Sunday, September 30, 2012

लल्ला पुराण ४५

विचार मुक्त होना मानवीय गुण से मुक्त होना है. मनुष्य ने अपनी आजीविका उद्पादन के श्रम की कला और कौशल से  अपने को पशु-परिवार से अलग किया और श्रम की कला चिंतन-शक्ति से आती है. लेकिन तमाम लोग किसी खास विचारधारा की मिथ्या-चेतना से अपनी चिंतन-शक्ति का इस्तेमाल नहीं करते और भेडचाल में लकीर पर चलते रहते हैं. विचार-मुक्त होना कौशल नहीं है बल्कि मष्तिष्क को बेरोजगार कर देना है.

Words acquire meaning through usage. The concept of Nirvana that acquired popularity through Buddha's teachings that means freedom from the cycles of rebirth. The mythological notion of rebirth was created by ruling class intellectuals to distract from the miseries of this world. The rational way of thinking leads to profound thought and not freedom from it. The self actualization is an intellectual process that comes by knowing one's nature and ways to realize it that comes from totally involved thinking and not from freedom from it.  What determines anyone's strong will power and correct mind set?  it is generally used for social  parasites - the Sadhus and sanyasis who are bereft of any rational thought and propagate ignorance and irrationality. And profound peace of mind is a myth, relative peace of mind is attained by unselfish rational thought process and not by renouncing it. But tragically most of us do not fully use our mind and direct our actions in accordance with established social values, traditions and customary laws under the historical illusion that the ancestors must have been wiser. I am saying historical because the law of the  dynamics of history bis continuous progressive advancement.  Every next generation is always smarter as it critically consolidates the achievements of previous generations and builds upon it. The societies that do not do so stagnate. For over thousand  years India intellectually stagnated under the garb of spiritual accomplishment. Freedom from thinking is freedom from one's human attributes.

@Prag Garg: जी हाँ राष्ट्रीयता के कालम में लिखते हैं इंडियन क्योंकि वह मेरी भौगोलिक-राजनैतिक अस्मिता है. लेकिन खेल के मैदान में इंडिया नहीं होता बल्कि दसवीं-बारहवीं पास ११ लड़के होते हैं जिन्हें इसी उम्र से इतना रूपया दिखने लगता है कि 'चक दे इंडिया' की नारेबाजी में उन्हें यह भी नहीं मालुम कि इस गरीब मुल्क में २०-२२ साल की उम्र में हजारों करोड़ रूपये का क्या सदुपयोग करेंगे निजी ऐयाशी के अलावा? उन्हें यह नहीं बताया जाता कि एक ज़िंदगी के लिये असीम रूपये की जरूरत नहीं होती. आईपीएल में खेलने के लिये कितने क्रिकेटरों ने अपने "राष्ट्रीय" अनुबंध ओ नज़र-अंदाज़ किया? केविन पीटरसन को दक्षिण अफ्रीका टीम में जगह मिलती तो वह इंग्लैण्ड के लिये खेलने क्यों जाता? राष्ट्र राज्य पूंजीवाद का राजनैतिक कवच है आधुनिक राष्ट्रवाद उसकी विचारधारा. इसी तरह के क्रिकेट-उन्मादी और युद्धोन्मादी राष्ट्रवाद की गफलत में लोग गर्व और शर्म करें, भूमण्डलीय पूंजी के दलाल देश को नव-उपनिवेशवाद के तार्किक परिणति तक बेख़ौफ़ पहुंचाते रहें. जी हाँ क्रिकेट में जो भी अच्छा खेलता है मैं उसका प्रशासक हूँ चाहे वह विरत कोहली हो या क्रिस गेल; सुनील गवास्कर हों या इमरान खान. लेकिन वहीं तक मैं न्हें भारत/वेस्ट-इंडीज/पाकिस्तान नहीं मानता हूँ. विराट कोहली के छक्के की उतनी ही तारीफ़ करता हूँ जितनी मोहम्मद हफीज की. "हिन्दुस्तान भी मेरा है, पाकिस्तान भी मेरा है/दोनों ही देशों में लेकिन अमरीका का डेरा है." (हबीब जालिब) 2/10/12

मनुष्य सामाजिक प्राणी है

मनुष्य सामाजिक प्राणी  है
ईश मिश्र 

कक्षा में धमाचौकड़ी मची है
अध्यापक बता रहा है कि
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है
बाहर निकल भागते है
 किसी मरीचिका के पीछे
आगे दिखता बंद राजद्वार 
"आम रास्ता नहीं" का इश्तहार

बंद राजद्वारों  के पीछे के राजपथ 
आरक्षित होते हैं चंद असुरक्षित अभिजनों के लिये 
और इनके संगमरमरी धरातल 
नाम-ओ-निशाँ भी नहीं छोड़ते किसी हलचल के
इसीलिये मुझेभाते हैं टेढ़े-मेढे कच्चे रास्ते
गिरते-फिसलते चलते जाते हैं जिनपर
ताकत से मिट्टी की गंध की
यादें रह जाती हैं और हिचकी आती है
लगता है किसी के बही में मेरा भी नाम दर्ज है
काश पता चल गया होता 
'टूलेट' की तख्ती धुंधलाने के पहले

रूसो की सास्त्र में अरूचि थी
मुझे कक्षा में ऊब होती है
मैं एअस्तू नहीं  समझ सकता.
[२७.०९.२०१२/शाम ६.०५ बजे]

Saturday, September 29, 2012

न हूँ मैं करिश्मा, न कोई सितम


न हूँ मैं करिश्मा, न कोई सितम
ईश मिश्र

करने को हमारी इंसानी सादगी को  तरह तरह से  बदनाम
मुद्दत से होती आ रही हैं साजिशें, कभी छिपकर कभी खुले आम
कोई कहे करिश्मा तो कोई कहे सितम
इंसान से कुछ अलग दिखें जिससे हम
पढ़ने-लिखने से हमें अब तक  पुरुषों के समाज ने रोका था
सहते रहे सितम, न पहले कभी टोंका था
लेकिन पढ़-लिख कर अब हम हो गयी है सजग
रचेंगी हम अब अपना एक नया शास्त्र अलग
न अब चलेगा कोई करिश्मा न होगा कोई सितम
बराबर साझेदारी का एक  नया समाज बनाएंगे हम
नहीं हैं हम कोई करिश्मा या कोई सितम
सीधे-सादे अक्लमंद इंसान हैं हम
(यह तुकबंदी हेरम्ब जी को समर्पित)

भगत सिंह का सपना


भगत सिंह का सपना
ईश मिश्र 
भगत सिंह का सपना था एक शोषण-मुक्त समाज
नहीं बजेगा जिसमे फिरकापरस्ती या जात-पांत राग
पूंजी का समुचित बंटवारा होगा आयेगा समाजवाद
मगर बना यहाँ गोरे की जगह काले अंग्रेजों का राज
गुलामी की कगार पर है फिर से हिन्दुस्तान
होगा अब कभी भी नए भगत सिंहो का आगाज
चूमकर फंदा फांसी का
लगाया था उन्होंने जब नारा-ए-इन्किलाब
गूँज गया था भारत भर में
राजगुरु-सुखदेव भगत सिंह जिंदाबाद
इन्किलाब-ए-इन्किलाब जिंदाबाद जिंदाबाद
दी थी कुर्बानी शहीदों ने पूरा करने को यह सपना
देश होगा आज़ाद राजा आप-अपना
बनेगा भारत एक स्वतंत्र समाजवादी संघ
न होगा कोई राजा न ही कोई रंक
नामुमकिन होगा मनुष्य का मनुष्य से शोषण-दमन
खुशहाली मेहनतश की फैलाएगी चैन-ओ-अमन

सदियों की गुलामी के बाद मिली जब आज़ादी
इसकी बागडोर काले अंग्रेजों को थमा दी
सहेली बनी जिनकी खूनी विदेशी पूंजी
शहीदों की शहादत की थाती गँवा दी
बीते नहीं थे अभी  पचास भी साल
तार-तार हुई आज़ादी और मुल्क बेहाल
आठ रूपये का डालर था सन उन्नीस सौ अस्सी में
पचास पार कर गया अब सुधारों की बेताल-पचीसी में

पुरानी से इतनी अलग है नई गुलामी
लार्ड क्लाइव की जरूरत हो गयी है अब बेमानी
मीर जाफर बन गए हैं सारे-के-सारे राजारानी
गिरवी रख दिया इन्होने अपने सभी किरानी
आया है जबसे भूमंडलीकरण का राज
मेहनतकश हो गया है रोजी-रोटी का मोहताज
सरकारें देती जंगल-जल-जमीं पर कारपोरेटी कब्जा
कब पैदा होगा युवकों में अब भगत सिंह सा जज्बा
ज़ुल्म बढ़ता है तो मिट जाता है
खुद-ब-खुद नहीं मिटाना पड़ता है
करता हूँ आज नवजवानों का आह्वान
मिटा दें इस नई गुलामी के नाम-ओ-निशान
बन भगत सिंह ले आयें एक सुन्दर, नया बिहान
२९.०९.२०१२/२०:२३ बजे

Thursday, September 27, 2012

लल्ला पुराण ४४

विविध और बहुल वृत्तांतो से भरपूर महाभारत एक कालजयी रचना है जिसकी कथा-वस्तु पर आज तक लिखा जा रहा है. मिथकीय महाकाव्य से सामाजिक इतिहास समझने के लिये उसे demystify करना पड़ता है. प्राचीन काल की समृद्ध भौतिकवादी और आध्यात्मिक  दार्शनिक परम्पराओं में राजनैतिक सिद्धांत का अभाव है. विचार वस्तु-जन्य होते हैं, इसका उलटा नहीं होता. ऐसा इसलिए है कि सातवीं-छठी शताब्दी ईशापूर्व यानि लगभग बुद्ध के काल तक राज्य एक संस्था के रूप में जड़ें नहीं जमा सका था. तमाम मामलों में आज भी प्रासंगिक कौटिल्य के अर्थशास्त्र से पहले राज्य की उत्पत्ति और कार्यों का सिद्धांत बौद्ध-संकलनों --'अनुगत्तारानिकाय' और 'दीघनिकाय' में मिलता है. यह बात यह रेखांकित करने के लिये कह रहा हूँ कि महाभारत के शांतिपर्व में राज्य के सिद्धांत 'अर्थशास्त्र' से पहले का नहीं हैं. महाभारत उस संक्रमणकालीन समय की कहानियों का काव्यात्मक संकलन है जब ऋग्वैदिक कुटुंब व्यवस्था टूट रही थी और युद्ध के जरिये केंद्रीकृत राज्यों की स्थापना हो रही थी. पुरुष-प्रधान परिवार और वर्णाश्रम आधारित श्रम-विभाजन जड़ें जमा रहा था. भीष्म, पांडवों और कौरवों को क्रमशः गंगा पुत्र, कुंती-पुत्र और गांधारी पुत्र कहा जाता है. विवाह-पूर्व और विवाहेतर प्रेम और  प्रणय प्रतिबंधों और वर्जनाओं की परिधि में लाये जा रहे थे. अन्तःकुतुम्बीय और अंतर-कुतुम्बीय सम्बन्ध गड्ड-मड्ड थे. लोहिया जी ने द्रौपदी को कृष्ण की प्रेमिका बताया तो कुछ आधार होगा. महाभारत का मेरा विशद अध्ययन नहीं है, लेकिन कृष्ण जैसा दिल-फेंक आदमी द्रौपदी से भी प्रेम करते रहे हों, तो आश्चर्य की बात नहीं है. 

बेतरतीब

It is collection of some of the FB comments

That sounds convincing reason for making themselves miserable by turning the means (money) of life into its end.Once I asked a high profile doctor ( a school classmate) what knowledge you have gained that you are selling it so high? I happened to run into him at an airportafter 40 years and he could, surprizingly, recognize me.( except coming and greying of beard

Wednesday, September 26, 2012

मदरसा-ए-ज़ब्त-ए-गम


मदरसा-ए-ज़ब्त-ए-गम
ईश मिश्र 
चलाती हूँ मदरसा-ए-ज़ब्त-ए-गम
ख्वाहिशमंदों के लिए खुला है हरदम
असीमित नहीं है लेकिन शुरुआती कक्षा
पास करनी होगी एक जटिल प्रवेश-परीक्षा
(क्या तुकबंदी है!)
२६.०९.२०१२
निराला है मकतबे इश्क का दस्तूर 
जिसने याद किया उसका खुदा मालिक
समझा मगर जिसने मर्म-ए-इश्क
बावजूद विघ्न-बाधाओं के पास होगा जरूर 
27.09.2012/

बनवारीलाल शर्मा को श्रद्धांजलि

१२ अगस्त २०१२ को प्रयाग विद्यापीठ के उनके साधारण से कार्यायालय में बनवारी लाल शर्मा जी से मिला तो उसी पुरानी बेंत की कुर्सी पर जल के कार्पोरेटीकरण की सरकारी तैयारी पर एक लेख संपादितकरते हुए उतने ही ऊर्जामय और अन्वेषक-भाव में मिले जैसे पहली बार ४० साल पहले विश्वविद्यालय के गणित विभाग की बी.एस्सी.(I) की कक्षा में. लगभग २ घंटे की बातचीत में पानी के भावी कारपोरेटीकर्ण पर चिंता छाई रही. यह नव-उपनिवेशीकरण की शायद आख़री मंजिल हो. इलाहाबाद जैसे सामंती माहौल में, जहाँ प्रोफ़ेसर लगता था किसी और गृह के प्राणी हैं और सीनियर "सर", एक युवा और ओजस्वी प्रोफ़ेसर का प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों से सहज समानुभूति से मिलना एक सुखद आश्चर्य था. गुरूजीजी से संवाद और विवाद  के संस्मरण कभी विस्तार से लिखूंगा. जब इन्होने Abstract Algebra पढ़ाना शुरू किया (जीरो नाम से लिखी इनकी इस विषय पर लिखी किताब अद्भुत है.) तब तक मालुम नहीं था कि प्लेटो ने अपने अकेडमी में गणित न् जानने वालों का प्रवेश-निषेध कर रखा था. गुरूजी (मुझे गुरूजी कहने की अनुमति दे दिया था) एक सार्थक, गतिशील जीवन जीते हुए आज़ादी बचाने के अभियान में सक्रियता के दौरान ही चल दिए. काश अभी न जाते लेकिन अमर तो सिर्फ "देवता" होते हैं. शत शत नमन सर.

याददाश्त लगता है कमजोर पड़ रही है. १९९१-९२ की कभी की बात है. बाबरी मस्जिद तब तक ध्वस्त नहीं हुई थी लेकिन वातावरण में उन्माद था. शर्मा जी ने  इलाहाबाद की 'इंसानी बिरादरी' के साथ मिलकर  गांधी भवन में साम्प्रदायिकता विरोधी सम्मलेन का आयोजन किया था. दिल्ली के 'साम्प्रदायिकता विरोधी आंदोलन' की तरफ से कुछ लोग भागीदारी करने गए थे(उनमें से एक आजकल संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य हैं). सम्मलेन में साम्प्राद्यिकता विरोध की सैद्धांतिक समझ और हिंसा हिंसा में भेद को लेकर हमारे मतभेद भोजनावकाश की चर्चा का विषय बन गया. गुरूजी को तो कभी उत्तेजित होकर बोलते ही नहीं सुना, दुर्भाग्य से यह सद्गुण मैं उनसे नहीं ग्रहण कर पाया. मैं माफी माँगने के अंदाज़ में  पूँछा कि वे मेरी बातों से नाराज़ तो नहीं हुए. उन्होंने बड़प्पन दिखाते हुए पीठ पर हाथ रख कर काम्प्लिमेंट दिया कि उन्हें बेबाकी से बात रखने वाले अपने स्टुडेंट्स पर फक्र है. मुझे फ़क्र है कि बनवारीलाल शर्मा जी का मैं एक चहेता शिष्य रहा हूँ. शत-शत नमन सर. हाई स्कूल में किसी से सुना था, "जब तलक है दम कलम में मैं तुम्हे मरने न दूंगा/ मौत कितने रंग बदले, ढंग बदले तर्ज़ बदले मैं तुम्हे मरने न दूंगा. जब तलाक दम है कलम में मैं तुम्हे मारने न दूंगा." हार्दिक श्रद्धांजलि.(२८.०९.१२)

Monday, September 24, 2012

क्षणिकाएं

क्षणिकाएं
ईश मिश्र
1
वियोग की पीडा उतनी ही सघन है
जितना सघन था संयोग का सुख
[ईमि/25.04.2011]
2
प्यार
होते हैं जो रिश्ते जिश्म के जज्बात के
उड जाते हैं वे चक्रवात के आघात से
बनते हैं रिश्ते जो वैचारिक संवाद से
टूट नही सकते कैसे भी कुठाराघात से
जानबूझ कर हार जाना समर्पण का मर्म है
उसको तोडना ही सच्चे प्यार का धर्म है
[ईमि/15.05.2011]
3
बेहतर है क्रांति का नशा भ्रांति के नशे से
चुनना ही है गर कोई एक इन दोनों में से
एक देता है गगनचुंबी उड़ान, तब्दीली के खयालो को
दूजा ढकेलता है रसातल में निरासा के
छोड़ कर पीछे सारे विप्लवी सवालों को
एक देखता है इंक़िलाबी ख्वाब आर-पार की लड़ाई से
दूजा देखता है इंक़िलाब गठजोड़ में सरमायेदारी से
ईमि/02.06.2011]
4
नई सुबह
आएगी ही वह सुबह रात के तिमिर को चीरते हुए
कार्पोरेटी भोपुओ को ललकारते हुए
हो जाएगी असह्य जबगरीब के पेट की ज्वाला
उतर जाएगा जब धर्म-जाति और अंधविश्वास का नशा
चलेंगी जब हर गली हर गाँव में हाथ लहराती लाशें
गाएंगी कोयल और गौरय्या आजादी के नग्मे
आएगा तब सच-मुच का जंतंत्र
खत्म हो जाएगा दुनिया से कार्पोरेटी लूट्तंत्र
[ईमि/11.06.2011]
5
आचार्य
आचार्यों का मामला तो आचार्य ही जानें
पहले तो जैसा कि हम सब हैं, साधारण माने 
दर-असल हम सब साधारण इंसान हैं
लेकिन कुछ लोग असाधरणता के लिए परेशान हैं
दिखना चाहते हैं वह जो हैं नहीं वे लोग
पाल लेते हैं ढकोसले और आडंबर का रोग
यही तो सार और प्रारूप का अंतर्विरोध है
ज्ञान की प्रगति का सबसे बड़ा अवरोध है
[ईमि/11.06.2011]
6
अवसाद
सच है निर्वात की असम्भाव्यता की बात
पहले तुम थे अब न होने का अवसाद
जब भी करता हूँ ग़मे-जहाँ की बातें
सिनेमा की रील सी गुजरती हैं तुम्हारे साथ की यादें
थी दोस्ती की खुशी भी काफी सघन
कभी भी नहीं हुई कोई अनबन
चंद दिंनो का ही था अपना साथ
हो गया कुछ ज्यादा ही वियोग का अवसाद
[ईमि/13.06.2011]
7
आजकल खोटी चवनी का चलता है सिक्का
जान कर यह राज मनमोहन हो गया हक्का-बक्का
खारीद लिया सारी खोटी चावान्निया बाज़ार से
रखा किसी का नाम चिदाम्बरम किसी का डी. राजा
बजाया उसने खोते सिक्कों से देश का बाजा.
[ईमि28.06.2011]
8
कहते रहेंगे हम
सुनें-न-सुनें आप
एक-न-एक दिन महसूंसेंगे
इसका गुरुत्व और ताप
बढ़ जाएगा जब चारणों का पाप
खुद-ब-खुद होगा कलम हाथ में
कवि बन जायेंगे आप
निहित है यह खतरा विमर्श में
समझें इसे चाहे तो वरदान या समझें अभिशाप
[ईमि/12.07.2011]
9
जब वर्षा शुरु होती है घास हरी हो जाती है
गर्मी की उमस का एहसास कम हो जाती है
उड़ते है उन्मुक्त चील कौवे आकाश में
मय मिल जाती है प्रेम के मधुमास में
[ईमि/12.07.2011]\
10
अदब
अदब थी यहाँ नज़रें ज़िन्दाँ
जहाँ नहीं पंख मार सकता कोई भी परिंदा
 छात्र था यहाँ भौंचक्क और डरा डरा
मुदर्रिस था ३-५ के चक्करों में फंसा बेचारा
छात्रावास दिखे ऐसे
 विस्थापितों के डेरे हों जैसे
हाकिमों का आना होता है १५ अगस्त या २६ जनवरी को
जैसे कुछ मुल्ले निकले हों नमाज़ी तफरी को.
11
सबाब और शराब  से ऊपर नहीं उठ पाती कविताए  तुम्हारी
इतिहास की रद्दी के टोकरी में समा जायेंगी सारी की सारी
[Monday, September 24, 2012/3:42 PM]
12
मंजिल मिलने पर भी नहीं थमती खाहिशें
तलाश होती है नयी मंजिल और नए रास्तों की
तब तक चलता रहता है सिलसिला 
खाहिशों, मंजिलों और रास्तों का
चलती है जब तक दिल की धडकनें 
[Monday, September 24, 2012/5:14 PM]
13
तस्वीर १
कुछ कहती हैं ये वाचाल आँखें
क्या कहती हैं?
बदल डालो यह दुनिया
दिखता है जिसमे तकलीफ का 
इक उमड़ता हुआ समंदर  
Monday, September 24, 2012/१७:५४
14
सीखना-सिखाना है परस्परिक क्रिया
नही कहने की जरूरत किसी को शुक्रिया
[23.09.2012]
15
गुजरे हुए कुछ दुखद हादसे कचोटते तो हैं
लेकिन सुखद यादों के साथ
दुखद-सुखद की द्वद्वात्मक एकता से
बनती है ज़िंदगी की जटिल हकीकत
[२३.०९.२०१२; २२.०२]
16
नहीं होंगे चाहत के ये काले बादल
फिर से जी डराने वाले
इस बार ये धरती को सरोबार कर देंगे
नहीं फेरेंगे अरमानों पर पानी
अबकी ये उन्हें गुलज़ार कर देंगे.
[रविवार23 सितम्बर 2012१३:०२ अपराह्न]
17
ऐसे कितने जमाने गुजरे हैं
कितनी बार यह शब्द सुने हैं
सभी याद रहेंगे जीवनभर 
जिन किसी ने कभी जानू कहे हैं 
[26.09.2012 /5.30 AM]
18
मदरसा-ए-ज़ब्त-ए-गम
चलाती हूँ मदरसा-ए-ज़ब्त-ए-गम
ख्वाहिशमंदों के लिए खुला है हरदम
असीमित नहीं है लेकिन शुरुआती कक्षा
पास करनी होगी एक जटिल प्रवेश-परीक्षा
रूसो की सास्त्र में अरूचि थी
मगर हकीकत तो सीधी बात में ही होती है
ढक दिया है मैंने उन्हें मरहम-ए-गम से
बनता रहे नासूर मगर तुमको न दिखे
है अगर कहीं खुदा तुम्हे महफूज़ रखे
लेकिन खुदा भी है आस्तिको की खुशफहमी
उसी तरह जैसे मुहब्बत थी मेरी
तुम प्यार को निवेश मानती हो
दिल-ए-बेचैनी को बकवास मानती हो
प्यार नहीं है कोइ व्यापारिक निवेश
असुरक्षा के कवच का ढीला परिवेश
[ईमि/१२.०४.२०१३]
19
सिराज्जुद्दौला के भेष में मेरे जाफर हैं सारे
ओबामा के जार-खरीद गुलाम हैं बेचारे
विश्व बैंक के टुकड़ों पर फिरते हैं मारे मारे
ओबामा खुद भी तो गुलाम है जरदारों का
क्या करें इन गुलामों के गुलाम बेचारों का
सो रहा है मिथ्या चेतना में जब तक आवाम
कर देंगे ये गुलाम मुल्क का काम तमाम
मुझको तो है जनता की शक्ति में यकीन
बना देगी एक दिन जर के गुलामों को खाकनशीन
[ईमि/२२.०४.२०१३]
9
[२६.०९.२०१२]
निराला है मकतबे इश्क का दस्तूर 
जिसने याद किया उसका खुदा मालिक
समझा मगर जिसने मर्म-ए-इश्क
बावजूद विघ्न-बाधाओं के पास होगा जरूर 
[27.09.2012/]
10
कक्षा में धमाचौकड़ी मची है
अध्यापक बता रहा है कि
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है
बाहर निकल भागते है
 किसी मरीचिका के पीछे
आगे दिखता बंद राजद्वार 
"आम रास्ता नहीं" का इश्तहार

बंद राजद्वारों  के पीछे के राजपथ 
आरक्षित होते हैं चंद असुरक्षित अभिजनों के लिये 
और इनके संगमरमरी धरातल 
नाम-ओ-निशाँ भी नहीं छोड़ते किसी हलचल के
इसीलिये मुझेभाते हैं टेढ़े-मेढे कच्चे रास्ते
गिरते-फिसलते चलते जाते हैं जिनपर
ताकत से मिट्टी की गंध की
यादें रह जाती हैं और हिचकी आती है
लगता है किसी के बही में मेरा भी नाम दर्ज है
काश पता चल गया होता 
'टूलेट' की तख्ती धुंधलाने के पहले



मुझे कक्षा में ऊब होती है
मैं एअस्तू नहीं  समझ सकता.
[२७.०९.२०१२/शाम ६.०५ बजे]
11
तस्वीर २ 
कुछ कहती है यह अर्थपूर्ण पुस्कान
कुछ कहती हैं वाचाल आँखे भी
संकल्प है इनमें भरने की ऊंची उड़ान
रोक नहीं सकता जिसे कोइ भी आसमान
11A
क्या बात है इस बेबाक-सरल  खूबसूरती में
किसी नास्तिक का भी  मन रम जाये इस मूर्ती में
[३०.०९.२०१२/१२.५५]
12
 तस्वीर ३
यह जिस्म की दावेदारी और शोख  मुस्कान
दिखाती है संकल्प भरने की नयी  नयी उड़ान
तय करना है नई ऊंचाइयां आयें कितने भी तूफ़ान
टूटेंगी वर्जनाएं सारे नहीं रुकने को अब यह अभियान
[०१.१०.२०१२/०८.३१]
13
ख्वाब
मुट्ठी में समेटने से पिघल जाते हैं ख्वाब, होती हैरानी
देखना नित नए, सुन्दर ख्वाब है प्रगति की निशानी
मुट्ठी से फिसल जाते हैं ख्वाब,बाँट दो इन्हें अजीजों में
मिलकर देखने से ख्वाब, बेहतर होते हैं नतीजों में.
[०१.१०.२०१२/०९.००]
14
निगाहों की वाचालता है इत्तिफाक
लबों से ही होती है पूरी बात बेबाक
[02.10.2010/05:46]
15
शायरी 
शायरी तो महज बहाना है
मकसद तो फिजा बनाना है
आपस में मिलकर रहें लोग जहां
वैमनष्य का न हो रोग वहां
मिल-जुल बनाएं इक ऐसा समाज
हो जिसमें मेहनतकश का राज
[Wednesday, October 03, 2012/5:29 AM]
16
कौन कमबख्त जाना चाहेगा आपसे दूर
छोड़कर दोस्ती का ऐसा अनोखा हूर
साथ छोड़ना ऐसा कतई नामंजूर
तोड़ना पड़े चाहे कितने ही दस्तूर 
(एक और तुक बंदी, शुक्रिया सुमिता जी! )
[03.10.2012]
17
आज तक याद है 
वह सुरमई शाम और उमड़ती लहरों का संगम
दिलों में उठा वह तूफ़ान और 
सुलझाना उलझी ज़ुल्फ़ों का
जब मैं और तुम हो गए थे हम
[03.10.2012]
18
तस्वीर ४ (अलोका)
क्या रौनक है और क्या अंदाज़ है
दुनिया बदलने को आँखें बेताब हैं

कोइ भी बन जाये कवि
दिखे ऐसी जब छवि
कविता अक्सर नारा होती है
कभी कभी प्यार का इशारा होती है
[04.10.2012]
19
ईमानदार चोर 
यह चोर बहुत ही  ईमानदार है
देश की नीलामी का अहम् किरदार है
बेचता है देश कहता आर्थिक सुधार है
देश को ऐसे ही चोरों की दरकार है
भारत महान की यह ईमानदार सरकार है
[04.10.2012]
20
मजबूरी का प्यार प्यार नहीं होता
प्यार में कोइ ऐसे बेज़ार नहीं होता 
21
क्या भाव है, लगती है यह पक्के इरादों की मूरत 
संकल्प दिखता है बदलने का दुनिया की सूरत 
कैद कर नहीं सकती इसे कोई भी रवायत या वर्जना 
विघ्न-बाधा भागते सुन् इसकी बुलंद गर्जना 
(हा हा एक और तुकबंदी)
[13.10.2012]
22
खुदा खुदकुशी नहीं करता, खुकुशी करता है इंसान
इंसानों की खुदकुशी के हालात बनाता है भगवान
खुदा मरता नहीं हासिल करता है साश्वत शहादत 
मरने के बाद भी होती रहे जिससे उसकी इबादत 
[खुदा की रूह से माफी के साथ]
23
नामुमकिन है उमडती लहरों का रोक पाना
बेहतर उनके साथ सामंजस्य बैठाना
[23.10.2012/6AM]
24
लहरों को रोकना, है असाध्य को साधना
है यह उनकी उन्मुक्त प्रकृति की अवमानना
कितने ही जीवों का श्रोत है इनकी आज़ादी
तह में हैं इनके कितने ही  कीमती मोती
साधो निशाना असम्भव पर जरूर
क्योंकि है वह महज एक अमूर्त फितूर
लहरों से मत करो मगर छेड़खानी
ऐसा करना है महज नादानी
25
भूख के एहसास पर लिखता हूँ इसलिए गजल
देखा ही नहीं भोगा है भूख का हमने शगल
जो भूखे हैं वो भी हमारी ही तरह इंसान हैं
लूट के निजाम में अन्न पाने को परेशान हैं
इबादत जिनकी होती है वो बनते भगवान हैं
हकीकत में लेकिन इंसानियत खाने वाले हैवान हैं
26
लोग कहते हैं मेरी गजलें  नारा क्यों होती हैं
मैं कहता हूँ हर गज़ल नारा क्यों नहीं होती
और हर नारा क्यों नहीं होता कोई नज्म?
27
अघाए लोगों को दिखाई देता हैं चाँद एक सुन्दर मुखड़ा
नंगे-भूखों को दिखता है वो सूखी रोटी का एक टुकड़ा
28.
बेरुखी 
बेरुखी कभी भी बेबात नहीं होती
अश्को की दरिया में किश्ती नहीं चलती.
28 A
जो बेबात बेरुखी बुरी होती है
वहम-ओ-गुमां से जुड़ी होती है
यह आदत है धनवानों की
तर्कहीन विद्वानों की.
29
राजपथों पर गुजरते हैं इक्का-दुक्का ही काफिले
चिकने धरातल  ऐसे हादसों के गवाह ही नहीं  छोड़ते
चलते हैं इनपर वहम-ओ-गुमाँ वाले
डरते है जो अपने ही पैरों के निशान से
छोड़ना चाहते हैं अपनी छाप
अज्म-ए--जुनूं वाले कारवानेजुनून
और चलते है  कच्ची पगडंडियों पर
बनाते हुए रास्ता  आने वाले राहगीरों के लिए
पहुँचता है कारवाँ जब एक मंजिल पर
दस्तक देती है तेज है हवाएं
दिलाती हैं एहसास अगली मंजिल का
आगे दिखती हैं और भी मंजिलें
दिखते हैं पीछे कारवानेजुनून के कई काफिले.
30
निगाहों की तश्नगी 
ईश मिश्र 
ढूंढेगी जिसे भी इतने खलूस से निगाहों की तश्नगी
इनमें डूबना हैं अहल-ए-जूनून से इश्क की बंदगी
ये आँखे हैं सघन जज्बातों के उमड़ते हुए समंदर
मिलेगा मोती-ए-ज़िंदगी पैठ गहरे इनके अंदर
30A
नयनों के अंदाज़ हों गर उमड़ती लहरों के  समंदर से
जी करता है करने को खुदी इसके ज्वार-भाटा के हवाले
30B
होंगे नयना जो सावन-भादों
मन रहेगा उदास
करेगा किसी कृपा की आस
और नहीं बुझेगी प्यास
30C
हो नज़रों में इतने तेज का एहसास
कुंएं को भी हो जाए प्यास का आभास
चल कर खुद-ब-खुद आ जाए पास
बुझाने एक दूजे की नैसर्गिक प्यास
31
तस्वीर ५
क्या कहती हैं चकित हिरनी सी ये निगाहें
और साथ में  अर्थपूर्ण मंद मुस्कान?
कर रहा होगा मन तैयारी
भरने को गगनचुम्बी एक नई उड़ान
तल्खी दिखती है जज्बात में कड़वाहट नहीं
करती हैं ये बुलंद इरादों का ऐलान

करता नहीं तारीफ़ बेबात, हूँ मुंहफट इंसान
जो होगा सुपात्र करूँगा उसीका गुणगान
बिना चुम्बकीय आकर्षण डोलता नहीं ईमान
किसे नहीं भायेगी ये संकल्पवती मधुर मुस्कान
32
तस्वीर ६
ये भाव कुछ उदास से
व्यापक ना-इन्साफे क्र आभास से
दींन-दुखिया की पीड़ा के एहसास से
समाज के परसंतापी संत्रास से

वह! क्या बात है सुमिता काम्थान की
ख्यालों के परवाज-ए-उड़ान की
[१६. ११. ०१२]
33
जब तक निजाम-ए-ज़र रहेगा
पोंटी चड्ढा बा-असर रहेगा
34
यदि मैं भी ओबामा का गुलाम होता
दुनिया में मेरा कितना नाम होता
सैकड़ों हरम-ओ-हमाम का इमाम होता
हर शहर में फ़ार्म हाउस हर सूबे में मकान होता
राजमाता का आशीर्वाद युवराज का साथ होता
रहमत-ए-विश्वबैंक सर पर वालमार्ट का हाथ होता
जलवे ऐसे होते तो वजीर-ए-आज़म हिन्दुस्तान होता
35
यह कैसा मातम है कौन मरा
क्यों कोहराम मचा है मातम पर?
36
पास आने का मकसद है संगम दिलों का
करना तिरस्कार बेबात, वायवी फासलों का
37
गर तुगलकी चाल चलते हों रहनुमा
जाहिर है हो जाएगा मुल्क खासा बदनुमा
38
तुम्हारी जुदाई के गम में कितना शकून था
तन्हाई की मस्ती न कोई नियम-क़ानून था
आज़ाद था मन निर्बंध विचरण का जूनून था
बाकी वक़्त दिल में तुम्हारी यादों का मजमून था
[02.12.2012]
39
इन आँखों में छिपी है जो प्रज्वलित आग
अलाप रही है वर्जनाओं से विद्रोह के राग

कितनी दुर्लभ है यह आग आज के ज़माने में
इसीलिये तो खास हो इन्किलाबी आशियाने में

बचा कर रखो इसे अपने सीने में
काम आयेगी यह खुद्दारी से जीने में

ये छिपे हुए तीरहैं तुम्हारे इरादों के हरकारे
नेश्त-नाबूद कर देंगे हुश्न के पिंजरे सारे

साधुवाद दुनिया के दुश्मनों से नफ़रत के लिये
और जमीर-ए-ज़िन्दगी, मेहनत से मुहब्बत के लिये

उड़ो इतना ऊंचा कि आसमां भी सीमा न हो
धरती कभी भी लेकिन नज़रों से ओझल न हो
[02.12.2012]
40
तेरी आँखों से टपका जो पानी का कतरा
पैदा हो गया अश्कों के समंदर का ख़तरा
यही है तो है तुम्हे चाहने वालों की अदा
तैरना गहराइयों में उनकी खासी अदा
तूफ़ान में निकलते हैं जब वे परवाज पर
मिजाज़-ए-तूफ़ान बदल जाता इस अंदाज़ पर
[०३.११.२०१२]
41
पढ़ता हूँ जब कोई भी अफ़साना-ए-मुहब्बत की किताब
गम-ए-जहाँ के हिसाब में तुम याद आती हो बेहिसाब
पहले लोग लड़की को समझते थे किताब-ए-सबाब
लिख रही हैं लड़कियां अब जंग-ए-आज़ादी की  किताब
[०४.११.२०१२]
42
चाहत में रंग भारती है पारस्परिकता
मुहब्बत में इबादत है इक बड़ी खता
[0.5.11.2012]
43
 कहके भी न कहना
निगाहें चुराना नज़रों से बात करने  की इक अदा है
नज़रों से कहके भी न कहना मेरे यार की सदा है
(ईश/६.१२.२०१२)
44
एक बार मुझे भी हुआ था यह एहसास
मिला था जब प्यार में पागलपन का आभास
45
मुहब्बत बनाती है लोगों को इंसान बेहतरीन
रखती है सदा हाल-ए-मिज़ाज ताजा-तरीन
[08.12.2012]
46
मंजिल तलक तो हम पहुंचेगे ही कभी-न-कभी
लिये हाथों में हाथ साथ गर चलेंगे हम सभी
[08.12.2012]
47
जो महफूज है दिल-ओ-जान में
वो कैसे भूल सकती है सपने में भी
लिख लिया है जो नाम सुर्ख लहू से
याददाश्त से कैसे गायब हो सकती है?
बदलती रहे तारीख रंग-ओ-ढंग-ओ-तर्ज़
भुला नहीं सकता कलम याद का फ़र्ज़
[11.12.2012]
48
करते ही रहना है अदा ये फ़र्ज़
समाज का है ये हम पर ये क़र्ज़
शोषितों के लिये लड़ते हैं इन्किलाबी
दुनिया बदलने के और रास्ते हैं नाकाफी
[12.12.'12]
49
जो दरिया झूम के उट्ठा है/खुद राह बनाता जाएगा
जो भी रोड़े अटकाएगा/सागर में बह जाएगा
[12.12.'12]
50
हैं कितने खुशनसीब वे हैं आप जिनके करीब
चाहता हूँ आपको दिल-ओ-जान से
नहीं मानता फिर भी उन्हें रकीब
[6.15AM/16.12.2012]
51
शब्द 
शब्द बेचैन करते हैं
कुछ शब्द तो बहुत बेचैन करते हैं 
बेचैनी गवाह है ज़मीर की मौजूदगी की 
कराती है एहसास अंतरात्मा की अतल गहराइयों की 
बेचैनी अंतरात्मा का गुण है दोष नहीं 
वैसे ही जैसे शर्म है एक क्रांतिकारी एहसास 
   [26.06.05]
52
सीधी सपाट है जिनकी ज़िंदगी
जीवन व्यर्थ हो जाता है उनका
करते हुए खुदा की बंदगी
टेढ़े-मेढे रास्तों पर चलती जो
वही है दर-असल सार्थक ज़िंदगी
[17.12.12]
53
कुछ खास अदा है इन आँखों की
मंद मुस्कान अभिव्यक्ति है
उमडते समंदर सी खुशी के सौगातों की.
[17.12.12]
54
कुछ कहती है यह सुन्दर सरल मुस्कान
करती हैं नज़रें किसी खास संकल्प का ऐलान
[17.12.12]
55
नहीं है यह बात सुक्रिया की या  जर्रानवाजी
यह तो है  हकीकत की सपाट बयानबाजी
56
[17.12.12]
लिखने को कविता इस तस्वीर पर
शब्द ढूढने होंगे नए तजवीज कर
57
मदहोश सल्तनतें गिरती हैं अपने ही भार से
त्वरण की जरूरत हैं जागरूकता के उभार से 
[28.12.12]
 58
लगा दो आग इस कमज़र्फ जमाने को अभी
रचो  नया ज़माना गज़लगो हों जिसमे सभी
शब्दों में है रवानगी और ताकत इतनी अथाह
थरथराते हैं इनसे सारे के सारे कमीने तानाशाह
बने गर गज़ल जंग-ए-आज़ादी का लाल फरारा
जीत लेंगे हम मेहनतकश संसार सारा का सार
  ईमि[27.12.12]
59
तरजीह नहीं मिलती दान में या दुकान पर
कमाई जाती है कर्मों से इज्ज़त की तरह
हुनर है जो गढ़कर शब्द गज़ल रचने की
घी से इसकी धधका दो आग युवा आक्रोष की  
बन जाए यह आग ऐसा भीषण दावानल
बुझा न सकें जिसको तोप-टैंकों के दमकल
बना दो गज़ल को एक ऐसा विप्लवी नारा
दहल जाए जालिमों का संसार सारा का सारा
गजल हो हमारी हरकारा इन्किलाब की
महरूमों-ओ-मजलूमों के सिसकते ख़्वाब की
मेरी गज़ल तो गज़ल नहीं एक नारा है
इन्किलाबी जज्बातों की एक अदना हरकारा है.
[ईमि/२७.१२.१२]   
                    60                                
 नहीं है दूर वो दिन इन्किलाब भी होगा
"नहीं है दूर वो दिन इन्किलाब भी होगा"
तब अब्र भी होगा माहताब भी
होगी गज़ल गतिशील और आज़ाद
कहेगी बात इंसानी उसूलों की
60A
बहुत सुन्दर, लिखते रहो बधाई हो
खत्म लेकिन रकाबत की लड़ाई हो (हा हा )
60B
हाथ मिला ले अपने इस रकीब से
रिश्तों की आज़ादी देखो करीब से
लेकर हाथों में हाथ हम चलेंगे साथ साथ
आएगा इन्किलाब, होगा दुनिया में इन्साफ
इमि[27.12.12]
61
सहो मत प्रतिकार करो
मर्दवाद के दुर्ग पर बार बार वार करो
फांसी से बलात्कारी के न खत्म होगा यह सिलिला
खत्म करेगा जड़ से इसे नारीवाद का काफिला
[27.12.12]
62
दोजख कैसा होगा वाइज़ ही जाने
शर्म आती है मनुष्य की दरिंदगी की ख़बरों से
हटती ही नहीं ये ख़बरें मगर कभी नज़रों से 
लगता है हम शर्मिस्तान में रहते हैं
हर रोज कई शर्मनाक ख़बरें सहते हैं.
दोजख कैसा होगा वाइज़ ही जाने
खुदा की इस दुनिया से बुरा क्या होगा?
         [ईमि/२५.१२.'१२ ]
63
 जो किसी खुदा को नहीं मानते
एक नास्तिक थे भगत सिंह, जिनका यह कहना है
इन्किलाबी को ज़ुल्म-ओ-सितम से लड़ते ही रहना है
तहे-ज़िंदगी लड़े वे नाइंसाफी के खिलाफ 
पा गए जवानी में ही शहीद-ए-आज़म का खिताब

हम भी जो किसी खुदा को नहीं मानते 
कोई पीर-ओ-पैगम्बर नहीं जानते
न करते है बुत-फरोशी, न यकीं अवतार में  
असंदिग्ध निष्ठा है जिनकी इंसानी सरोकार में

उठाते ही हैं हाथ वे हर ज़ुल्म के खिलाफ
बुलंद इरादों और ऊंची आवाज़ के साथ
क्योंकि वे नहीं मानते किसी खुदा का इन्साफ
धरती पर ही माँगते हैं धरती के ज़ुल्म का हिसाब
-- ईमि[२१.१२.१२]
64
खत्म होगा ज़ुल्मतों का यह दौर भी
हर दौर कभी-न-कभी कभी खत्म होता है 
खत्म होगा ज़ुल्मतों का यह दौर भी
देखना है आ जाए न नया दौर  नयी ज़ुल्मतों का 
आता रहा है नया ज़ालिम पुराने की जगह  
यही तजुर्बा है अभी तक तारीख का 
लाखों वर्ष जब तक आदिम इंसान था 
न था जर न ज़ुल्म-ओ-सितम का निशान था
लाना है यदि दुनिया में एक उजाला बिहान 
खत्म करना होगा जड़ से जर का निजाम 
ईमि[३१.१२.१२]
65
ज़िंदगी जो किसी के काम आये वह इबादत नहीं इंसानियत है
टुकड़ों में बांटना इंसानियत को इबादत की खास फितरत है.
ईमि[०२.०१.१३ .२०१३]
66
जमीन को ही प्यार से संवारो
चाँद की उपमा को गोली मारो
[ईमि/३.१.१३]
67
माना कि घी टेढी उंगली से ही निकलती है
[ईमि/३.१.१३]
68
क्या बात है?
यह गरिमामय ललाट, आँखों की इन्द्रधनुषी तरंग
अर्थ पूर्ण मुस्कान में कुछ कर गुजरने की उमंग
लिखने को करता मन इस तस्वीर पर कविता
काश भाषा समृद्ध होती या मैं भाषाविद होता
[ईमि/३.१.१३]
69
क्या सवाल हैं इस बेटी के हाथों में ?
क्यों दहक रहा है इसकी आँखों में शोला?
क्या संकल्प है स्वाभिमान से लबरेज इन भंगिमाओं में?
क्या कह रहे हैं इसके गगनचुम्बी जज्बात?
[ईमि/०७.०१.१३]
70
चीखों की बमबारी 
काफी  नहीं है एक चीख कुम्भकरणों के लिए 
निजाम के शातिर चारणों के लिए 
तोड़ने के लिए उदासीनता के साज को 
सुनाने के लिए इस बहरे समाज को 
जरूरत है चीखों की लगातार बमबारी 
दुर्गद्वार पर दस्तक का होता नहीं असर 
करनी पडेगा बमबारी अब इस दुर्गद्वार पर 
चारों दिशाओं से  बार बार लगातार
[ईमि/ ०७..०१.२०१३]
71
कुछ-न्-कुछ होता ही रहेगा जुनून-ए-ज़िंदगी में
 अगर्चे असंभव पे होगा निशाना बुलंद इरादों का
बढ़ते रहे गर मंजिल की तरफ आज़ादी की मस्ती में
मंजिल ही चलकर आ जायेगी तुम्हारी अपनी बस्ती में
[ईमि/ २१..०१.२०१३]
72
दहक रही है भीषण ज्वाला
तकलीफ के उमडते समंदर सी इन आँखों में
क्रोध का सुलगता ज्वालामुखी
पहाड़ से भी ऊंचे मंडराते बुलंद इरादों के जज्बातों में
निकली है नहीं देने दस्तक बल्कि तोडने मर्दवाद का दुर्गद्वार
भस्म करने सारे-के-सारे मर्दवादी आचार-विचार
[ईमि/ २३.०१.२०१३]
73
जो हासिल किया उसे संवारो
बेचैनी से सोचो और बिचारो
मत हो संतुष्ट मिल गया जो
बढ़ो तलाश में मंजिल की अगली
इरादे हों बुलंद और सरफरोशी का जज्बा
रास्ता करेगा खुद-ब-खुद तुम्हारा सज़दा
फिर अगली और अगली  मंजिलें
सफर जारी रहे जब तक धडकनें चलें
[ईमि/ २३.०१.२०१३]
74
मुझे ढूढना ही नहीं पडा भीड़ में अपने "तुमको"
कार्वानेजुनून  में हम थे साथ लिये हाथों में हाथ
लुत्फ़ आता रहा है गम-ए-जहाँ में जीने में इतना
मरने की कभी सपने में भी तमन्ना ही न हुई
[ईमि/२७.१.२०१३]
75
बर्बाद होने का मौक़ा ही नहीं मिला
मजबूरन आबाद ही रह गए
किसी ने चुराया ही नहीं नीद
सोते हैं हाथी-घोड़े सब बेचकर
[ईमि/२७.०१.२०१३]
76
जो होते हैं बर्बाद उन्हें प्यार करना नहीं आता
आग  जो सीने में है उसे दहकाना नहीं आता
प्यार की आग हमसफ़र है इन्किलाब की
प्यार की इक नई दुनिया बसाने के ख्वाब की
[ईमि/२७.०१.२०१३]
77
समझा ही ही नहीं दर्द-ए-गम को दर्द हमने
मशगूल रहे इतने जंग-ए-आज़ादी के  जूनून में
अंधेरों ने की घेरने की कोशिस कई  बार
सीने में धधकती आग से किया उसका प्रतिकार
ज़ुल्मतों का दौर चलता है तब तक
ज़ालिम से लोग डरते हैं जब तक
बंद कर दे ज़ालिम से डरना जो आवाम
ज़ालिम का जीना हो जाए हराम
चलता हूँ हटकर लीक से रास्ते पर नए
तकलीफों का आनंद लेते हुए
मिलती है  ताकत इतनी इससे
डरता नहीं कभी भूत से न भगवान से
[ईमि/27.02.2013]
78
मिला दिया गम-ए-दिल गम-ए-जहाँ से
याद रखा छोटे से साथ को हमसफ़र के
यादें छोटी हमसफारी की इतनी सुहानी
गम-ए-तन्हाई लगती बिलकुल बेमानी
हा हा [ईमि/२७.०१.२०१३]
79
क्यों मरने की जल्दी में हैं, मौत महज निर्वात है
जिंदादिली से ज़िंदगी का अलग अनूठा अंदाज़ है
है अगर निष्ठा और सरोकारों में नीयत साफ़
मिलेगा स्वजनों का जिगरी लंबा साथ
 [ईमि/२७.०१.२०१३]
80
जाया हो चुकी ज़िदगी क्या लुफ्त उठाएगी
खो चुकी जो खुद को लुफ्त क्या खाक लायेगी
जीने और जीने के बीच है पल भर का फर्क 
जिंदा कौमों की ज़िंदगी मांगे हर पल का तर्क  
इसीलिये जीना है क्षण-से-क्षण-तक हरेक क्षण
गुनाह है जाया करना जीवन का एक भी कण
मांगेगी तारीख जब एक-एक पल का हिसाब 
खोलोगे जाया वक़्त के लिये कौन सी किताब
[ईमि/२८.०१.२०१३]
81
इस पार प्रिये तुम हो मधु है
इस पार प्रिये तुम हो मधु है
देखूं उस पार नज़ारा क्या है
अनजाने के अन्वेषण में ही
जीवन का गतिविज्ञान रचा है
होता क्यों  मन डगमग तट की हिलकोरों से
कश्ती उतारो ले प्रेरणा इन मचलती लहरों से
करो पकड़ मजबूत पतवारों पर
हो जाओ सवार तम सागर के मंझधारों  पर
लिए हाथों में हाथ हम साथ जो होंगे
तूफानों से कश्ती चुटकी में निकाल लेंगे
निकलेंगे चीर कर जब तमसागर के तूफ़ान
उस पार दिखेगा जगमगाता एक नया बिहान
छोडनी होगी आदत मगर हिलकोरों से डरने की
जुटानी होगी हिम्मत अनजाने खारों से लड़ने की.
[ईमि/२८.०१.२०१३]
हा हा
82
मुहब्बत को सबा की तरह आनी चाहिए
आंधी-तूफ़ान की तरह नहीं 
आहिस्ता-आहिस्ता लोटे से भिगोना चाहिए
बारिश झोंको की तरह नहीं.
[ईमि/२८.०१.२०१३]
83
इश्क की आंधी में बरसता ही है दिल-ए-आशिक 
सरोबार हो जाता है हो इक नयी दुनिया से वाकिफ 
[ईमि/२८.०१.२०१३]
84
अपने को ही छल रही हैं मान कर मर्दवादी रवायत  
बनकर फरियादी और करके इबादत
आशिक को देती है आप खुदाई की आदत
इश्क है माशूक-ओ-आशिक के बराबरी के जज़्बात 
[ईमि/३१.०१.२०१३]
85
सुख और मुगालता
इबादत और मोहब्बत में है छत्तीस का विरोधाभास 
इधर खुदाई का गुमां है उधर पारस्परिकता का आभास 
मान  लेता है इंसानी  मोहब्बत को जो रूहानी इबादत 
झेलता है तह-ए-उम्र वर्चस्व और गर्दिश-ए- इश्क की सांसत 
इसी लिये ऐ आशिक-दिल इंसानों सीखो मुहब्बत का मूल-मन्त्र 
बुनियाद हो संबंधों का समताबोध और पारस्परिक जनतंत्र
होंगे अगर रिश्ते भगवान और भक्त के खानों में विभक्त 
न होगा सुखी भगवान न ही होगा संतुष्ट अभागा भक्त 
सुख का सार है पारदर्शी, रिश्ते की जनतांत्रिक पारस्परिकता 
शक्ति-समीकरण के संबंधों में होता है सिर्फ सुख का मुगालता 
[ईमि/०१.०२.२०१३]
86
क्यों लगे बेबाक जुबान पर कोई लगाम हमारी
कठमुल्ले कर सकें जिससे जहालत के फतवे जारी
देता हूँ खुली चुनौती जो हैं  खुदा-पैगम्बरों के पैरोकार
दम है खुदाई में तो ले मेरा एक बाल  भी उखाड़
[ईमि/०४.०२.१३]
87
उठ नहीं पाते जो जीववैज्ञानिक दुर्घटना की पहचान से
करते हैं इज़हार-ए-जहालत अपनी  वहम-ओ-गुमान से
करते हैं वे अपमान तहजीब-ए-सलीका-ए- इंशानियत का
कहते कौमी ईमान और खेलते खेल बर्बर हैवानियत का
नास्तिक हैं हम डरते नहीं किसी भी भूत और भगवान से
डरेंगे क्यों हम अवाम के दुश्मन फिरकापरस्त हैवान से
खुद्दारी ऐसी कि बुलंद हैं इरादे परे इस आसमान से
यकीं खुद पर तो मांगे क्यों दुआ किसी राम-रहमान से
[ईमि/०५.०२.२०१३]
88
क्या सोच कर तुम मेरा कलम तोड़ रहे हो,
इस तरह तो कुछ और निखर जायेगी आवाज़
मौजूदा  मौन को मेरी शिकस्त न समझो
फिर उट्ठेगी, हिंदुकुश पार कर जायेगी आवाज
हमारी दावेदारी का यह साज़ चुप है टूटा नहीं
मुफ्तियों की मौत का पैगाम बन जायेगी आवाज़
आगाज ने ही कर दी हराम नीद खुदा के खिद्मद्गारों की
फतवों के ज़ुल्म से अब  दब सकेगी ये आवाज 
 बाज आओ फतवेबाजी की जहालत से
दबाओगे तो और भी बुलंद होगी आवाज़ 
[ईमि/०६.०२.२०१३]
89
कोलाहलपूर्ण सुकून
ईश मिश्र
हमारी सोहबत में इतना कोलाहलपूर्ण सुकून था
कि खलती रही है कमी एक दूजे की छूटा जब से साथ
लेकिन सच हैनिर्वात नहीं रहता
पहले हम साथ थे अब मधुर यादें   हैं पास
अच्छे तो लगे और भी लोग
तुम्हारी अच्छाई थी कुछ खास
अलग-अलग खास होती है हर अच्छाई
[ईमि/०८.०२.२०१३] 
90
पक्का रंग है प्यार का चढ़े न दूजा रंग
खुद को खोजता हर शख्स प्रेयशी के संग
[ईमि/१४.०२.२०१३]
91
कहा अमीर खुसरो ने
 उल्टी दरिया प्यार की 
 जो डूबे सो पार
 डूबा हूँ दरिया में प्यार की 
दिखता नहीं कोई ओर-छोर 
पाने को सुगंध माटी की 
तरसे मनवा मोर 
 वेलेंटाइन दिवस मुबारक 
प्यार-मुहब्बत जिंदाबाद
[ईमि/१४.०२.२०१३]
92
प्यार खोजने के नाम पर खोजते रहे खुद का दिल
जानते हुए कि खोजने से नहीं मिलता  प्यार
उसी तरह जैसे खोजने से नहीं मिलती खुशी
भटकते रहे दर-दर अन्वेषण के भ्रम में
समानान्तर चल रहा था अपना दिल-ए-यार
मिलने को उससे बस कर लो जहाँ से प्यार
[ईमि/१५.०२.२०१३]
93
ज़िंदगी में छिपी हैं संभावनाएं अनंत
धुवें से सिगरेट के होता नहीं उनका अंत
संभाल कर रखो इस जिनगी को अमानत है आवाम की
अंगार छिपे इसमें बनेगी आग इन्किलाब की
[ईमि/१५.०२.२०१३]
94
हमने तो जहमत ही नहीं उठाई 
आंसुओं का जलाशय बनाने की 
हिफ़ाज़त की जरूरत हो जिनकी
ऐसे साज-ओ-सामान जुटाने की
[ईमि/२५.०२.२०१३]
95
कायरतापूर्ण पलायन है खुदकुशी
नकली जहर पीते हैं  नाकाम आशिक
सहानुभूति की की उम्मीद में
कहते हैं जहर था अमृत माफिक
न जी पाते हैं न मरते ऐसे डरपोक
होते नहीं ये अभागे ज़िंदगी के सुख से वाकिफ
[ईमि/२८.०२.२०१३]
96
बीते लम्हों की आती हैं जब मधुर यादें
गम-ए-जुदाई की भूल जाती हैं सब बातें
[ईमि/०८.०३.२०१३]
97
है हर लम्हे का बीत जाना कुदरती फितरत
 देता है जीने वाला उन लम्हों को सोहरत
कसक छोड़ जाते हैं वे बीते लम्हे
बला की खूबसूरती होती है जिनमें
मिलता है जब कभी फिर ऐसा साथ
बहुत याद आती है उन लम्हों की बात
[ईमि/०८.०३.२०१३]
98
छोड़ चुका था मयनोशी/
ज़िंदगी से कोई शिकायत न थी/
बरसा के चंद कतरे मय के/
तुमने दिल की प्यास बढ़ा दी,
[ईमि/१७.०३.२०१३]
99
हर प्यार होता है इतना अनोखा/ 
लगता है अनदेखा पहले सा/ 
 जब भी हो जाता है/ देता है अनुभूति/
 सघनतम पारस्परिकता की/ 
लगता है कुछ भी नहीं रहा है ऐसा/
 पहले प्यार के सिवा. 
[ईमि/१३.०३.२०१३]
100
क्यों खुश है इतनी यह लड़की
लिये आँखों में जज्बात अंतरिक्ष के उड़ान की
कामयाबी की उम्मीद है राज इस मुस्कान की
चाहती है लांघना सीमाएं आसमान की
लगते हैं इरादे इसके असदंदिग्ध पक्के
रोक नहीं सकते अब रास्ता चोर ओर उचक्के
[ईमि/२२.०३.२०१३]
101
टूट जाते हैं सभी हाथ हमारे गिरेबान तक आते आते
माफ कर कमजर्फ हाथों को हैं हम खुदा से बड़े हो जाते .
[ईमि/२९.०३
102
किसी ने कहा
माना कि बुरा है ज़र का निजाम
मगर और रास्ता क्या है?
एक ही रास्ता है निजाम-ए-आवाम
होती नहीं कभी ज़िंदा कौमें विकल्पहीन
विकल्पहीनता मुर्दा कौमों की निशानी है
डालना है विप्लवी जान इन ज़िंदा लाशों में
हाथ लहराते हुए हर लाश तब आगे बढ़ेगी
तरासेंगी की नया विकल्प आगामी पीढिया
इतिहास की गाड़ी में बैक गियर नहीं होता
खत्म तो होगा ही ज़र का निजाम भी
इतिहास में कुछ भी अजर-अमर नहीं होता
[ईमि/३०.०३.२०१३]
103
क्या राज है इस अर्थ्पोर्ण मुस्कान का
दर्शाती इरादे किसी ऊंची उड़ान का
दिखता नहीं भय किसी आंधी तूफ़ान का
संकल्पशील भाव है चेहरे पर स्वाभिमान का
नापेगी जब यह अंतरिक्ष की दूरी
आसमान की सीमा लगेगी अधूरी
इरादे हैं इसके अब बुलंद और प्रखर
पूर्वाग्रह और पाखण्ड नहीं कर पायेंगे कुंद इसकी धार
चल पडा है जो कारवाँ रुकेगा नहीं अब अभियान
बिघ्न-बाधाओं के मिट जायेंगे नाम-ओ-निशान
104
 कोई दोस्त इतना अजीज
 जब करते हैं बेचैन कुछ शब्द
हो जाता हूँ बिलकुल निःशब्द
करने को तारीफ़ उत्साह भरी आँखों की
दिखती जो अलग भीड़ में लाखों की
रोक नहीं सकता जिन्हें कोई महाकाल
पड़ जाता  है शब्दों का भीषण अकाल
करने को वर्णन यह बुलंद इरादों की मुस्कान
अन्वेषण में शब्दों के लग जाती थकान
चेहरे पर झलकते जज्बात और ताजगी के भाव
दर्शाते हैं पक्के इरादे और प्यार भरा स्वभाव
दोस्ती का होता मन पार कर उम्र की दहलीज
मिल जाए गर कोई दोस्त इतना अजीज
[ईमि/03.04.2013]
105
बोझ बन जाये जब कोई रिश्ता
किसी को भी सकूँ नहीं मिलता
तर्कहीन है ढोना अनायास बोझ
दिखलाता है बेहद बचकानी सोच
ढोते रहना उसे लिहाज में
पुराने दिनों की याद में
जज्बातों के ऊंचे परवाज में
असंभव उम्मीदों के आगाज में
होगा गिरना गहरे अवसाद में
बोझ की थकान पैदा ही करेगी कटुता
कैसी भी क्यों न हो वाक्पटुता
[ईमि/०४.०४.२०१३]
106
पहले जैसा कभी कुछ नहीं होता
पहले जैसा कभी कुछ नहीं होता
पार करते हो जब दुबारा जब नदी एक
वह वही नहीं होती होती है दूसरी नदी
कुछ भी साश्वत नहीं है दुनिया में परिवर्तन के सिवा
[ईमि/१०.०४.२०१३]
107
सुख होगा जितना सघन संयोग का
उतनी ही सघन वियोग की पीड़ा
[ईमि/११.०४.२०११]
108 
ऐसा नहीं कि भर गए जख्म-ए-दिल एकदम से
109
नई की बेचैन चाह छोड़े बिना मोह  पुरानी का
करता हूँ मिशाल पेश अव्यवहारिक अज्ञानी का
अनजान बनता हूँ जानते हुए इतिहास की रीत
होती रही है हमेशा नए की पुरानी पर जीत 
 [ईमि/१५.०४.२०१३०]
110
खूबसूरती ही सद्गुण है औरत का
पुरुषार्थ के आयाम अनेक
अरस्तू, मनु और सारे ज्ञानी-मानी
दे गए हैं विचार ऐसे नेक
ढोती आयी है औरत बोझ अब तक
सुन्दरता के आभूषण के
खुश होती आई है वह अब तक
हुस्न के पिंजरे में अपने शासन से
अब वक़्त आ गया है
सर से बोझ उतार फेंकने का
आज़ादी की खातिर
सभी पिंजरों की सलाखों को तोड़ देने का
[ईमि/१५.०४.२०१३]
111
इश्क-ए-महबूब है बौद्धिक टानिक अजीब
बढते हैं दोनों आगे आते जैसे जैसे करीब
यदि है इसमें होता कोइ लोचा
वह इश्क नहीं, है समझौता
 व्याहारिक बन जाते हैं समझ्दार लोग
स्वार्थ में सरोकारों का गला देते घोंट
[ईमि/21.04.2013]
112
इकबाल
ईश मिश्र
इश्क-ए-महबूब ने कर दिया
 कुंद इश्क-ए-जहां की धार
गम-ए-जुदाई ने कर दिया 
गम-ए-जहां को तार तार
खो गए गम-ए-दिल में 
और कटते गए गम-ए-जहां से
फिर भी मिलती रहीं दुआएं
 इज्जत और प्यार से
झुक कर दुहरा हो गया हूँ
 दुआ-ओ-प्यार के बोझ से
बौना सा दिखने लगा
 दबकर अपने अपराधबोध से
खुश थे बहुत मिलने से पहले
 इस बेवफा यार से
पुलकित होते थे 
पूरी दुनिया से अपने प्यार से
लिखते थे
 एक नई दुनिया के ख़्वाबों के तराने
लिखने लगा एक लड़की से 
 मुहब्बत-ओ-जुदाई के अफ़साने
मरने लगे सपने एक सुन्दर समाज के
कुंद होने लगे थे नारे इन्किलाब जिंदाबाद के
पड़ा जब पीठ पर बेवफा  रुसवाई की लात
याद आयी फिर मकसद-ए-ज़िंदगी की बात
गर दिमाग पर भारी पडेगा दिल का सन्देश
लिजलिजा हो जाएगा कविता का परिवेश
बनेगी गज़ल अब हिरावल दस्ते की हरकारा
मेहनतकश के साथ लगायेगी इन्किलाबी नारा
भूल जायेगा भविष्य नगमे एक लड़की से प्यार के
याद रखेगा गज़लें गम-ए-जहां के इजहार के
[Wednesday, April 17, 2013/11:28 PM]
113
क्यों इतरा रहे हो अपने  नरभक्षी ड्रोन पर बराक ओबामा
कायराना क़त्ल को कहते हो आतंक-विरोधी इमामा
कर रहे हो जिन जरदारों  की चाकरी में कत्ले आम
तुम्हारे पूर्वजों को जंजीरों में जकडे घुमाते थे सरे आम
कहाँ गए हिटलर, हलाकू नादिरशाह और  चंगेज
जागेगा जब आवाम कर देगा तुम्हे हैरत अंगेज
बने हो हिटलर के शागिर्द तो जो आज
भूल जाते हो उनकी कुत्तों सी मौत बेताज
बाज आओ अपनी नरभक्षी आदतों के परसंताप से
भष्म हो जाओगे जनसैलाब के ज्वालामुखी के ताप से
दूर नहीं वो वक़्त जब कब्र से उठेंगी लाशें मासूमों की
इन्किलाब की ज्वाला बनेगी आह इन मजलूमों की
उमड़ेगा  जब झूमकर युवा उमंगो का समंदर
डूब जायेंगे तोप-टैंक और सारे ड्रोन उसके अंदर
..... जारी[ईमि/२२.०४ २०१३]
114
ये जो खानदानी जनतांत्रिक नवाब हैं हमारे
सिराज्जुद्दौला के भेष में मेरे जाफर हैं सारे
ओबामा के जार-खरीद गुलाम हैं बेचारे
विश्व बैंक के टुकड़ों पर फिरते हैं मारे मारे
ओबामा खुद भी तो गुलाम है जरदारों का
क्या करें इन गुलामों के गुलाम बेचारों का
सो रहा है मिथ्या चेतना में जब तक आवाम
कर देंगे ये गुलाम मुल्क का काम तमाम
मुझको तो है जनता की शक्ति में यकीन
बना देगी एक दिन जर के गुलामों को खाकनशीन

[ईमि/२२.०४.२०१३]
115
शाम के धुंधलके में सिर्फ साये नज़र आते हैं
फिर भी चाहने वाले अलग दिख जाते हैं.
[ईमि/२२.०४.२०१३]
116
दाढ़ी सफ़ेद  धुप में नहीं हुई बल्कि तजुर्बे में
मुखौटे और मुख में फर्क करना आता है हमें
[ईमि/२२.०४.२०१३]
117
यह जन्नत दोजख से बिलकुल कम नहीं 

हो आबरू सीने में तो कोइ गम नहीं

क़त्ल करते ऐसा खंजर पर आता ख़म नहीं 

कातिल-ए-दिल कोई और है हम नहीं

मत दिखा जन्नत के सब्जबाग ऐ वाइज कहीं

ये तुम्हारे खुदा की दुनिया दोजख से कुछ कम नहीं

118 
मिलकर छिटक लेना उनकी फितरत है
एक जुम्बिश से जख्म देना उनकी आदत है
यदि वे न मिलता और मिलकर न छिटकते
ग़मों के एहसास से आप वंचित ही रहते.
[ईमि/२५.०४.२०१३]
119
जुनून
ईश मिश्र
चढ़ता है जुनून संकीर्ण फिरकापरस्ती का
चाहता है वह अंत सामासिक संस्कृति का
नफरत फैलाता है मासूम लोगों के दिलों में
देख धर्मनिरपेक्षता के तर्क घुस जाता है बिलों में
धर्मनिरपेक्षता एक तर्कसंगत विज्ञान है
इंशानियत की एकता का महत सम्मान है
जो मिलजुल कर रहने का सुंदर आख्यान है
पोंगपंथी तिनको के लिए समुद्री तूफान है
इंशानी तारीख की यही तो जान है
तरक्की की राह इसकी अपनी शान है
यह दुनिया को समझने और बदलने का ज्ञान 
  इसे जुनून कहना कमीनगी भरा अज्ञान 
[२०११]
120
उतरना पड़ेगा मर्दवाद के खिलाफ  सडको पर
नहीं पड़ेगा एक उड़ती कविता का असर
 मर्दवाद के शिकार  इन लड़कों पर
रोकना है अगर सचमुच में बलात्कार
करना होगा मर्दवादी सोच पर प्रहार लगातार
[ईमि/२५.०४.२०१३]
121
तोड़ता है उंच नीच की दीवारें मार्क्सवाद
खोदता है  कब्र मर्दवादी शरमायेदारी की लेनिनवाद
जरदारी के वर्चस्व मानव मुक्ति है साम्यवाद
नारी प्रज्ञा और दावेदारी हुआ है जो मुक्तनाद
भयभीत  हो हुजूम में घुसपैठ कर रहा मनुवाद
लगाने लगा बेसुरे नारे  नारी-मुक्ति जिंदाबाद
ये फरेबी है जो पढने-लिखने-सोचने से आज़ाद
चाहते भटकाना मर्दवादी घुसपैठिये रास्ते से नारीवाद
 पहचान गया गया है आवाम इनकी फरेबी खुराफात
करना ही होगा लगातार बमबारी मर्दवादी मनुवाद के गढ़ पर
 करना पडेगा तगडा प्रहार भारतीय संस्कृति के पाखण्ड पर  
 खींचती हैं जो नारियों के लिए लक्षमण रेखाएं
आयोजित करती है जो जहालत की अग्नि परीक्षाएं
अब उम्दा है जो समंदर नारीवादी अभियान का
अंत कर देगा नापाक हिन्दुत्ववादी अभिमान का
रोकना है सचमुच अगर बलात्कार
कर दो अग्नि-परीक्षाओं और लक्षण-रेखाओं का  संहार
[२६.०४.२०१३]
122
मैं ऐसे पाखंडियो  की करता नही बात
पाते हैं जो उसूलों की ज़िंदगी से सरल निजात  
जो लेकर लाल झंडा करते वाम वाम 
और तात है उनका वर्णाश्रमी  राम  
होते हैं ऐसे लोग बहुत ही खतरनाक 
साथ है ऐसे लोगों का निहायत खतरनाक 
विष्णु और लक्ष्मी हैं अवधारणाएँ काल्पनिक 
उनके संतानों की बातें करता तर्कविहीन दार्शनिक
[ईमि/२६. ०४.२०१३]
123
ये उन्मुक्त उड़ती तितलियाँ
क्यों बन जाती हैं कठपुतलियाँ?   
शायद यह आसान काम है
दिमाग को मिलता इससे आराम है
और आज जब हो चुकी है इलेक्ट्रानिक क्रान्ति
अदृश्य है रिमोट कंट्रोल,देती है सजीव चरित्र भ्रान्ति
सुदूर ध्वनि की प्रतिध्वनि लगती समचुत की आवाज़
कब तक चलेगा दुनिया में कठपुतली का राज
[ईमि/३०.०४ २०१३]]
124
अंतिम विदा गीत
यह अब अंतिम विदागीत है
पिछले विदागीत का भी यही शीर्षक था
और उससे पिछले का भी
चलता रहता है अनवरत यह सिलसिला
मिलन-गान और विदा गीत का.
[ईमि/३०.०४.२०१३]
125
हम हैं भारतवासी बहुत महान
आदर्श है हमारा दशरथ पुत्र राम
बाहुबल से जो सीता को जीतता है
प्रेम प्रस्ताव जब सूर्पनखा का पता है
नाक-कान उसके काट लेता है
 जब  बानरी सेना बनाना चाहता है
कपिराज बाली को बाधक पाता  है
करता है उस पर छिप कर कायराना हमला
हो जाता है पीछेउसके भालू बानर का अमला
जब पाला उसका लंका राज रावण से पड़ता है
बांटो और राज करो की नीति अपनाता है
लोभ दे राज-पाट का विभीषण को तोड़ लेता है
जीतने को लंका अपनाता साम-दाम-भेद-दंड की नीति
चली आयी थी यही रघुकुल की गौरवशाली रीति
फहराता है जबविजय लंका पर विजय पताका
सीता को लेकर चिंतित है हो जाता
करता है आयोजित अग्नि परीक्षा
कहा थी यही रघुकुल नीति की इच्छा
जब राजा अयोध्या का बन जाता है
सीता से निजात का रास्ता खोजता है
मिल ही जाता है उसे एक बहाना
था उसे जब महल से सीता को निकालना
समझता था वह गर्भवती सीता का मर्म
निभाना था उसे लेकिन वर्नाश्रमी राजधर्म
तभी हिल जाता है ब्रह्मांड एक शूद्र संबूक की तपस्या से
ह्त्या कर निहत्थे तपस्वी की निजात पाता इस समस्या से
हम हैं भारतवासी बहुत महान
आदर्श है हमारा दशरथ पुत्र राम
[ईमि/२८.०४.३०१३]
126
हर छोटी फिसलन इंसान की उसूलों से
करती है क़त्ल टुकड़ों में उसके ज़मीर का
और देती है उसे मुक्ति अंतरात्मा के बंधन से
करती है प्रशस्त पथ अंतिम पतन की.
हर फिसलन के साथ
टुकड़ों में गिरता है वह अपनी नज़रों में
घूमता रहता है दयनीय जीव की तरह
कामयाबी की खुशफहमी के वहम-ओ-गुमान में
[ईमि/३०. ०४.२०१३]
127
लाश का स्नान 
रोज दिखता था वह जो शख्स
 चीथड़ों में फुटपाथ पर
सुना है अभी अभी प्यास से मरा है
कितना दयालु है यह समाज
लाश को नहलाने देखो कैसा उमड़ पडा है
अगर जिंदा जी पानी मिल जाता उस शख्स को
दया का पात्र न बनती उसकी लाश
वंचित रह जाता हमारा समाज
करुण-क्रंदन और दयालुता के भाव से
[ईमि/०५.०५.२०१३]
128
गर तलाशा न होता नए रास्ते
चलते रहते गर घिसे-पिटे पथों पर
न मिलतीं ये रोशन मंजिलें
न होते गर हमले यथास्थिति के मठों पर
घूमते रहते तिमिर के वृत्त में
बैठ परम्परा के जर्जर रथों पर
अन्वेषण न होता असीम शक्ति का अपनी
ऊबड़-खाबड़ रास्तों का होता न यदि तजुर्बा
जीत हार तो माया है जंग-ए- आज़ादी की
जंग-ए-ज़िंदगी का सुख है अद्भुत और अजूबा
मिलता नहीं हक जद्दोजहद के बिना
बिना लड़े मिलता है सिर्फ समझौता
लड़ना पड़ता है हक के एक एक कतरे के लिए
लडे बिना जिल्लत के सिवा कुछ नहीं मिलता
[ईमि/०९.०५.२०१३]
129
इश्क का कोइ बाज़ार नहीं होता
दिल का होता नहीं कोई कारोबार
दिवालिया होता है
वह दिल-ओ-दिमाग से
बाज़ार में ढूँढता है जो इश्क
और करता है कारोबार-ए-दिल
इश्क है पारस्परिक मिलन
 दो दिलों का
समानता और पारदर्शिता है
 जिसका मूल-मन्त्र
[ईमि/०६.०५.२०१३]
130
जिसको जुस्तजू थी मेरी पाया उसने
 पाकर लेकिन खो दिया फिर से मुझे
[ईमि/११.०५.२०१३]
131
बिना चिरागों के हो रोशनी जहां
 रहते होंगे रोशन लोग वहां
[ईमि/११.०५.२०१३]
132
वैसे तो हकीकत का था मुकम्मल एहसास
नहीं था किसी रूमानी खुशफहमी में
लेकिन उस दिन से, जो वाकई एक दिन था
किया था हमने जब इज़हार-इश्क
एक तिरता हुआ एहसास
आता था बहुत करीब
तन्हाइयों में अक्सर
छू जाता था
अन्तर्मन के किसी नाज़ुक कोने को
और वह रात, जो वाकई एक रात थी
उड़ा ले गया था तुम्हे जब
फ्रायड की हवा का एक हल्का झोंका
आशिकी के चंद दिन बीते उल्लास में
और कुछ गम-ए-जुदाई के विलास में
उतर चुका है खुमार अब
नशे का उल्लास-ओ-विलास के
याद करनी हैं फिर से
नियामतें गम-ए-जहां की
तो इसे विदागीत समझो
वायदा है न दिखने का
 फिर से उस राह
साथ न लाये जब तक
जंग-ए-आज़ादी की साझी चाह
[ईमि/१६.०५.२०१३] 
133
एहसास-ए-आज़ादी
 आज़ादी-ए-एहसास है
महज इबारत नहीं आज़ादी की
 जंग-ए-आज़ादी का पूर्वाभाष है
शोषण-दमन से मुक्त
एक दुनिया का है सपना
सब होंगे आज़ाद जिसमें
न होगा  कुछ तेरा न कुछ अपना
[ईमि/१६.०५.२०१३]
134
कल की ही तो बात है
चहक रही थी  वह
हो सवार मेरे  कंधे पर
उचक-उचक कर चूम रही थी गाल
जताने को एक टाफी का आभार
दिखीं थी अनंत संभावनाएं
उस छोटी सी जान में
आज ही कैसे हो गया
अनन्त सम्भावनाओं का अंत?
समा गयी वह काल के गाल में
छोडकर निर्जीव, क्षत-विक्षत नन्हीं देह
उसका अपराध इतना ही था
कि जब वह पैदा हुई
लोगों ने कहा था लडकी है.
[ईमि/१८.०५.२०१३]
135
वक़्त का आइना  गर काफिर को नमाजी बना  दे
ख़याल-ए-खुदा को हकीकी जहां का गाजी बना दे
होती नहीं ऐसे कुफ्र में परवरदिगार से  बगावत
नतीजा होता है ये दीगर खुदाओं की अदावत
[ईमि/२३.०५.२०१३]
136
सच है आते आते आयेगा ख़याल उनको
दुनिया के मेहनतकशों की एकता का
शुरू होगा ही नया युग
इतिहास के नए नायकों का
आ रहा है उनको ख़याल तब से
कायम हुआ सरमाये का राज जब से
आते आते नहीं आया है अब तक
आयेगा ही लेकिन कभी-न-कभी
कह नहीं सकता मगर कब तक
बेखयाली अभी तक है बरकरार
धर्म और निजाम-ए-जर
चमकाते रहते हैं नित उसकी धार
करते रहना  है इसी लिए
बेखयाली के उद्गमों पर वार
बार बार लगातार
[ईमि/२१.०५.२०१३] 
                                                                             137
                                                      काश! मेरी कश्ती में कोइ और भी होता
मगर सफ़र की तन्हाई का अपना ही मज़ा है 
[ईमि/०३.०६.२०१३]
138
क्या खूब होता  वह  अनोखा सफ़र
साथ गर कोइ तुम सा हमसफ़र होता
[ईमि/०३.०६.२०१३]
139
उन्होंने साथ चलने की मेरी रज़ा पूछा
बोला उनका मालिक
खड़ा था जो पीछे परदे के
इजाज़त नहीं है इसकी
और वे हिम्मत की हिमाकत पर
सिसकती रहीं
नहीं मालुम खुद की या मालिक की
[ईमि/०३.०६.२०१३]
140
सोना भाता नहीं मुझको
आता  है जो महज आभूषण के काम
लगता है इसी से उसका ऊंचा दाम
मुझे तो लुभाती है गीली मिट्टी
जिस पर हर घटना कुम्हार बन
कविता निकाल देती है
हो सकता है सोने के होने में न होना
साक्षात साश्वत  है सुगंध मिट्टी की
मिलाना है मिट्टियों को दरिया के आर-पार
करो मजबू पकड़ पतवार पर
बिना डूबे पार करना है
उम्मीदों की यह दरिया
[ईमि/०३.०६.२०१३]
141
निगाह-ए- शौक पर चलता है जब हुक्म बेनियाज़ दिल का
इश्क होता है बेपनाह और दिमाग शिकार निगाह-ए-कातिल का
[ईमि/०४.०६.२०१३]
142
हर मसले पर बोलता हूँ तो वाचाल न समझना
साथ चुनौती के देता हूँ दांव सबके नाप-तौल कर
[ईमि/०४.०६.२०१३]
143
योग-वियोग तो है कुदरती क़ानून 
साथ मिलना-छूटना महज संयोग भी होता है 
पर चिंतित हूँ तुम्हारे कठपुतली बन जाने से 
दिल बैठता है देखकर 
रिमोट कंट्रोल से चलते पाँव
और प्रतिध्वनि के लिए हिलते होठ 
बन जाओगे जिस भी दिन 
कठपुतली से इंसान  
वापस पाओगे खुद की अपनी आवाज़
हम फिर साथ बांचेंगे मसौदे इन्क़िलाब के 
मिलकर देखेंगे ख्वाब
दुःख-दर्द से मुक्त एक नई दुनिया के 
[ईमि/.०५.०६.२०१३]
144
निकल चुके हो ज़िंदगी से
ख्यालों से निकलना बाक़ी है
भर गए हैं जिस्म के घाव
मन का घाव बनारना अभी बाकी है
[ईमि/०४.०६.२०१३]
145
खड़े होकर हिमगिरि के इस उन्नत शिखर पर
किस नई उड़ान के ख्यालों में मगन है यह लडकी?
है नहीं इसके पास ख्यालों की कडकी
चेहरे पर झलकता आत्मबल और संकल्प
तलाश रहा हो जैसे कोइ नया विकल्प
इरादे दिखते बुलंद अंतरिक्ष के उड़ान की
मानेगी नहीं ये कोई सीमा किसी आसमान की
खोयेगी नहीं होश उड़ान के जोश में
धरती को रखेगी सदा नज़रों के आगोश में
दिखी थी उस दिन जुलूस में लगाती इन्किलाबी  नारे
काँप गए थे ज़ुल्म के ठेकेदार सारे
रुकेगा नहीं अब इसका एक नए विहान का अभियान
आते रहें रास्ते में कितने भी आंधी-तूफ़ान
[ईमि/०८.०६.२०१३]
146
कितना मगन है यह उल्लसित युगल
करके पार बर्फ की गुफा लिए हाथों में हाथ
गढ़ रहे हैं मिलकर जैसे नक़्शे
नई मंजिलों और रास्तों के
हासिल करना है जिन्हें दोनों को साथ साथ
[ईमि/०८.०६.२०१३]
147
दिल धडकना तो ज़िंदगी की फितरत है
यादों की कसक कितनी भी सिसकती रहें
रुकता नहीं कारवाने-जूनून
हमराही कितने भी बदलते रहें
[ईमि/११.०६.२०१३]
148
पूजते हैं जिसको वह भगवान होता है
पा नहीं सकते उसे
क्योंकि कल्पना का  होता नहीं कोई मुकाम
मुहब्बत बन जाती है जब इबादत
प्रेमी प्रेमी नहीं रहते
बन जाते हैं भक्त और भगवान
[ईमि/११.०६.२०१३]
149
उसी तरह बेवजूद हैं फ़रिश्ते भी जैसे खुदा
खाबों में ही हो सकती है इनसे मुलाक़ात
[ईमि/१३.०६.२०१३]
150
जग की क्या मज़ाल लगा सके उस लडकी पर पाबंदी
उड़ान की बुलंदी जिसकी तोड़ दे आसमान की हदबंदी.
[ईमि/१३.०६.२०१३]
151
 आओ ख़त्म कर दें मिलकर ऐसे निजाम
इंसानों की खरीद-फरोख्त को हो जिसमे इंतज़ाम
सतयुग से ही चलता आ रहा है यह वीभत्स रिवाज़
बीबी-बेटे के साथ बिक गए थे जब हरिश्चंद्र महराज 
[ईमि/१३.०६.२०१३]
152
लिखती रहोगी दिल पर इश्का-इश्का
समझेंगे लोग है दिमाग कुछ खिसका
तुम तो हो ही दूसरी दूनिया की जब
इस जग की पाबंदी की चिंता क्या तब
[ईमि/१३.०६.२०१३]
153
नास्तिक हूँ, काफिर नहीं, जज्बा है खुदा के वजूद से बगावत का
कुफ्र है नतीजा दीगर खुदाओं-नाखुदाओं की आपसी अदावत का
[ईमि/१६.०६.२००१३]
154
खुशियों में ही छिपा है उदासी का सबब
पतझड़ से सीखती है बहार गुलशन का अदब 
[ईमि/१९.०६.२०१२]
155
यही है दस्तूर-ए-तारीख जब से सभ्य हुआ समाज
गरीब पर ही गिरती रही है गम-ए-जहां की गाज
[ईमि/१९.०६.२०१३]
156
खतरनाक हैं लोग जिन्हें आता नहीं गुस्सा
उनसे भी खतरनाक वे जो जताते नहीं गुस्सा
मुझे तो हर बुरी बात पर आता है गुस्सा
इस बात पर भी कि लोगों को क्यों नहीं आता गुस्सा
[ईमि/२२.०६.२०१३]
157
है ये चेहरे पर गम-ए-जहां की बेचैनी
समझना इसे घबराहट है सरासर गलतफहमी
इश्क गर हो जहां से
हमनवां मिलते हैं कहाँ कहाँ से
सच है कुछ नहीं मिलता खैरात में
लड़ के लेना पड़ता है हक और तबदीली हालात में
नहीं है मजबूरी जीने की ज़िंदगी निज चुनाव है
मत समझो इसे मुह छिपाना खुशियों से
बस खोखली उत्सवधर्मिता का अभाव है.
[ईमि/२३.०६.२०१३]
158
दो लाशें जब लडती हैं
एक शहीद होती है
और एक ख़ाक में मिल जाती है
[ईमि/०२.०५.२०१३]
159
क्या गगनचुम्बी इरादे और जज्बे हैं
 इस सांवले लडकी के
 निकली है जो सपनो को साकार करने
एक नया इतिहास गढ़ने
160
 खुशफहमी-ए-मुहब्बत में ज़िंदगी बिता दी
मारे गए आखिर बेवफा दोस्ती की घात से
उठे हैं कब्र से अबकी जो हम
चौंका देंगे दुनिया को अनूठे करामात से
उतार फेंका है सर से बोझ माजी का
बढ़ेंगे आगे अब बुलंद जूनून-ए-जज्बात से.
[ईमि/०४.०७.२०१३]
161
टपक जाते है गर गलत शब्द कभी भूल से 
चुभते हैं दिल में दर्दनाक शूल से
[ईमि/०५.०७.२०१३]
162
मुजरिमों क लिए पहले डूब मरने की कहावत थी
कहते हैं आमजन की उनसे अदावत थी
डूबते-मरते नहीं मुजरिम आजकल
काट लेते हैं निराई के बहाने फसल
कहते हैं होती है क्यों इससे हैरान अकल
वे तो कर रहे हैं महज हुक्मरानों की नक़ल
[ईमि/०५.०७.२०१३]
163
सलामती-ए-ज़मीर
मंजिलें और भी हैं मंजिल-ए-खुदी के सिवा
सलामती-ए-ज़मीर खुद एक मुकम्मल मंजिल है
दिल की तसल्ली ही नहीं
उसूलों का उद्गम भी है ज़मीर की सलामती
लगा देती है प्रवेश-निषेध की तख्ती अवांछनीय रास्तों पर
ज़िंदगी का होता नहीं कोइ जीवनेतर मकसद
ज़िंदगी-ए-ज़मीर खुद-ब-खुद एक मकसद है
तय होती हैं मंजिलें सफ़र के अनचाहे परिणामों की तरह
हर पड़ाव है एक मंजिल ऐसे सफ़र की
कोई अंतिम मंजिल नहीं होती मौत के सिवा.
[ईमि/२१.०७.२०१३]
164
जो जीते हैं ज़मीर बेचकर
रहते हैं वहम-ओ-गुमान में
सलामत है ज़मीर जिनकी
बनाते हैं कारवानेजूनून.
[ईमि/२१.०७.२०१३]
165
बीता वक़्त आता नहीं लौटकर
खींच जाता है मन पर
सुख और अवसाद की टेढी-मेढ़ी रेखाए
सजा हो जिसे याद करना
वह याद कुछ ज्यादा ही आता है
कभी कभी सज़ा में भी कुछ मज़ा आता है
[ईमि/२३.०७.२०१३]
166
तल्ख़ अलफ़ाज़  हैं मेरे पैगाम के
बहुत ही तल्ख़ है अफ़साना-ए-हकीकत
बयान-ए-हकीकत ना-मुमकिन है मृदुभाषिता से
दिखती है मुझे खोट उनकी नीयत में
रहते हैं जो अति-विनम्र, अति मृदु-भाषी लिबास में
[26.07.2013]
167
खुदा का जनाजा 
शामिल हो कर खुदा के जनाजे में
लगा दोजख-ओ-जन्नत मिल गयी
तैरती हवा में दिखीं जन्नत में  हूरें
दोजख में दिखे इंसान हमारी तरह
खुदा को याद आने लगे अपने पाप
सताने लगा उसको खुदाई जुर्मों का ताप
रह गयी हूरें देख यह अजीब नज़ारा
खुदा ने पकड लिया रास्ता दोजख का.
क्या खुदाओं में भी होती है अंतरात्मा?
या पवाड था यह मर चुका खुदा?
[ईमि/२९.०७.२०१३]
168
मुहब्बत नहीं है मात्रात्मक इकाई कोई
मुहब्बत है एक गुणात्मक अवधारणा
जो न नापी जा सकती है
न  ही मिलती उपहार में
मुहब्बत होती है अनादि और अनंत
बढ़ती है साझा करने से ज्ञान की तरह
नष्ट होती है संचय से ज्ञान की ही तरह.
[ईमि/३०.०७.२०१३]
169
अंतरंग पारस्परिकता
प्यार है नाम अंतरंग पारस्परिकता का
पारदर्शी  समझ और घनिष्ठता का
प्यार करता है पथ प्रशस्त आपसी प्रगति का
 सरोकारों की साझी संस्कृति का
कर दे जो प्यार बर्बाद
वह प्यार नहींहै विशुद्ध अवसरवाद.
[ईमि/३०.०७.२०१३]
170
खुदा किसी का नहीं होता क्योंकि वो खुद नहीं होता
खुदा खुशफहमी है खाक़नसीनों का
वर्चस्व का हथियार है कमीनों का
आत्मा है आत्माविहीन दुनिया का
जुल्म के मातों को देता राहत का आभास
जैसा कहा है कार्ल मार्क्स ने
अफीम का तस्कर है खुदा
बना देता है धर्म के नशे का आदी
सीधे-सादे लोगो को
दूर कर देता असली खुशी जिनसे
देता है खुशी की भ्रान्ति उन्हें
खुदा का वजूद बनाते हैं नाखुदा
कर देता है जो लोगों को हकीकत से जुदा
[ईमि/०३.०८.२०१३]
171
मिटने-मिटाने की बात क्योंकर कीजिये
होती नहीं सौदेबाजी दिलों के लेन-देन में
172
मैं जो भी लिखता हूँ, कविता हो जाती है
नारेबाजी भी  करता हूँ तो शायरी हो जाती है
173
इश्क का कोइ मदरसा नहीं होता
इश्क है दो दिलों की स्वस्फूर्त  अभिव्यक्ति
[०६.०८.२०१३]
174
खुल भी जाए गर मदरसा-ए-इश्क
कौन लेगा वहाँ पढाने का रिश्क
दाखले के लिए करो मत सिफारिश
आशिक बन जायेंगे सारे मुदर्रिस
[०६.०८.२०१३]
175
बोलना एक जुर्म है प्रशस्ति गान के सिवा
विप्लवी गीत से हो सकता है जनतंत्र को खतरा
सोचना ही है करता इंसान को जानवर से अलग
इसी लिए रहता सोचने से शासक सदा सजग
सोचने की श्रृंखला से पनपती है साजिश की सदा
सोचने से इशरत जहां कर सकती थी खुराफात
मचा सकता था सोहराबुद्दीन मोदी-विरुद्ध उत्पात
सोचो लेकिन उतना ही जितनी हो अनुमति
ज्यादा सोचोगे तो होगी इशरत जहां की गति
[ईमि/०७.०८.२०१३]
176
मेरे दिल में बहुत जगह है सभी इंसानों के लिए
जगह नहीं है कोइ लेकिन भगवानों के लिए
दिल में हैं हमारे जज्बात ए-इन्किलाब
मानता नहीं कोइ भी रोजा-पूजा की बात
ईद मुबारक हो
[ईमि/०९.०८.२०१३]
177
मुहब्बत के नगमे
लिखता हूँ जब मुहब्बत के भी नगमे
बन जाते हैं वे भी इन्किलाबी तराने
प्रतिध्वनित होते हैं जंग-ए-आज़ादी के नारे
लिखना चाहता हूँ जब आशिकी के चाँद तारे
मिल जाता है गम-ए-दिल गम-ए-जहान में
बैठता हूँ जब माशूक की मुहब्ब के इम्तिहान में
देखना चाहूँ जब उसकी आँखों में नैसर्गिक आकर्षण
दिखती हैं वे तकलीफ का उमड़ता हुआ समंदर
सभी कर सकें प्रेम ऐसा  माहौल बनना चाहिए
इस दुनिया को जितनी जल्दी हो बदल देना चाहिए.
[ईमि/०९.०८.२०१३]
178
गुजारिश करो गहन आलिनगान की ऐसे 
उतनी ही आतुर आलिंगन के सहभागी से !
 उसमें प्रभु बेचारे क्या कर सकते हैं
वो खुद शेषनाग पर सवार आलिंगन को तरसते हैं. 
[१३.०८.२०१३]
179
अमरीका को चलाता है वहां का फौजी-औद्योगिक परिसर
 इसीलिये वो बेचता हथियार तीसरी दुनिया के क्षत्रपों को अक्सर
एक तरफ सीमा के उतरें सैनिक मौत के घाट
पायें दूसरी तरफ के सैनिक शहादत का खिताब
सिखाती  है यही हमें गीता भी
 जीतने पर भोगो धरती
मरने पर है जन्नत खुदा की
खुद के लिए किया है ईजाद
खतरों से खाली ड्रोन विमान
मार दे जो पल में  लाखों इंसान
आइये छेड़ें इक जंग हम आप
होकर एकजुट जन्गखोरी के खिलाफ
इंसानियत को ताकि मिल सके इन्साफ.
[ईमि/१२.०८.२०१३]
180
हम तो फ़िदा होते हैं किरदार पर
 न की अदाओं के विचार पर
[ईमि/१२.०८.२०१३]
181
इश्क पर मुकदमा क्या बात  कही
हुस्न वालों की फ़रियाद नहीं
आशिकी गढ़ती  है हुस्न की नयी परिभाषा
मत करों किसी मानक सौन्दर्य की आशा
हुस्न को पकड़ा नहीं जा सकता
अमूर्त अवधारण को जकड़ा नहीं जा सकता
आओ करा दें समझौता इश्क-ओ-हुस्न में
मदमस्त रहें दोनों अपनी अपनी धुन में
[ईमि/१२.०८.२०१३].
182
इन काली आँखों में  दिखता जो काला जादू है
छिपा हुआ उनमें तकलीफ का उमडता समंदर  है
बहार से दिखती शांत सी तिलस्मी शीतलता है
पर धधक एक ज्वालामुखी इनके अंदर है
बनाना है द्वंद्वात्मक एकता अंदर और बाहर में
आओ बन जाएँ मिलकर हम अनेकता में एक
[ईमि/१४.०८.२०१३]
183
जज्बात में भर कर उमंग
चलती जाओ उम्मीदों के संग
कट ही जायेगी राह
हो जब मंजिल की चाह
हो जायेगी सारी थकान दूर
चढ़ेगा जब मजिल का सुरूर.
[ईमि/१५.०८.२०१३]
184
गुजारिश करो गहन आलिनगान की ऐसे
उतनी ही आतुर आलिंगन के सहभागी से !
 उसमें प्रभु बेचारे क्या कर सकते हैं?
वो खुद शेषनाग पर सवारआलिंगन को तरसते हैं.
[ईमि/१६.०८.२०१३]
185
गया अब दादी-नानी के किस्सों का ज़माना
गाँव-कुनबों की छोटी दुनिया का फसाना
गाना है अब वसुधैव कुटुम्बकम का तराना
दुनिया को है एक भूमंडलीय गाँव बनाना
करना होगा खत्म छोटे-छोटे गाँव
बनेगी धरती तभी तो विशाल कार्पोरेटी  गाँव
होगा ऐसे गाँव में किसान-कारीगर का क्या काम
बारूदी मशीने बोलेंगी जय श्रीराम
खेतों में  उगेगी डालर और यूरो की फसल
दाल-रोटी हो जायेगी घरों से बेदखल
वाल-मार्ट  होगा  इस गाँव का किरानी
कृपा से उसकी मिलेगा सभी को रोटी-पानी
सम्हालेगा बचपन-बुढापा नदारत जवानी
[ईमि/२१.०८.२०१३]
186

इतिहास पीछे  नहीं जा सकता
नहीं लौट सकता वह गाँव वापस
तोडना पडेगा
 इस भूमंडल की साम्राज्यवादी पेंच
इन्किलाब के हथौड़े से
और बनाना पडेगा एक इंसानी भूमंडल
उंच-नीच और शोषण-दमन के पार
होगा सब कुछ सबका
नहीं कुछ भी हमार-तोहार
[ईमि/22.08.2013]
187
जज्बात में भर कर उमंग
चलते जाओ उम्मीदों के संग
कट ही जायेगी राह
हो जब मंजिल की चाह
हो जायेगी सारी थकान दूर
चढ़ेगा जब मजिल का सुरूर.
[ईमि/20.08.2013]
188
शौक तो नहीँ, पर मरना तो है ही
क्यों न इश्क की तालीम के साथ मरें
[ईमि/२०.०८.२०१३]
189
बातें विचार-मुक्त तथ्य की
है व्याख्या अर्ध सत्य की
वस्तु से ही निकलते हैं विचार
करता नहीं इससे इंकार
किंतु वस्तु है सच्चाई अधूरी
विचारों से मिलकर होती है पूरी
कला के लिये कला की बात
है महज एक बौद्धिक खुरापात
होते जब भी विचार प्रखर
चलते हैं साथ भाषा-शैली लेकर
द्वंद्वात्मक एकता विचार और कला की
मानदंड है कविता की सार्थकता की
सर्वविदित है अब यह बात
कला के लिये कला है अपराध
[ईमि/२४.०८.२०१३]
190
गीता एक फरेब है सरल मन के साथ
एक अहंकारी स्वघोषित भगवान का
दिखाता है सब्ज-बाग भोगने की ज़न्नत
करता है महिमा-मंडन अचिंतनशील इंसान का
सोचो मत बस कर्म करो, मारो या मर जाओ
देता है उपदेश बिन-सोचे कर्म के अरमान का
मारकर भोगोगे धरती, मरकर पाओगे स्वर्ग
है यही मूल मंत्र खुदाई फरमान का
[ईमि/24.08.2013]
191
बैठे रहोगे गर भरोसे किसी फरेबी भगवान् के
पिओगे घूँट घोर अपमान के
 करो मजबूत अपना आत्मविश्वास
कर दो दुष्टों का सत्यानाश
[ईमि/२८.०८.२०१३]
192
डरते जो भूत-ओ-भगवानों से
लड़ नही सकते वे सरमाये के हैवानों से
वे कर सकते महज जी-हुजूरी भूमंडलीय नाखुदाओं की
अपने साम्राज्यवादी दलाल आकाओं की
[ईमि/30.08.2013]
193
और भी काम हैं तुम्हारी यादों के सिवा
फेसबुक भी तो है इस आभासी दुनिया में
[ईमि/04.09.2013]
 194
नहीं होता कोई रिश्ता निरपेक्ष यादों और कसमों में
कुछ यादें होती ही ऐसी हैं कि भूलतीं ही नहीं. हा हा
[ईमि/ 07.08.2013]
195
लगातार रहो साधते असंभव पर निशाना
बन जाये जिससे वह एक सैद्धान्तिक संभावना
नहीं कुछ भी असंभव उसी तरह
होता नहीं जैसे कोई अन्तिम सत्य
भगवान और भूत की ही तरह
असंभव भी है महज़
एक सैद्धांतिक अवधारणा
संभव बन जाये असंभव एक बार जब सिद्धांत में
वक़्त फिरते ही बन जायेगी हक़ीक़त व्यवहार में
हा हा
[ईमि/09.09.2009]
196
कमतर तो हम कत्तई न थे किसी से भी
वो समझते रहे कमतर अपनी नासमझी में
जिसे करार दिया उन्होंने गुनाह
वो जो भी था गुनाह तो कोई न था
क्यों भुगतें हम सज़ा किसी की नासमझी की
हमारी अपनी मर्जी भी तो है.
[ईमि/१२.०९.२०१३]
197

कहाँ हो जाती हो गायब देकर मौजूदगी का एहसास
चाहिए दीदार-ए-दिल नहीं महज आभास. हा हा
[ईमि/१३,०९.२०१३]
198
चलती तो हूँ मैं करते हुए मुनादी-ए-ऐलान
तुम्हारी मशरूफियत मुझे कैसे मालुम
ग़म-ए-जुदाई की है या तलाश-राह की
उसूलों पर जीने या निजी चाह की
[१२.०९.२०१३]
199
सच है कि होगा शक्ल का
 कुछ तो एहसास
हो कैसा भी आइना
दिखेगी मगर खंडित तस्वीर
गर टूटा हो आइना
[ईमि/१३.०९.२०१३]
200
है मेरा वजूद तेरे वजूद की बदौलत
है ही नहीं एहसास-ए-ज़िंदगी तुम्हारे एहसास के बगैर
आती है जब भी  याद गम-ए-ज़हाँ की
होती है बहुतायत उनमें यादों की तुम्हारी
याद है है वो दोराहा
 इश्क़-ए-माशूक़ और इश्क़-ए-जहाँ का
जहाँ हम पहले मिले थे
किया था वायदा जो हमने लेकर हाथों में हाथ
गम-ए-जहाँ के साथ मिलाकर गम-ए-खुदी को
इन्सानियत के सफर में चलने का साथ साथ 
विचल गए तुम खत्म होता जब तक पैमाना
चोर के कोतवाल को डाँटने की तर्ज पर
अब दिखा रहे हो उल्टा आइना 
[ईमि/12.09.2013]
201
इन आँखों में छिपा है दर्द गम-ए-जहाँ का
और चेहरे पर जंग-ए-आज़ादी का ज़ज्बा
चलती हैं उन्मुक्त उंगलियां जब गिटार पर
कर देती हैं पैदा इंक़िलाबी स्वर और ताल
हो सवार इसके नग्मों की उफनती लहरों पर
पार कर जाती है तक़लीफ का उमड़ता समन्दर
 [ईमि/13.09.2013]
202

कहाँ हो जाती हो गायब देकर मौजूदगी का एहसास
चाहिए दीदार-ए-दिल नहीं महज आभास. हा हा
[ईमि/१३,०९.२०१३]
203
माशूक के जलवे पर दिखाए गर कोइ मालिकाना हक़
उसके प्रेम की प्रामाणिकता पर होता है मुझे शक
[ईमि/१५.०९.२०१३]
204
हर मुस्कराहट खतरनाक नहीं होती
कुछ  दती  हैं दिल को सुकून भी
[ईमि/15.09.2013]
205
कितना ज़ालिम है खुदा,
 मिट जाती है हस्ती उसकी
हो जाता है जो उसको प्यारा
[ईमि/१५.०९.२०१३]
206
वो लोग नावाकिफ हैं इश्क की हकीकत से
जो इसे दर्द का दरिया या समंदर कहते हैं
इश्क तो संजीवनी है सभी रोगों की
ईंधन है भावनाओं की गाड़ी के इंजन की
[ईमि/१५.०९.२०१३]
207
नहीं है मकसद हमारा ख़त्म करना कोइ धर्म
 देता गरीब को जो खुशियों का भ्रम
मकसद है ख़त्म करना वे हालात
मिलती है धर्म को जिनसे खुराक
मिलेगी लोगों को अगर हकीकी खशी
भ्रम की होगी किसी को जरूरत नहीं.
[ईमि/१६.०९.२०१३]
208
सभी जी लेते हैं आसान ज़िंदगी
हमने तो जानबूझ कर  मुश्किलों चयन किया
मिलता जो आत्मबल का सुख
चलते हुए कठिन रास्तों पर
देता वह इतनी ऊर्जा/
आसान लगते कठिन रास्ते
[ईमि/१६.०९.२०१३]
209
मूश्किल जरूर है हवा को पीठ न देना
और चलाना कश्ती धारा के विपरीत
लेकिन नामुमकिन नहीं
हैं इरादे ग़र बुलंद
घर्षण से ही लहरों के
मिलती वह ऊर्जा
चलती जिससे जीवन की गाड़ी
निर्वात कभी नहीं रहता
कभी तुम होते हो
कभी अवसाद
[ईमि/17.09.2013]
210
प्यार में होती है जहां लेन देन की बात

प्यार के नहीं छलावा के होते जज़्बात

[ईमि/17.09.2013]
211
हम क्यों बदलें देख दुनिया की हिमाकत
बेलौस मुहब्बत करते रहेंगे हम
गम-ए-जहां में मिलाकर दिल का गम
अज्म-ए-जुनूं से आगे बढ़ते रहेंगे हम
[ईमि/१८.०९.२०१३]
212
नहीं है डींग हैं ये जंग-ए-आज़ादी का ऐलान
गूलामी-परस्त लोगों में है मच जाता कोहराम
जाता है धुप में जब आज़ादी का कारवाने जुनून
शाये में बैठे शरीफों का बेवजह खौलता है खून
[ईमि/20.09.2013]
213
है ये बेहोशी का आलम मन की  मदहोशी से
फंसते हैं भुलावे में  मन की आँखें न खोलने से
वैसे ही दिखेगी दुनिया सदा गफलत में रहने से
बदलेगी जरूर मगर सजग कोशिस करने से.
[ईमि/19.09.2013]
214
हमेशा गलत शहर में गलत माल लेकर पहुंचती हो
अंधों के शहर में आइना बेचती हो गंजों रे शहर में कंघी
कंघी बेचो अंधों के शहर में गंजों के शहर में बेचो आइना
चाहती हो मुनाफा बेचकर किताब जाहिलों के शहर में?
[ईमि/22.09.2013]
215
कभी कभी चुप रहना ही बेहतर होता है
बिगड़ जाती है बात कुछ कहने से
बात रह जाए तो कोइ बात नहीं
कहने से भी बुरा होता है कह कर न कहना.
हा हा
[ईमि/०२.१०.२०१३]
216
मौन की मर्यादा
मौन की मर्यादा है यदा-कदा का अस्तित्व
तभी  निरर्थक लगने लगें शब्द जब 
या चरितार्थ हो कहावत
भैंस की आगे बजाने की बीन 
होना ही पड़ेगा वाचाल
 हर और किसी भी उस बात पर
मानवता पर पड़ता असर जिसका 
दुष्ट अल्पमत के राज का राज है
आपराधिक मौन शराफत के बहुमत का 
आयेगा ही वह वह वक़्त कभी-न-कभी
बोलेन लगेगा जब सज्जनता का बहुमत.
[ईमि/०२.१०.२०१३]
217
आई होगी शर्मिन्दगी उन्हें अपनी किसी बात पर
चुराई होगी आँखें न किया होगा नज़र-अंदाज़
[ईमि/०३.१०.२०१३]
218
पाता  हूँ तुम्हारा ही नाम बार-बार
करता हूँ जब भी गम-ए-दिल का हिसाब 
[ईमि/०३.१०.०१३]
219
खोजता हूँ व्यवस्था ज़िंदगी के बिखराव में 
और खुशी महबूब के पलकों की छाँव में 
[ईमि/04.10,2013]
220
आयेगा जब तूफान-ए-जनवाद

हारेगा ही हर तरह का अधिनायकवाद
[ईमि/04.10.2013]
221
खपाया जा सकता है सर 
गाहे-बगाहे ही किताब-ए-दिल में
वरना कितना मुश्किल है इसे पढ़ना
हर पन्ने पर भाषा दिगर हो जाती है
[ईमि/04.10.2013]
222
ये जो ज़िंदगी की किताब है
है दर-असल एक यात्रावृतांत
एक फ़साना सह यात्रा का
साथ अलग-अलग लोगों के
चले साथ हम कुछ दूर जिनके
अलविदा कहने के पहले
फिर भी मिल सकते हैं
फिर कभी संयोग से
अहम् है लेकिन इसमें एक बात
वह है गुणवता इस छोटी सी सहयात्रा की
[ईमि/०४.१०.२०१३]
223
कोरी रहती है दिल की जिल्द जब तक 
किताब नहीं कहलाती वह तब तक 
चलता है जब जज़बात का कलम  
होती है तब दिल की किताब मुकम्मल
[ईमि/04.10.2013]
224
होंगे हिसाब जब भी मिलन की खुशियों के
होगा लेखा-जोखा ग़म-ए-जुदाई का भी
लिखी जायेगी जब भी दिल की किताब
होगा ज़िक्र खुशी-ओ-ग़म का बराबर
[ईमि/05.10.2013]
225
वफ़ा की किताब  कर देती है सीमित
दिल-ओ-दिमाग की यायावरी को
खींचती है दूर बाकी किताबों से
और तोड़ देती है विद्रोह के जज्बात
भली हैं दो-चार सतरें
प्यार और विश्वास की
प्रोत्साहित हों जिनसे
पारदर्शी पारस्पारिकता  के भाव
                   और आज़ाद जज्बात साथ चलने के.    
[ईमि/०५.१०.२०१३]
226
वही तो है खाहिस-ए-खुमारी
बेकरारी से इंतज़ार है उस पल का
कभी-न-कभी  तो मुहब्बत लायेगी ही  रंग. हा हा
[ईमि/05.10.2013]
227
लफ्ज़ ही तो देते हैं किरदार को संवेग
अल्फाज़ के डर से कांपते हैं बड़े बड़े चंगेज
[ईमि/०५.१०.२०१३]
228
इसीलिए कहता हूं बार बार
मकसद नहीं है जीवनेतर ज़िंदगी का
जीना एक सार्थक ज़िंदगी 
है खुद एक मुकम्मल मकसद
बाकी सब होता है साथ-साथ
अनचाहे परिणाम की तरह
[ईमि/06.10.2013]
229
यादों की है यही तो खास फितरत
जाकर भी नहीं जातीं
और लिखना पड़ता है
विदा गीत कई कई बार
और अंतिम नहीं हो पाता
अंतिम विदा गीत भी
 अब नहीं लिखूंगा
कोई और विदा गीत
आती जाती रहें उंमुक्त यादें
इसी बहाने हो जाया करेगा विचरण
उपवन में अतीत के
[ईमि/06.10.2013]
पुनश्चः
यादें नहीं बेवफा इंसान होता है
यादें तो सनद हैं बेवफाई की
[ईमि/06.10.2013]
230
मैं तो तलाशता हूं मोती रेगिस्तान में
शोरों के बेदर्द शहर में नग्में कहता हूं
एथेंस में रहता हूं सुकरात सा
हाजी समझते हैं मुझे बुतपरस्त
और खैय्याम सोचते हैं हाजी हूं
[ईमि/06.10.2013]
231
हम तो कब से बेताब हैं होने को मुखर
डर है अनसुना रह जाने का
[ईमि/07.10.2013]
232
सोचकर तुम्हारे रेत में चलने की बात
मेरे पांव नहीं दिल झुलस जाता है
[ईमि/8.10.2013]
233
कुछ भी नहीं रहता वैसे ही बदलता सब वक़्त के साथ
नहीं होता वही दरिया करते हैं जब दुबारा पार 
अंत निश्चित है सबका है जो भी अस्तित्ववान
कुछ भी नहीं सास्वत तब्दीली के सिवा 
[ईमि/09.10.2013]
234
तुमने तो मुझे वाचाल बना दिया है
बुढ़ापे में जवान बना दिया है. हा हा
[ईमि/09.10,2013]

235
कुछ बात खास तो है तुममें ज़िगर
वरना यूं ही वाह वाह नहीं कहता
तेरी वफा ने कर दिया दिल बाग बाग
जवानी तो हर उम्र में आती है 
हो कोई ग़र तुम सा हमसफर

[ईमि/09.10,2013]236

तेरे चाहने वालों में नहीं कोई मुझ सा

चाहत की कतार में मैं नहीं खड़ा होता



[ईमि/09.10,2013]
237
मैं तो कभी करता नहीं वजूद हावी

यकीन करता हूं जनतांत्रिक समानता में

[ईमि/09.10,2013]



238



सच है नहीं किया तुमने मुहब्बत का गुनाह 
हेकड़ी दिखाया मगर मुहब्बत नाकबूली की



[ईमि/10.10.2013]
239
आशिकी के वहम-ओ-गुमाँ वालों से हमें क्या लेना 
हम तो अज़्म-ए-ज़ुनू वाले हैं मैदान-ए-इश्क में
[ईमि/10.10.2013]
240
मिल जाती है दोस्ती जो अनायास 
टूटती है जल्दी देकर संत्रास
लेते हैं बनने में वक़्त जो रिश्ते 
चलते हैं आजीवन और नहीं टूटते
[ईमि/12.10.2011]
241
था यह उसका फिरकापरस्ती का उन्माद
घर ही नहीं कर दिया पूरा गाँव ही बर्बाद
[ईमि/16.10.201]
242
होता आया है अक्सर हमारे साथ
खोजा जब तन्हाई पकड़ा किसी ने हाथ
[ईमि/16.10.2013]
243
बुरे नहीं लगते कुछ लोग तब तक
खोलते नहीं हैं वे अपना मुंह जब तक
उच्चारित करते हैं ये कुछ शब्द जब
टपकने लगती है टप-टप मूर्खता तब
[ईमि/16.10.2013]
244
सफर अकेला नहीं लाता इंक़िलाब
चाहिए उसके लिए उमड़ता जनसैलाब
[ईमि/16.10.2013]
245
ख्वाहिश तो मेरी भी है तेरे साथ  चलने की 
दो कदम ही नहीं, लंबा सफर करने की 
पहन ली हैं तुमने मगर बेड़ियां पाजेब समझ कर 
रस्मो-ओ- रिवाज़ की तहजीब तहजीब समझकर 
करना है अगर विचरण मेरे साथ उन्मुक्त 
तोड़ कर बंधन-ओ-बेड़ियां करो पैरों को मुक्त 
[ईमि/16.10.2013]
246
खुद से मिलना होता है बहुत मुश्किल
आत्मावलोकन से कतराता है दिल
होने लगे  अगर अपने से बात
खत्म हो जाये जीवन का संताप
[ईमि/17.10.2013]
247
यही तो खूबी है सपनों की
कोई नहीं रोक सकता उन्हें
पहरा हो कितना भी कड़ा
खुद तय करते हैं नियम और मुहूर्त
अपने आवागमन के
[ईमि/23.10.2013]
248
दिल-ओ-दिमाग में आते हैं जितने आवारा खयाल
 गर हो जायें थोड़े भी कलमबद्ध तो मचा दें बवाल
[ईमि/24.10.2013]
249
हुआ जब निजी सम्पत्ति का आगाज़
ऊँच-नीच के खेमों में बंट गया समाज
लड़ते थे आपस में आदिम कबीले भी
ज़िंदा दुश्मन का था कोई उपयोग नहीं
बढ़ा पशुपालन और खेती का काम-काज
धातु-ज्ञान से हुआ नये शिल्पों का आगाज़  
ज़िंदा दुश्मन का श्रम तब आने लगा काम
दिया गया उनको ज़रृखरीद गुलाम का नाम
लिया जाने लगा उनसे जानवरों सा काम
शुरू हुआ मनुष्य के क्रूरतम शोषण का निज़ाम
दिया इतिहास ने उसे मानव सभ्यता का नाम
[ईमि/24.10.2013]
250
वफ़ा की उम्मीद
वफ़ा की उम्मीद क्यों रखते हो मुझसे
विचारों के मेल से ही मिला था तुझसे
निष्ठा आज भी है उन विचारों में
नहीं है रुचि रंग-विरंगी तस्वीरों में
नहीं मानता मैं तर्कहीन भावुकता का सबब
मुहब्बत-ए-जहां में ही है मुहब्बत-ए-माशूक का अदब.
[ईमि/२४.१०.२०१३]
251
इतिहास की गाड़ी में बैक गीयर नहीं होता
न ही इतिहास कभी खुद को दुहराता
वापसी पशुकुल में नहीं है समाधान
क्यों न बन जायें हम बेहतर इन्सान
खत्म करके शोषण दमन के विधान
दें हर शख्स को इन्सानी सम्मान
[ईमि/25.10.2013]
252
वफा तो कभी सीखा ही नहीं
दूंगा मगर यारी को पूरा सम्मान
बार बार काटता हूं राह तेरी
देखता नहीं मगर हुस्न का अभिमान
 [ईमि/October 26, 2013]
253
बात तो मैं जमाने की ही कर रहा था
 ज़फा-ओ-वफा के विमर्श में 
तुम्हारा ज़िक्र एक इत्तेफाक था
 [ईमि/October 26, 2013]
254
बोलने का मन नहीं आपका जो आज
क्या करेगा उत्सुक यह श्रोता समाज?
कीजिए मन की थोड़ी मन से मनुहार 
छेड़िए फिर एक नया राग-ए-बहार 
हो जाए टूटकर जड़ता तार-तार
और श्रोता सुख-चैन से सरोबार 
[ईमि/26.10.2013]
255
मत पिघलो लौ देखते ही मोम की तरह
अड़ जाओ तूफान में अडिग चट्टान बनकर
फुसलायेगा जमाना तुम्हें नादान समझकर
ध्वस्त कर दो उरादा उसका बनके दानिशमंद 
[ईमि/27.10.2013]
256
है नहीं बुराई लत में मुहब्बत की
देती हो दिशा जो व्यक्तित्व के आयाम को
जनतांत्रिक पारस्परिकता के पैगाम को
और दे  बुलंदी इरादों के उड़ान को
[ईमि/२७.१०.२०१३]
257
कम होता जायेगा हर रोज एक एक दिन
इसीलिए मक्सद से जिओ ज़िंदगी का एक एक पल
[ईमि/27.10.2013]
258
आंखो का सुकून और दिल की आवारगी
कानों के सुख से मिली स्वाद की सादगी
उन गुलों की सुगंध है नीकों में आज भी
चाहिए इस ज़िंदगी महज़ दोस्ती आपकी
[ईमि/28.10.2013]
259
रिश्तों की रश्म तो सभी निभा लेते हैं
बिरले ही जीते हैं रिश्तों की कशिश में
[ईमि/28.10.2013]
260
इस लड़की के चेहरे पर है जो संचित पीड़ा
और आंखो में उमड़ता तकलीफ़ का समंदर
देता है आभास बदलने की यह दुनियां
[ईमि/08.11.2013]
261
न धर्म को मानता हूं न धर्म की
कद्र करता हू इन्सानी कर्म की
खुदा के अमूर्त भय का पाखंड-तंत्र
है सभी मज़हबों का कारगर मंत्र
दिखाता है मजहब  डर दोजख-ओ-खुदा का
हरकारा है मगर यह हर फरेबी नाखुदा का  
छोड़ दो ग़र डरना भूत-ओ-भगवान से 
बढ़ोगे राह-ए-इंसानियत पर निडर इंसान से 
[ईमि/17.11.2013]
262
क्या कहती हैं ये चकित हिरनी सी आंखें 
और चिंता-मग्न हाव-भाव
काली घटा सी ज़ुल्फें और
 विप्लवी रुमानियत भरा स्वभाव 
करता है मन करने को इश्क
भूलकर उम्र का भेदभाव 
[ईमि/17.11.2013]
263
प्यार की खुमारी में लिखे थे जो दो शब्द

गवाह हैं उन अंतरंग क्षणों के थे जो निःशब्द 

पन्ने कभी खाली नहीं होते प्यार की किताब के

होते हैं उन पर अनक्षर गीत यादों और खाब के

नहीं होता कभी भी दिल में निर्वात

पहले तुम थे अब है वहां अवसाद

[ईमि/17.11.2013]
264
है इन आंखों में तक़लीफ का इक उमड़ता हुआ समंदर
छिपे हैं हर वर्जना तोड़ने के जज्बात उनके अंदर
265
है  इन आँखों में समाया हुआ दर्द-ए-ग़म-ए-जहां
चेहरे पर लिखा है तकलीफों का मुकम्मल फसाना
चल रहा है मन में नये खयालों का उहा-पोह
रचने को कुछ नया पुराने का छोड़ मोह
भरेगी जब यह नभ के पार की नई उड़ान
रोक नहां सकेंगे इसको आँधी-तूफान
[ईमि/17.11.2013]
266
इश्क की कोई उम्र नहीं होती हुज़ुर
माशूक भी इन्सान है न कि कोई हूर
मुझे तो वैसे भी जीना है 135 साल
रहे क्यों मन में ना-आशिकी का मलाल
हा हा
[Ish/19.11.2013]
267
नही बदला है अंदाज़-ए-बयाँ अभी तक हमने
मज़ा आता है आज भी  मात देने में फरिश्तों को
भूल जाता हूँ वक़्त की तेज उड़ान
उसी मजे से जीता हूँ आज भी पुराने रिश्तों को.
[ईमि/21.11.2013]
268
एक गज़लगो ने की शिकायत आवाम से
  ग़ज़लों को उनकी निमोनिया हो गया
मैंने बता दिया नुस्खा-ए-इलाज
बिन मांगी राय की तर्ज पर
गज़ल का निमोनिया तो महज़ लक्षण है
रोग की जड़ तक जाइए
सीने पर जन सरोकारों का
गर्म घी लगाइए
दीजिए जोर दिमाग पर
विचारों को मज़लूम के हक़ से जोड़िए
फिर शब्दों के कोलाहल से
क़ोहराम मचाइए
ईमि/23.11.2013]
269
रहता हूं अक्सर सजग शब्दों के चुनाव में 
 होता नहीं मूल्य- निरपेक्ष कोई भी शब्द
देने को शाबाशी किसी लड़की को
आदतन निकलने को होता जैसे ही वाह बेटा 
टोकता हूं आदत को समझ इसका मर्दवादी मर्म
और कहता हूँ वाह बेटी.
[ईमि/23.11.2013]
270
हों अग़र इरादे बुलंद और निष्ठा निष्कपट
तो चलता है जब ख़ाहिशों का कारवानेजुनून 
दृष्टि सीमा में होती है मंज़िल 
और रास्ते खुद-ब-खुद बनते जाते हैं


[ईमि/24.11.2013]
271
निकलता नही चाँद अमावस की  रात
क्यों करते हैं इंतजार तहे रात उसका
पाने को मोती थहाना होता है उदधि
व्यर्थ है रेगिस्तान में तलाश उसका
[ईमि/24.11.2013]
272
छटपटा रहा हूँ कब से
पाने को मुक्ति हाथ की लकीरों से
आतुर समाने को आलिंगन में तुम्हारे
चाहता हूं खो जाना
अनाभूत यादों के बियाबान में
रुसवाई का आलम है जमाने की करतूत
मिलताहै परसंताप जिसे
मुखातिबियत को रोकने में
और आरजू-ए-दिल को तोड़ने में
मारते हैं  इस ज़ालिम ज़माने को गोली
लग जाते हैं गले छोड़ कर आंख मिचौली
[ईमि/24.11.2013 ]
273
क्या कहें उन लोगों को 
एक है दुनिया की जनसंख्या जिनके लिए
शेष दृष्टि-सीमा लांघ जाती है 
अर्जुन के लक्ष्य के व्यर्थ भागों की तरह
[ईमि/24.11.2013]
274
ओस पिघलाने के ताप के लिए

ओलों की बूंदा-बांदी निकल पड़े उदधि थहाने

और दीप जलाने अमावस की रात में
[ईमि/25.11.2013]

275

हर निशा एक भोर का ऐलान है



हर पतन का अंत में उत्थान है
[ईमि/25.11.2013]
276
कौन कर सकता है रुसवा उसे
जिसकी बावफा खुदी हो
[ईमि/25.11.2013]
277
बड़ी है बहुत नटों-भांटों की जमात
मुर्दापरस्तों, बुतपरस्तों का ये समाज
[ईमि/26.11.2013
278
 हैं इन  आंखो में क्या अन्वेषी भाव
दुनियां का मर्म समझने का चाव
यह चिंतनशील मंद मुस्कान
कर रही है जंग-ए-आज़ादी को ऐलान
[ईमि/26.11.2013]
279
तूफान-ए-जनवाद से आएगा इंकलाब
लाएगा जो मजदूर-किसान का राज
मानवता तभी होगी आज़ाद
होगी खुशहाली धरती पर आबाद
[ईमि/26.11.2013]
280
फेसबुक पर लगी है विद्वानों की भीड़
बहुतों की बातों में गायब लेकिन रीढ़
गायब लेकिन रीढ़ मगर इससे न डरिए
बेहूदी बातों के बाद भी ब्लॉक इन्हें न करिए
चिल्ला-चिल्ली करके हो जाएंगे ये चुप
जग-जाहिर कर देंगे मूर्खता का रूप
मूर्खता का रूप होता अजब अनोखा
बिना फिटकिरी-हल्दी के रंग हो जाता चोखा
हा हा
[ईमि/26.11.2013]
281
लगी हैं तख्तियां है नही ये आम रास्ता
खासों की महफिल से मेरा क्या वास्ता
लगाओगे जब कभी आम महफिल
ललकेगा पहुंचने को वहां मेरा दिल
[ईमि/28.11.2013]
282
कब हम भूमिहार, ब्राह्मण या यादव से इंसान बन पाएंगे
जीववैज्ञानिक दुर्घना की अस्मिता से कब उबर पाएंगे?
[ईमि/28.11.2013]
283
कैसे कैसे मंजर नज़र आने लगे हैं
लोग खुद में खुद को तलाशने लगे हैं
[ईमि/28.11.2013]
284
खुदा है ही नहीं कोई अपना 
खुदी से ही दूर करता रहा तन्हाई
हुआ जवसे तवार्रुफ आपसे 
पास आती नहीं तन्हाई
जब रहते नहीं हैं आप
खयाल तोड़ते हैं तन्हाई
[ईमि/28.11.2013]
285
बुलाती रहती हो हर किसी को
कभी तो मुझे भी बुलाया करो
[ईमि/28.11.2013]
286
रोक रखा था हम ऐरे-गैरों को छूने से वेद
खुल जाता नहीं तो तुम्हारी विद्वता का भेद
जी हाँ, हम ऐरे-गैरे भी पढ़ने-लिखने लगे हैं
शास्त्र पर था आप एकाधिकार किसी ब्रह्मा के हवाले
ब्रह्मा की साज़िश भी हम समझने लगे हैं
तोड़ेंगे हम अब सारे वर्णाश्रमी पाखंड
हाथ लहराते हुए जनसैलाब हम बनने लगे हैं
किया था वंचित बहुमत को शस्त्र और शास्त्र से जो आपने
राज़ जड़ता का समाज के हम भी अब समझने लगे हैं
नहीं चलेगी अब चाल कोई भी आपकी
ले मशालें हाथ में हम हक़ के लिए लड़ने लगे हैं
टूटेंगी ही जंजीरें और होगी मानवता मुक्त
जंग-ए-आज़दी का ऐलान हम अब करने लगे हैं
[ईमि/ 29.11.2013]
287
तन्हा नहीं होता कोई भी कभी
साथ रहते हैं कुछ खयाल सदा
[ईमि/29.11.2013]
288
यह बेटा नहीं एक फक्रमंद बेटी है
बेटा कहलाना मानती नही शाबासी
कह देती है तपाक से अंग्रेजी में
एक्सक्यूज़ मी
आई डोन्ट टेक इट ऐज़ काम्लीमेंट
 मैं बेटा नहीं बेटी हूं
[ईमि/29.11.2013]
289
है कुछ खास बात आप में जरूर
हैं प्रतिभा-ओ-हुस्न देन  प्रकृति की
आप सिर्फ रखवाले हैं मेरे हुज़ूर
 न हो कोइ योगदान जिसमें 
उसका क्या गुरूर .
[ईमि/०५.१२.२०१२]
290
हैं सदर-ए-मुल्क और वजीर-ए-आज़म अर्थशास्त्री
अर्थशास्त्री ही हैं योजना आयोग सदर और वित्तमंत्री
कर रहे हैं मुल्क को नीलाम मिलजुल कर सभी
साथ हैं इनके अभियान में टाटा-बिरला-अंबानी भी
राज चले अमरीका का जो भी हो सदर-ए-रियासत
करें अदल-बदल कांग्रेसी-संघी-जनतादली सियासत
पढ़ा है इन्होने अर्थशास्त्र साम्राज्यवादी
बेच रहे हैं इसीलिए अमरीका को मुल्क की आज़ादी
जो भी हो झंडे का रंग जैसा भी चुनाव चिन्ह
रहेंगे सबमें शामिल चिदंबरम् और मोंटेक सिंह
सौंप रहे हैं कारपोरेट को जनसंपदा की चाभी
मिल  साथ कारपोरेट के मारते ये गरीबों की आबादी
हैं सब-के सब विश्वबैंक-आईएमएफ के  कारिंदे
गाजर-मूली हैं इनके लिए अपने देश के बासिंदे
कृपा है इनपर नेहरू-गांधी वंशवाद की
उड़ जायेंगे सभी आएगी जब आंधी जनवाद की.
[ईमि/09.12.2013]
291
मत दबाओ गला दिल का
वही तो है सूत्रधार इस महफिल का
[ईमि/09.12.2013]
292
वाइजों का अंदाज़ होता है हिटलरी
दानिशों की ज़हालत के चलते
[ईमि/09.12.2013]
293
वाइज़ की देख हिमाकत
शशांक को हो गई दहशत
देख नहीं सका वो टूटा हुआ आइना
हो गया उसे चेहरे के टूटने का शक
[ईमि/09.12.2013]
294
अरे मैं तो दिशा मैदान गया था
लौटा तो देखा यहां तूफान मचा था
[ईमि/09.12.2013]
295
अरे मैं तो दिशा मैदान गया था
लौटा तो देखा यहां तूफान मचा था
[ईमि/09.12.2013]
296
मैं तो बोले जा रहा हूं
श्रोताओं का अकाल पा रहा हूं
[ईमि/09.12.2013]
297
गाफिल यहां गफलत की मत करो गड़बड़
बुढ़ापा होगा आपका करो मत युवा ईश पर बड़बड़
दिशा मैदान तो हर उम्र की फितरत है
जवान क्या बच्चों की भी जरूरत है
[ईमि/09.12.2013]
298
मैं नहीं हूं उद्वेलि आपकी बात पर गाफिल
बुढ़ापे की बात से बिगाड़ें न आप महफिल
299
जीना है मुझको तो 135 साल
बुढ़पा लाए 57 की उम्र
इसकी क्या मजाल
[ईमि/09.12.2013]
300
मैं तो बोले जा रहा हूं
श्रोताओं का अकाल पा रहा हूं
[ईमि/09.12.2013]
301
मैं तो बोले जा रहा हूं
श्रोताओं का अकाल पा रहा हूं
[ईमि/09.12.2013]
302
मत कहो नालायक इस मासूम बालक को
संभालेगा यही मुल्क के सियासती फलक को
                                                            [ईमि/09.12.2013]