Sunday, November 27, 2016

कॉ. फिदेल को लाल सलाम

फिदेल कास्त्रो
 साम्राज्यविरोधी प्रतिरोध की एक विरली मिशाल
ईश मिश्र
      लगभग 5 दशक तक अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी, सीआईए द्वारा हत्या के  अनगिनत प्रयासों और बीमारियों को बेअसर करते हुए मौत को छकाने वाले, कभी न झुकने-रुकने वाले युगपुरुष, साम्राज्यविरोध की अनूठी मिशाल, फिदेल कास्त्रो को अंततः जीवन के अंतिम सत्य मौत ने छका दिया। लेकिन इतिहास के ऐसे विरले व्यक्तित्व, अपने जीवनकाल में ही व्यक्ति से विचार बन जाते हैं। और विचार मरते नहीं, फैलते हैं तथा इतिहास रचते हैं। फिदल कास्त्रो के जाने से धरती से विवेक और सशक्त प्रतिरोध की एक बुलंद आवाज़ उठ गई। अमेरिका के पिछवाड़े, एक छोटे से द्वीप से साम्राज्यवाद को ललकारते हुए समाजवादी उम्मीद की मिशाल की मशाल जलाए रखा। 2008 में राष्ट्रपति पद से हटने के बाद कास्त्रो पर्यावरण, विश्व शांति, परमाणु-विभीषिका, शिक्षा, समाजवाद आदि विषयों पर अपने कॉलम के माध्यम से हस्तक्षेप करके हुए लोगों के संपर्क में बने रहे। 59 साल शासन के शीर्ष से और उसके बाद अपने लेखों तथा वक्तव्यों से क्यूबाई जनता और अन्य देशों की जनवादी ताकतों की प्रेरणा श्रोत बने रहे। अंतिम समय तक वे नई पीढ़ियों की क्रांतिकारी संभावनाओं में अडिग विश्वास के साथ विकट-से-विकट परिस्थियों में साम्राज्यवाद के विरुद्ध समाजवादी क्रांति की अलख जलाए रखा। यह तो भविष्य ही बताएगा कि नई पीढ़ियां इस विरासत को क्या अंज़ाम देती हैं लेकिन इतिहास में जब भी साम्राज्यवाद के विरुद्ध अडिग साहस के विवेकपूर्ण जनवादी प्रतिरोध की मिशालों का ज़िक्र होगा तो फिदेल कास्त्रो का नाम शीर्ष नामों में शामिल होगा।
कॉमरेड कास्त्रो के निधन से राजनैतिक विवेक की एक प्रमुख आवाज़ लुप्त हो गई जिसकी दक्षिणपंथी, फासीवादी ताकतों की आक्रामक मुखरता के इस काले दौर में ज्यादा सिद्दत से जरूरत है। उनके कॉलम धरती की अंतरात्मा को प्रतिबिंबित करते थे। लेकिन विरासतें बेकार नहीं जातीं। इतिहास की गाड़ी में रिवर्स गीयर नहीं होता। कभी-कभी प्रतिगामी यू टर्न आ जाते हैं लेकिन अंततोगत्वा जीत अग्रगामी ताकतों की होगी। कॉमरेड क्रास्तो की विरासत आगे बढ़ेगी और विश्वव्यापी होगी जब दुनिया में न अशिक्षा होगी; न गरीबी; न राजा होगा न रंक। शोषण-दमन; बेरोजगारी-बेगारी; भीख-भुखमरी; भ्रष्टाचार-लूटपाट; फिरकापरस्ती-नस्लवाद; युद्धोंमाद-साम्राज्यवाद इतिहास के पन्नों में सिमट जाएंगे। वह दिन तो कभी आएगा, दादा, कॉमरेड कास्त्रो! कभी तो रंग लाएगा आपकी संयुक्त राष्ट्र की आमसभा में साढ़े चार घंटे का सारगर्भित धाराप्रवाह भाषण, जिसने दुनिया के राष्ट्राध्यक्षों को अवाक् कर दिया था। कभी-न-कभी तीसरी दुनिया का आवाम जागेगा ही और मानेगा साम्राज्यवादी देशों के कर्ज़ निरस्त करने की आपकी सलाह जो  कि उनके द्वारा हमारी लूट का अंश-मात्र ही है। जल्दी खत्म करेंगे तारीख का यह काला दौर, आप के वैचारिक वारिश और सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे आपको दुनिया में शांति और भाईचारे की स्थापना से।
1959 में सारे लैटिन अमेरिका और सारी दुनिया में समाजवादी क्रांति के सपने साकार करने निकले, अर्जेंटाइना में पले-बढ़े चे ग्वेयरा के साथ मिलकर, अभूतपूर्व साहस और अडिग प्रतिरोध शक्ति का परिचय देते हुए, छोटे से समर्पित छापामार दस्ते और सूझ-बूझ के बलबूते अमेरिकी कठपुतली तानाशाह को पराजित कर साम्राज्यवादी दुनिया में हाहाकार मचा दिया था और जनवादी जनमानस में उल्लास। सत्ता की बागडोर संभालते ही सारे आर्थिक तथा शैक्षणिक उपक्रमों एवं प्रतिष्ठानों का राष्ट्रीयकरण कर दिया और सभी कैसिनो (जुएबाजी) तथा सट्टेबाजी के अड्डे बंद। गौरतलब है कि ज्यादातर उपक्रम तथा कैसिनो के मालिक अमरीकी थे जिन्होंने कर बचाने के लिए अपनी संपदा की मालियत बहुत कम दर्ज करा रखा था, उन्हें उसी हिसाब से मुआवजा दिया गया। अमेरिकी पूजीपतियों और व्यापारियों तथा जुएबाजी-सट्टेबाजी के अंडरवर्ल्ड के घाटे अमेरिकी सरकार का बौखलाना, मार्क्स के कथन की पुष्टि करता है कि आधुनिक राज्य पूंजीपति वर्ग के सामान्य हितों के प्रबंधन की कार्यकारी समिति है। 26 सितंबर 1960 को संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच साम्राज्यवाद को चुनौती देने वाले उनके ऐतिहासिक भाषण ने आग में घी का काम किया। साम्राज्यवादी या राष्ट्रीय तानाशाह विरोधी विचारों से डर कर विचारक की हत्या की कोशिस करता है। समयांतर के सितंबर अंक में कास्त्रो के नब्बेवें साल के उपलक्ष्य में छपे लेख में इस लेखक ने कास्त्रो को उद्धृत किया है कि यदि हत्या के प्रयासों से बचना ओलंपिक खेलों में शामिल होता तो उन्हें कई स्वर्णपदक मिल चुके होते। अमेरिकी शासन ने सीआईए द्वारा कास्त्रो की हत्या के 638 असफल प्रयास किए। कास्त्रो ने इस साल अप्रैल में अपने कॉलम में लिखा था कि वे नब्बे के होने वाले हैं और उन्हें अमेरिकी राष्ट्रपतियों की अपनी हत्या की मैक्यावलियन चालों के बारे में सोचकर हंसी आती है। कास्त्रो के सोवियत संघ से मैत्रीपूर्ण संबंधों के चलते अमेरिकी शासन की बौखलाहट बढ़ गई तथा बे ऑफ पिग क्यबाई प्रवासियों से हमला करवा दिया जिसमें अमेरिका को मुंहकी खानी पड़ी। अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ कास्त्रो ने  ऐसा अग्निपथ प्रशस्त किया कि साम्राज्यवाद की चूलें हिल गईं। जैसा ऊपर लिखा है कि दादा फिदेल कास्त्रो जैसे लोग मरते नहीं जीते हैं अपनी विरासत में; पीढ़ी-दर-पीढ़ी।
1926 में एक संपन्न गन्ना किसान में पले-बढ़े फिदेल हवाना विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई के दौरान जनवादी राजनीति की तरफ आकृष्ट हुए और भ्रष्टाचार विरोधी ऑर्थोडॉक्स पार्टी में शामिल हो गए तथा डोमिनिकल गणतंत्र में तानाशाही के विरुद्ध असफल विद्रोह में शामिल हुए। 1950 में कानून की पढ़ाई पूरी करन् के बाद हवाना में वकालत शुरू किया तथा 2 साल बाद होने वाले चुनाव के लिए नामांकन किया लेकिन इसी बीच अमेरिकी शह पर जनरल बतिस्ता ने सैनिक तख्तापलट कर तानाशाही शासन लागू कर दिया। जैसा कि उन्होंने 2006 में ‘मौखिक आत्मकथा’ में बताया, “उसी वक्त से आगामी संघर्ष का स्पष्ट विचार मेरे मन में आ गया था”। 1953 में सांतियागो में सैनिक बैरक पर असफल हमले में और साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिए गये लेकिन जेल से संदेशों के जरिए संगठनात्मक लामबंदी जारी रखा। 1955 में तानाशाही की छवि सुधारने के उद्देश्य से बतिस्ता ने आम मॉफी के तहत फिदल और साथियों के साथ रिहा कर दिया गया। कास्त्रो उनके भाई राउल कास्त्रो (क्यूबा के वर्तमान राष्ट्रपति) तथा अन्य साथियों के साथ मेक्सिको चले गए और 26 जनवरी आंदोलन नाम से संगठन गठित कर क्रांति की तैयारी शुरू कर दी। वहीं उनकी मुलाकात घुमंतू क्रांतिकारी चे ग्वेयरा से हुई जो क्रांति के अभिन्न साथी तथा प्रमुख रणनीतिकार बने। अगली साल कास्त्रो और चे ने 81 साथियों के साथ एक याच में छापामार युद्ध को अंजाम देने क्यूबा के पश्चिमी तट पर पहुंचे, लेकिन सरकारी फौजों ने उन्हें घेर लिया। कास्त्रो, चे और राउल समेत कई साथियों ने भागकर दक्षिणी पर्वत मालाओं में शरण ली तथा नए सिरे से संगठन बनाना शुरू किया। कास्त्रो के अनसार, पुनर्गठन की शुरुआत दो राइफलों के साथ हुई। लेकिन 1957 तक काफी नवजवान दस्ते में शामिल होने लगे तथा ग्रामीण सुरक्षाकर्यों के विरुद्ध छोटे-मोटे मोर्चे फतह करने लगे। मौखिक आत्मकथा  में कास्त्रो याद करते हैं, “हम अपने चुने हुए इलाकों में उन्हे सामने से ललकार कर बीच में हमला करते थे और जब वे पीछे हटने लगते तो हम घात लगाकर पिछले हिस्से पर हमला बोल देते थे।” 1958 में बतिस्ता ने क्रांतिकारियों के खात्मेके लिए चौतरफा हमला बोल दिया – हवाई बमबारी, थल सैनिक और नवसेना आक्रमण। छापामार दस्ते अड़े रहे और जवाबी हमला बोल दिया। क्रांतिकारियों की सफलता की खबरों ने बतिस्ता की सेना में फूट डाल दी और बहुत से सैनिक क्रांतिकारियों के साथ मिल गए। 1 जनवरी 1959 को बतिस्ती के सानिकों ने हथियार डाल दिया और बतिस्ता देश छोड़कर भाग गया। क्रांतिकारी न्यायाधिकरणों ने बतिस्ता समर्थकों पर न्यायाधिकरणों में युद्ध अपराध के मुकदमें चलाकर उनका सफाया शुरू कर दिया, जिसे टाला जा सकता था।
जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है कि 1960 में फिदेल के नेतृत्व की क्रांतिकारी सरकार ने अमेरिकी स्वामित्व के तेल परिष्करण उपक्रमों, कल-कारखानों तथा कैसिनो समेत सभी व्यापारिक गतिविधियों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। बदले में अमेरिका ने क्यूबा के साथ राजनयिक संबंध विच्छेद कर लिया तथा कठोर आर्थिक प्रतिबंध थोप दिया, जो अब तक जारी हैं। 1961 में अमेरिकी शासन ने सीआई द्वारा प्रशिक्षित 1400 प्रवासी क्यबाइयों को फिदेल की सत्ता के तखतापलट के इरादे से बे ऑफ पिग्स भेजा जिनमें से सौ से अधिक मारे गए बाकी गिरफ्तार। 1962 में क्यूबा सरकार ने 5.2 करोड़ डॉलर की दवाओं और खाद्य सामग्री के बदले बंदियों को रिहा कर दिया। 1962 में कास्त्रो ने क्यूबा में सोवियत परमाणु मिसाइल की तैनातगी ने अमेरिकी शासन की निगाहों में तीसरे विश्वयुद्ध का संकट पैदा कर दिया। कास्त्रो के पीछे, उनकी इच्छा के विरुद्ध अमेरिकी राष्ट्रपति केनेडी और सोवियत संघ के राष्ट्रपति ख्रुस्चेव ने आपसी समझौता कर लिया जिसके तहत केनेडी ने दुबारा क्यूबा पर हमला न करने की सार्वजनिक घोषणा की तथा तुर्की से चुपचाप मिसाइल हटाने का गुप्त समझौता।
सत्ता की बागडोर संभालने के बाद कास्त्रो ने हर तरह का कानूनी भेदभाव समाप्त कर दिया। जमीन की मिल्कियत पर सख्त सीलिंग के जरिए ‘जो जमीन को जोते-बोए वह जमीन का मालिक होए’ के नारे को चरितार्थ किया। ऩए स्कूल तथा नई चिकित्सा सुविधाओं के निर्माण के जरिए शिक्षा और स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दिया और क्रांति के कुछ ही सालों में क्यूबा लगभग 100% साक्षर हो गया और आज सर्वविदित है कि क्यूबा अन्य लैटिन अमेरिकी देशों को शिक्षा और स्वास्थ्य के मामलों में मददगार है। पूजीवादी नैतिकता और समाजवादी नैतिकता के फर्क समझने के लिए यह मिशाल काफी है कि जिस सीआईए अधिकारी के जरिए अमेरिकी शासन ने चे ग्वेयरा की धोखे से हत्या करवाई थी, उसकी जानलेवा बीमारी को नज़र अंदाज कर दिया था उसका क्यूबाई डॉक्टरों ने मुफ्त इलाज़ किया। 1960 के दशक से सोवियत संघ के विघटन तक लैटिन अमेरिकी देशों में क्रांतिकारी आंदोलनों का समर्थन करते रहे।
फिदेल कास्त्रो का जाना दुनिया की जनवादी ताकतों के लिए अपूरणीय क्षति है, लेकिन मौत अंतिम सत्य है जिसे दादा कास्त्रो लंबे समय तक छकाते रहे। उनके क्रांतिकारी कार्य और विचार भविष्य के क्रांतिकारी आंदोलनों के प्रेरणा श्रोत बने रहेंगे। हम शोषण मुक्त समाजों की दुनिया केव उनके सपनों को साकार करने की दिशा में अपने योगदान के संकल्प के साथ इस इतिहास पुरुष को हार्दिक श्रद्धांजलि देते हैं। कॉमरेड फिदेल कास्त्रो को लाल सलाम।

17 बी विवि मार्ग

दिल्ली 110007      

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