RADICAL
Sunday, April 14, 2013
नई की बेचैन चाह छोड़े बिना मोह पुरानी का
नई की बेचैन चाह छोड़े बिना मोह पुरानी का
करता हूँ मिशाल पेश अव्यवहारिक अज्ञानी का
अनजान बनता हूँ जानते हुए इतिहास की रीत
होती रही है हमेशा नए की पुरानी पर जीत
[ईमि/१५.०४.२०१३०]
No comments:
Post a Comment
‹
›
Home
View web version
No comments:
Post a Comment