@विनय मिश्र जी, मुझे नहीं मालुम कि आपकी जानकारी का श्रोत क्या है, किन्तु आपका वक्तव्य अमूर्त हवाई बयां है, तथ्यों-तर्कों से रहित. राजू जयहिंद जी, मैंने नव्मैकर्थिज्म शीर्षक से समकालीन तीसरी दुनिया में छपा अपना एक लेख पोस्ट किया थाशायद किसी ने पढ़ा नहीं, दिख भी नहीं रहा है, मैंने आपकी यह पोस्ट देख लिया था. यह दो घंटे के लेक्चर का विषय है. इस पर फुर्सत से कभी पोस्ट डालूँगा. फिलहाल, १९६७ में दार्जलिंग जिले के एक सुदूर गांव के किसानों ने जमींदारों के शोषण और अत्याचार के विरुद्ध सस्फूर्त विद्रोह कर दिया. उस समय संविद सरकार में सीपीयम के ज्योति बासु गृह मंत्री थे और उस विद्रोह को क़ानून व्यवस्था के नाम पर दबाने की कोशिस किया. लेकिन सीपीयम के निचले स्तर के कुछ नेताओं -- चारु मजुमदार, जंगल संथाल, कनु सान्याल जैसे कई नेता सीपीयम से बागी होकर किसानों के सस्फूर्त विद्रोह के साथ खड़े हो गए. उसके बाद कई किसान-विद्रोह हुए -- मुसहरी(मुजफ्फरपुर); श्रीकाकुलम(आंध्र प्रदेश) प्रमुख हैं. पहले अखिल भारतीय क्रांतिकारी समिति बनी जो बाद में सीपीआई(एमएल) के नाम से संगठित बहे. इंदिरा गांधी ने जब संयुक्त सरकारों को भंग करना शुरू किया तो बंगाल भी नहीं छूटा और सिद्धार्थ शंकर रे के मुख्यमंत्रित्व में नक्सल-दमन के नाम पर हजारों छात्रों-नवजवानों को क़त्ल कर दिया और सैकड़ों गायब हो गए.महाश्वेता देवी का उपन्यास, " हजार चौरासीवें की माँ" इसी पर आधारित है. पार्टी के गठन से ही राज्य के चरित्र और सहयोगी और शत्रु वर्गों की पहचान; जनसंगठनों के गठन; .. आदि मुद्दों पर काफी बहस चली, भुत से लोग बड़ी तनखाह की नौकरिया छोड़कर शरीक हुए. एक मेरे ६७ साल के नवजवान मित्र हैं संजय मित्र, (वे आजकल फ्री-लांसर हैं? १९६७ में एक जापानी बहुराष्ट्रीय कंपनी में ५००० की तनखाह पर इंजीनियर थे. १९७२ में जेल से छूटने के बाद, APDR कागथान किया जो पहला जनतांत्रिक संगठन है. जनसंगठन के मुद्दे पर पहली स्प्लिट चारु के समय में ही हुई. सत्य नारायण सिन्हा अलग होकर सीपीआई(एम.एल) - न्यू डेमोक्रेसी का गठन किया. तब से कई विगाथान-सगठन हुए. आज नक्सल बाडी की विरासत के दावेदारों को ३ कोटियों में रखा जा सकता है: जान-आंदोलनों और चुनाव से क्रांतिकारी बदलाव(सीपीआई(माले) लिबरेसन, जिहोने अपने सशत्र दस्ते १९८७ में भंग कर दिया); जनांदोलनों से क्रांतिकारी चेतना का विकास (सीपीआई(एम.एल. न्युदेमोक्रेसी जैस पार्टिया); और सशस्त्र क्रान्ति जिस रास्ते पर आज सिर्फ सीपीआई(माओवादी) है. सीपीआई(माओवादी) बिना व्यापक जनाधार के सशस्त्र क्रान्ति के रास्ते पर चल कर अप्रत्यक्ष रूप से व्जनांदोलनों को हनी पहुंचा रहे हैं कि सरकार नक्सल-विरोध के नाम पर कलिंगनगर,जगात्सिंघ्पुर,नारायांपतना, नियामगिरी जैसे लोकतान्त्रिक जनांदोलनों का बर्बर दमन कर रही है. इति.
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