इसीलिये तो कह रहा हूँ कि शिक्षा के विस्तार के साथ उम्र और अवसरों की छूट समाप्त कर देनी चाहिए जिससे युवा दलित/आदिवासी/पिछड़े युवक- और युवतियों को अवसर मिले जो ज्यादा दिन तक समाज को अपनी सेवा दे सकें. मुझे यह भी लगता है कि आरक्षण को व्यापकता देने के लिए एक अनारक्षण की प्रक्रिया भी शुरू होनी चाहिए. राजनैतिक और प्रशासनिक उच्च पदों पर आरक्षण का लाभ ले चुके लोगों को २-३ पीढ़ी बाद स्वतः स्वतः आरक्षण का लाभ छोड़ देना चाहिए. लेकिन हमारे देश जहां आरक्षण के लाभ के लिए लोग पिछडा/दलित/आदिवासी की मान्यता के अभियान चलाते हों, वहाँ स्वतः तो कोए छोडेगा बहीं इसलिए इस बावत संवैधानिक प्रावधान बनाना चाहिए. मेरा एक जीन्यू का परिचित है और पिछड़ी घोषित जाती में पैदा हुआ लेकिन उसके दादा न्याधीश थे और पिटा वाकल हैं. वह आरक्षण का लाभ लेकर शायद आईएएस बनाता लेकिन उसने इसे अनुचित समझा और बिहार में आईपीएस है. उसका रोना था तब भी लोगों ने पोस्टिंग के लिए उसकी जाती का पता कर लिया.
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