RADICAL
Sunday, August 24, 2014
उठो एकलव्यों धनुष उठाओ
एक बुड्ढा नवजवान ललकारता है
मुर्दानगी-ए-जवानी को फ़टकारता है
उठो एकलव्यों धनुष उठाओ
प्रत्यंचा उसपर प्रज्ञा की चढ़ाओ
करो बिन अंगूठे के ऐसे सरसंधान
कि लगायें द्रोणाचार्य मदद की अजान
(ईमिः24.08.2014)
2 comments:
सुशील कुमार जोशी
August 24, 2014 at 7:34 AM
जोर लगा कर हैईशा :)
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Ish Mishra
August 24, 2014 at 6:37 PM
hhhaaishaaa
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जोर लगा कर हैईशा :)
ReplyDeletehhhaaishaaa
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