हम हर तरह की गुलामी से आजादी चाहते हैं. देशभक्ति का ठीका तो लंपट भक्तों के नाम हो गया है. ब्राह्मणवाद से, मनुवाद से, फिरकापरस्ती सबसे आजादी. पिजड़ा तोड़ने वाली हमारी बहादुर बेटियां मां-बाप से और मां की भी आजादी के नारे लगाती हैं. पढ़ने और प्यार करने की आजादी मांगती हैं. जिनका सियासी वजूद ही नफरत पर टिका हो वे प्यार के अनूठे सुख को क्या जानें?
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