Wednesday, November 25, 2015

स्वर्ग से अशोक सिंहल का सहिष्णुता पर बयान

स्वर्ग से अशोक सिंहल का सहिष्णुता पर बयान
(विधर्मियों के खिलाफ नफरत फैलाने के पुण्य वाले को तो स्वर्ग ही मिलेगा)
असहिष्णुता की हदें पार कर रहे हैं मुल्क के फनकार
ऊलजलूल तर्कों से कर रहे आस्था की सुचिता पर प्रहार
हमारी अपार सहिष्णुता भी कर जाती यदा-कदा सीमा पार
मारना पड़ता है कुछ कलबुर्गी, पंसारे और डोभालकार 
मचा दिया कवि कलाकारों ने असहिष्णु हाहाकार
मारा भक्तों ने जो कुछ नास्तिक सुन प्रभु की पुकार
कर रह थे जो भगवान राम की महिमा को नकार
खत्म हो गया था जिनका जीने का मौलिक अधिकार
बचे कवि-कलाकारों में आ गया असहिष्णुता का विकार
देशद्रोह में बहकर लौटाने लगे सब अपने अपने पुरस्कार
हमारी सहनशीलता तो है अनंत और अपार
वरना सहते हम कभी राष्ट्र का ऐसा तिरस्कार
बुद्धजीवियों की कमी नहीं होने देंगे हम हिंदु राष्ट्र में
खोल दिए हैं बत्राजी ने कारखाने गुजरात व महाराष्ट्र में
मार दिया जो गफ़लत में भक्तों ने एक अख़लाक़
कर सकता था जो किसी गोमाता को कभी हलाक
बुद्धिजीवियों ने इसे  असहिष्णुता की मिशाल बताया
ऐसा कर उनने गोमाता के प्रति अपमान जताया
गोमाता का है राष्ट्र में निज माता सा सम्मान
मारना पड़े चाहे कितने भी नास्तिक-ओ-मुसलमान
होते न हम अगर अतिशय सहनशील
जिंदा रहता एक भी गो-द्रोही जलील?
असहिष्णु हैं अाप सब कवि-कलाकार
हमारी सहिष्णुता को रहे जो ललकार 
सह नहीं सकते देशभक्ति की जरा मार
इनको है शाखा की दीक्षा की दरकार
तब समझेंगे कितने खतरनाक होते मुसलमान
रहते हैं यहां रखते हैं मक्का में अपना ईमान
जीतता है क्रिकेट में जब भी पाकिस्तान
पटाखे छोड़ने लगता है हर मुसलमान 
होते न हम अगर सहिष्णुता के प्रहरी महान
कैसे पनपते मुल्क में शाहरुख-ओ-आमिर खान
बनते हैं ये नायक हिंदुस्तान में
मगर इनका दिल रहता पाकिस्तान में
सहते हैं मुल्क में हम कितने हिंदु-द्रोही अदीब
आरयसयस को आईयस कहते इरफान हबीब
तलवार से कायम होती थी जब सल्तनतें
जंग में भी हमारे पूर्वज सहिष्णुता दिखलाते
उठा कर फायदा शूर-वीरों की सहनशीलता का
मुसल्लों ने फहराये परचम अपनी वीरता का
सहते रहे हम सैकड़ों साल धर्म का अपमान
राज करते रहे हम पर विधर्मी मुसलमान
निकल गयी हाथ से शासन की छोर 
छोड़ा नहीं हमने मगर वर्णव्यवस्था की डोर
रहे हम सैकड़ों साल  गुलामी के प्रति सहनशील 
 मगर धर्म की सुचिता को न होने दिया पतनशील
ब्रह्मा ने बनाया है जिसे जिस काम के लिए
करना है उसे वही हिंदु धर्म के सम्मान के लिेए
बढ़ गया धर्म पर जब इस्लामी अत्याचार 
अंग्रेजों को भेजा प्रभु ने बनाके खेवनहार 
बुद्ध की तरह कुछ हिंदुओं ने की धर्म से गद्दारी
धर्मनिरपेक्ष बन अंग्रेजों से सत्ता हथिया ली
झंडे पर रखा निशान अशोक की लाट का 
रंग-ढंग नहीं था ये किसी हिंदू सम्राट का 
प्रभु ने हमारी प्रार्थना दुबारा सुन ली
भेज दिया दिल्ली गुजरात का नरेंद्र मोदी
दिल्ली की गद्दी पर हुआ पहला हिंदू शासक विराजमान
इसके पहले अंतिम थे सहनशाल पृथ्वीराज चौहान
(लंबी बौद्धिक आवारागर्दी करवा दी सरला जी की फैज कीः चली है रश्म कि कोई न सर उठा के चले - की याद दिलाती सटीक राजनैतिक टिप्णी ने. नागार्जुन कविता लिखने को बौद्धिक आवारागर्दी कहते थे, सठियाने के बाद भी न शारीरिक आवारागर्दी कम हो पा रही है, न ही बौद्धिक)
(ईमिः26.11.2015) 

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