आपने !
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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ji
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