क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच, 'जन संस्कृति मंच' (जसम) के संस्थापक महासचिव (General Secretary), हमारे मित्र गोरख पांडेय एक क्रांतिकारी कवि, लेखक एवं बुद्धिजीवी तथा क्रांतिकारी कम्युनिस्ट कार्यकर्ता थे। 1969 में सीपीआई (एमएल) की संस्थापना के समय से ही वे इसके जीवनपर्यंत सक्रिय सदस्य रहे। चारवाक, बुद्ध, डिमोक्रिटस, इपीक्यूरिअस तथा स्टोइक्स एवं कबीर जैसे चंद अपवादों को छोड़कर प्राचीनकाल से ही ज्यादातर दार्शनिकों नें आमजन (श्रमजीवी) वर्ग के प्रति तिरस्कारपूर्ण अवमाना दिखाया है। अठारहवीं शताब्दी के महान आवारा दार्शनिक रूसो ने आमजन को राजनैतिक विमर्श के केंद्र में स्थापित किया तथा नवोदित शासक वर्ग (पूंजीपति वर्ग) को बाध्य कर दिया कि वे जन के नाम पर ही जनविरोधी राजनीति करें। सारे पूंजीवादी संविधानों के जिल्द पर 'वि द पिपुल' लिखना पड़ा। सभी वर्ग समाजों की तरह पूंजीवाद का भी कथनी-करनी का अंतर्विरोध (दोगलापन) प्रमुख अंतर्विरोध है। साम्राज्यवादी भूमंडलीय पूंजी की सर्वाधिक वफादार भारतीय जनता पार्टी समेत भारत की सारी कॉरपोरेटी पार्टियां जनहित के विरुद्ध कॉरपोरेटी दलाली की राजनीति जरूर करेंगी, लेकिन नाम में जनता, लोक या समाजवादी जोड़ेंगी। दुनिया की अन्य संशोधनवादी कम्युनिस्ट पार्टियों की ही तरह, सीपीआई-सीपीएम जैसी भारत की संशोधनवादी पार्टियां भी शासक वर्गों की पार्टियों के साथ मिलकर सामाजिक बदलाव का ताना-बाना बुन रही थीं। व्यवस्था में घुसकर व्यवस्था नहीं तोड़ी जा सकती बल्कि व्यवस्था में समायोजन हो जाता है। गोरख ने यह गीत (समाजवाद बबुआ धीरे-धीरे आई) 1970 के दशक के पूर्वार्ध में लिखा था जब सीपीआई इंदिरा गांधी के 'गरीबी हटाओ' नारे के चक्कर में कांग्रेस का पुछल्ला बन गयी थी। आलोचना और आत्मालोचना मार्क्सवाद की प्रमुख अवधारणाएं हैं। मार्क्सवाद के बारे में व्हाट्सअप विवि की अफवाहों में प्रशिक्षित धनपशुओं (पूंजीपति वर्ग) के तमाम कारिंदे मार्क्सवादियों के इस व्यवहार को मार्क्सवाद के विरुद्ध प्रोपगंडा के रूप में प्रचारित कर अपनी अज्ञानता का प्रदर्शन करते हैं।
प्रणाम सर
ReplyDeleteप्रणाम, फोन करिए।
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